अमरीका के लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर क्यों ?

punjabkesari.in Wednesday, Jun 29, 2016 - 06:14 PM (IST)

अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सब कुछ सामान्य चल रहा हो, ऐसा नहीं है। प्रमुख रूप से दो दलों में सीधा टकराव तो है साथ ही, देश के युवा वोटरों में भारी नाराजगी पाई जा रही है। इस संबंध में हमें बीबीसी के साभार से महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। उसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। आमतौर पर अपनी सकारात्मक सोच के लिए अमरीका के लोग दुनिया में जाने पहचाने जाते हैं। नवंबर में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव से पहले ही देखा जा रहा है कि वहां के वोटर बहुत गुस्से में हैं। इसकी पुष्टि डोनाल्ड ट्रंप और बर्नी सैंडर्स को मिली सफलता बता सकती है कि जो लोग मुख्य धारा से जुड़े ही नहीं थे वे भी कामयाबी की ओर बढ़ते गए। इसके बावजूद लोगों में निराशा क्यों है, उन्हें कुंठा ने क्यों घेर लिया है, ऐसे सवालों के जवाब खोजने अभी बाकी हैं।

पिछले साल दिसंबर में सीएनएन व ओआरसी द्वारा आयोजित सर्वे में यह बात सामने आई थी कि वहां जो कुछ चल रहा है उससे 69 प्रतिशित अमरीकी या तो बहुत गुस्से में हैं या कुछ-कुछ नाराज हैं। जो लोग बहुत नाराज हैं इस का कारण यह पता चला कि पैसे और शक्ति के लिए ही कुछ  लोग काम कर रहे हैं। ये वे लोग हैं जो वॉल स्ट्रीट अथवा वाशिंगटन से जुड़े हैं। यह सर्वे नवंबर से आरंभ किया गया था। इस दौरान एक और बात सामने आई कि कई लोग सिर्फ नाराज नहीं हैं, वे पिछले से एक साल की तुलना में उससे भी अधिक गुस्से में हैं। खासतौर पर इनमें रिपब्लिकन 61 प्रतिशत और श्वेत 54 प्रतिशत, लेकिन 42 प्रतिशत डेमोक्रेट्रस, 43 प्रतिशत लैटिन अमरीकी और 33 प्रतिशत अफ्रीकी-अमरीकी लोग भी शामिल हैं।

उम्मीदवारों ने वोटरों के मूड को भांप लिया और उन्हें रिझाने वाली भाषा को अपनाया। इसके बावजूद वोटरों में ट्रंप विवादास्पद बन ही चुके थे, उनके स्थान पर किसी अन्य उम्मीदवार की बात की जाने लगी। वे बहुत गुस्सैल माने जाते हैं मानो उसी का नकाब उन्होंनै पहना हो। ट्रंप के रिपब्लिक पार्टी के प्रतिद्वंद्वी बेन कारसन कहते हैं कि उनका सामना कई ऐसे अमरीकियों से हुआ है जो हत्सोहित और जबरदस्त गुस्से में दिखे।

राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल बर्नी सैंडर्स कहते हैं कि वे लोग नाराज हैं और लाखों अन्य अमरीकी भी गुस्से में हैं। जबकि हिलेरी क्लिंटन का कहना है कि वे समझती हैं कि लोग गुस्से में क्यों हैं ? इस संबंध में मुख्यतौर पांच कारण माने जाते हैं जो बताते हैं कि वोटर ऐसा क्यों मानते हैं कि अमरीकियों के सपने चिथड़ों की तरह बिखर चुके हैं। 

पहला कारण है अर्थव्यवस्था। पिछले 15 सालों में लोगों में जो गुस्सा और असंतोष का सबसे बड़ा बुनियादी कारण है वह यह है कि ऐसी व्यवस्था को सौंपने में असफल हो जाना जो मध्यम और कामकाजी वर्ग की वास्तविक उन्नति करवा सकें। हालांकि देश मंदी से उबर गया है, उत्पादन में उछाल आया है और बेरोजगारी की दर 2009 में 2015 तक 10 फीसदी तक गिरावट आई है। इसके बावजूद अमरीका के लोग अपने पर्स खाली मानते हैं।  इस अवधि में उन्हें लगता है कि घरेलू आय भी ठप हो गई है। खास बात यह है कि कई नौकरियों का स्तर बहुत ही निम्न है और उनके अवसर भी कम हो रहे हैं। यदि कारणों की खोज करें तो अमरीका की राजनीति के कई विलेन पहचान में आ जाएंगे। बायीं ओर अरबपति, बैंक और वॉल स्ट्रीट है व दायीं ओर प्रवासी हैं, वे देश जो अमरीका का फायदा उठा रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था। 

