इस प्रकार करें अच्छे बुरे लोगों की पहचान, कभी नहीं खाएंगे धोखा

punjabkesari.in Sunday, Sep 17, 2017 - 11:44 AM (IST)

बहुत समय पहले की बात है। नदी के तट पर बसे गांव के नजदीक एक संत का आश्रम था। एक बार संत अपने शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे, तभी एक राहगीर वहां आया और संत से पूछने लगा, ‘‘महाराज, मैं परदेस से आया हूं और इस जगह पर नया हूं। क्या आप बता सकते हैं कि इस गांव में किस तरह के लोग रहते हैं?’’

यह सुनकर संत ने उससे कहा, ‘‘भाई, पहले तुम मुझे यह बताओ कि तुम अभी जहां से आए हो, वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं?’’ 

इस पर वह व्यक्ति बोला, ‘‘उनके बारे में क्या कहूं महाराज! वहां तो एक से एक कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं।’’ 

तब संत ने उससे कहा, ‘‘तुम्हें इस गांव में भी बिल्कुल उसी तरह के लोग मिलेंगे। कपटी, दुष्ट और बुरे।’’ इतना सुनकर वह राहगीर आगे बढ़ गया। 

कुछ समय बाद वहां से एक और राहगीर का गुजरना हुआ। वह भी किसी नई जगह पर बसने की इच्छा रखता था। उसने संत से पूछा, ‘‘महात्मन, मुझे यहां की आबोहवा ठीक लगती है। क्या आप बता सकते हैं कि इस गांव में कैसे लोग रहते हैं?’’ 

इस संत ने उससे भी वही सवाल पूछा, जो उन्होंने पहले राहगीर से पूछा था। 

इस पर राहगीर ने जवाब दिया, ‘‘महात्मन, मैं जहां से आया हूं, वहां तो बहुत ही सभ्य, सुलझे और नेकदिल इंसान रहते हैं।’’ 

तब संत ने उससे कहा, ‘‘तुम्हें यहां भी उसी तरह के लोग मिलेंगे। सभ्य, सुलझे हुए और नेकदिल। तुम्हें यहां रहने पर कोई परेशानी नहीं होगी।’’ 

इतना सुनते ही वह राहगीर संत को प्रणाम कर आगे बढ़ गया। शिष्य यह सब देख रहे थे। राहगीर के जाते ही उन्होंने संत से पूछा, ‘‘गुरुदेव, आपने दोनों राहगीरों को एक ही स्थान के बारे में अलग-अलग बातें क्यों बताईं?’’ 

इस पर संत ने उनसे कहा, ‘‘वत्स, आमतौर पर हम चीजों को वैसे नहीं दखते, जैसी वे हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह के लोगों को देखना चाहते हैं। अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमें अच्छे लोग मिलेंगे और बुराई देखना चाहें तो बुरे।’’ यह सुनकर शिष्यों को उनकी बात का मर्म समझ में आ गया और उन्होंने जीवन में सिर्फ अच्छाइयों पर ध्यान केंद्रित करने का निश्चय किया।


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