दुख और तकलीफ कभी न आएंगे आपके पास, ध्यान रखें ये बात

punjabkesari.in Friday, Feb 24, 2017 - 09:35 AM (IST)

एक जगह मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा था। कई मजदूर काम में जुटे थे। उसी समय उधर से स्वामी रामतीर्थ गुजरे। उनके साथ उनका एक शिष्य भी था। स्वामी जी जिज्ञासावश एक मजदूर के पास पहुंचे और पूछा, ‘‘क्यों भाई, क्या कर रहे हो।’’ 


मजदूर स्वामी जी के प्रश्र पर भड़कते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी आंखें फूटी हुई हैं क्या। तुम्हें मैं पत्थर तोड़ते हुए नहीं दिख रहा।’’ 


उस मजदूर का जवाब सुनकर स्वामी जी शांत भाव से मुस्कुराए और वहां से वह दूसरे मजदूर के पास पहुंचे। वह मजदूर न तो विशेष प्रसन्न था और न ही बहुत उदास। स्वामी जी ने जब उसके सामने वही प्रश्र दोहराया तो वह बोला, ‘‘मैं रोजी-रोटी कमाने के लिए काम कर रहा हूं।’’


इसके बाद स्वामी जी तीसरे मजदूर के पास पहुंचे। तीसरा मजदूर आनंदित होकर बोला, ‘‘मुझे एक नेक काम में भागीदार बनने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है। मैं भी उस अवसर का लाभ उठाकर मंदिर निर्माण में अपना योगदान दे रहा हूं।’’


तीनों मजदूरों से बात करने के बाद स्वामी जी ने अपने शिष्य को बताया, ‘‘इन मजदूरों के अलग-अलग व्यवहार से मनुष्य की 3 तरह की प्रकृति सामने आती है। पहली प्रकृति वाले हमेशा तनावग्रस्त होकर सिर्फ पत्थर तोडऩे के अंदाज में जीते हैं। दूसरी प्रकृति वाले जीवन को तनाव व सुख का मिश्रण समझते हैं और उसमें रोजी-रोटी कमाने के लिए जीते हैं। तीसरी प्रकृति वाले अपने जीवन के तनाव व दुखों में भी इनसे निलिप्त होकर जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए जीते हैं।’’


वास्तव में तीसरी प्रकृति वाले लोग ही अपने जीवन को सही अंदाज में जीते हैं क्योंकि जीवन का अर्थ ही है कि आप कुछ करके दिखाएं, न कि उसे सिर्फ कुढऩ, तनाव व रोजगार में गंवा दें। आमतौर पर लोग अपने जीवन को निरर्थक कार्यों में गंवा देते हैं मगर जो इसमें मंदिर निर्मित करते हैं उनका जीवन श्रेष्ठ बन जाता है।


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