दूसरा कारण है प्रवासी। अमरीका की जनसंख्या में बदलाव आ रहे हैं। करीब 59 मिलियन प्रवासी 1965 से अब तक वहां आ चुके हैं। ये सभी कानूनी तौर पर देश में दाखिल नहीं हुए हैं। आज से 40 साल पहले अमरीका की 84 प्रतिशत जनसंख्या में गैर लैटिन श्वेत अमरीकी लोग थे। पिछले साल यह आंकड़ा 62 प्रतिशत हो गया। अनुमान है कि यही सिलसिला जारी रहा तो 2055 में यह मूल अमरीकी आधे से भी कम हो जाएंगे। एक सर्वे के मुताबिक 2065 में ये लोग 47 प्रतिशत तक हो जाएंगे। तब तक अमरीका में एशियाई और अन्य देशों से बड़ी संख्या में लोग आ चुके होंगे।   

विशेषज्ञ कहते हैं कि जनसंख्या, जाति, सांस्कृतिक, धार्मिक और पीढ़ीगत परिवर्तन होंगे। कुछ लोग इसे त्योहार की तरह मनाएंगे और अन्य पछताएंगे, खेद प्रकट करेंगे। बुजुर्ग और श्वेत वोटर पहचान ही नहीं पाएंगे कि वे इसी देश में बड़े हुए थे। यह कई अजनबी कबीलों जैसा लगने लगेगा। अमरीका में इस समय 11.3 मिलियन अवैध प्रवासी हैं। यही लोग गुस्से और तनाव का केंद्र बनते हैं। तनाव के मुख्य स्रोत हैं आतंकवाद, नौकरियां और असंतोष। 

तीसरा कारण है वाशिंगटन। क्या आपको सरकार पर विश्वास है, इसका उत्तर 89 प्रतिशत रिपब्लिकन और 72 प्रतिशत डेमोक्रेट्स देते हैं कि कभी-कभी या बिल्कुल नहीं। एक अध्ययन के मुताबि​क दस में 6 लोगों का मानना है कि सरकार के पास बहुत शक्तियां हैं, जबकि दो वर्षों में जिन सबसे बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है वह हैं अर्थव्यवस्था, नौकरियां और प्रवासी लोग। कैपिटल हिल का कई समस्याओं की जंजीर से जकड़ा होना और अधिकारियों की कमजोरी से 20 से 30 प्रतिशत वोटर नाराज हैं। लोगों ने देखा है कि राजनेता आपस में लड़ते रहते हैं और काम उनसे हो नहीं रहे। लोगों की सरकार से दूरी बढ़ती जा रही है और संबंधों में खटास आ गई है। 

चौथा कारण है विश्व में अमरीका का स्थान। लोगों का मानना है कि महाशक्ति के रूप में अमरीका का 38 प्रतिशत देशों पर जोर चलता था, बाद में 2014 में यह संख्या 28 प्रतिशत हो गई। सत्तर प्रतिशत लोगों को लगता है कि अमरीका अपना सम्मान खो रहा है। 2013 के चुनाव में अमरीका अंतर्राष्ट्रीय तौर पर सबसे ऊपर माना जाता था, लेकिन वह विदेशी नीति के लिहाज से महान देश नहीं रह गया था। चीन का उबरना, तालिबान के साथ लड़ाई में बड़ी कामयाबी न मिलना और आतंकी संगठन आईएसआईएस द्वारा बेचैनी उत्पन्न करने की वजह से यह देश लड़खड़ा रहा था।

न्यूयार्क टाइम्स और सीबीएस द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार 9/11 के आतंकी हमले के बाद अमरीका के लोग बहुत डर गए हैं। फ्रांस के पैरिस में आतंकी हमला होने के बाद अमरीका के लोगों ने भी इसके विरोध में प्रदर्शन किए थे। उन्हें यही लगने लगा कि सरकार देश और लोगों की सुरक्षा में विफल है।    

पांचवां कारण है विभाजित राष्ट्र। देश में रिपबिलकन्स और डेमोक्रेटस में पहले से ज्यादा घ्रुवीकरण हो गया है। ऐसा पाया गया कि रिपब्लिकन्स मूल रूप से समाज, आर्थिक और राजनीतिक विचारों में अधिक रू​ढिवादी हो गए हैं। इस बीच डेमोक्रेट्स पहले अधिक उदार हो गए हैं। एक तथ्य और देखा गया कि यदि कोई संबंधी किसी विरोधी पार्टी के परिवार में शादी कर लेता है तो उसकी नकारात्मक छवि बन जाती है। उनमें वैर भाव भी बढ़ता है। लोगों में घ्रुवीकरण हो जाने से प्रवासी, स्वास्थ्य संबंधी और गन कंट्रोल जैसे मुद्दे पेचीदा हो जाते हैं। इस बीच ऐसे लोग भी हैं जो अहम कारक तो हैं,पर पूरी तरह इन मामलों से अलग भी नहीं हैं। वे नहीं चाहते कि वाशिंगटन कई जंजीरों से जकड़ा रहे। इनमें बड़ी संख्या में युवा वोटर हैं। वे किसी भी पार्टी के लेबल से दूर हैं। यदि वे वोट डालने लगें तो चुनाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं। 


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