ऐतिहासिकता और आस्था का संगम: भगवान बाहुबली

punjabkesari.in Monday, Dec 04, 2017 - 03:28 PM (IST)

फिल्‍मी पर्दे के बाहुबली को तो आप अच्‍छे से जानते होंगे लेकिन हम आपको हकीकत के बाहुबली से रूबरू करवा रहे हैं। जी हां, कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में उनकी 57 फुट ऊंची प्रतिमा बनी है। ये बाहुबली कोई और नहीं ऋषभदेव के पुत्र भगवान बाहुबली हैं, जिन्हें गोम्मटेश भी कहा जाता है। जैन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए बहुत बड़ा तीर्थ है। 10वीं सदी में निर्मित बाहुबली की इस विशाल प्रतिमा का हर 12 वर्ष पर महामस्तकाभिषेक होता है। इस बार यह आयोजन फरवरी 2018 में होने जा रहा है। बाहुबली की कहानी और महामस्तकाभिषेक की तैयारी पर पूरी जानकारी दे रहे हैं चंदन जायसवाल। 

 

विशाल और ओजस्वी प्रतिमा

कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में स्थित भगवान बाहुबली की विशाल प्रतिमा भारत के अद्भुत स्मारकों में शुमार है। श्रवणबेलगोला में मुख्य आकर्षण का केंद्र बाहुबली की विशाल प्रतिमा ही है। धार्मिक रूप से यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैनियों का मानना है कि मोक्ष (जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा) की प्राप्ति सर्वप्रथम बाहुबली को हुई थी। बाहुबली की यह प्रतिमा दसवीं शताब्दी की है पर आज भी जिस शान से पर्वत शिखर पर विराजमान है, वह दुनिया भर से आने वाले श्रद्धालुओं और सैलानियों को चकित करती है।  

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चन्द्रबेत और इन्द्रबेत पहाड़ियों के बीचो-बीच स्थित बाहुबली की इस 1000 वर्षों से भी पुरानी विशालकाय प्रतिमा तक पहुंचने के लिए 618 सीढियां चढ़कर आना पड़ता है। इस मूर्ति को सफेद ग्रेनाइट के एक ही पत्थर से काट कर बनाया गया है। मूर्ति एक कमल पर खड़ी हुई है। यह जांघों तक बिना किसी सहारे के खड़ी है। मूर्ति की लंबाई 60 फीट (18 मीटर) है। इसके चेहरे का माप 6.5 फीट (2 मीटर) है।  विंध्यगिरि पर्वत पर स्थित यह मूर्ति 30 किलोमीटर दूर से भी दिखाई देती है। इस प्रतिमा के बारे में मान्यता है कि इस मूर्ति में शक्ति, साधुत्व, बल तथा उदारवादी भावनाओं का अद्भुत प्रदर्शन होता है। यह मूर्ति मध्यकालीन कर्नाटक की शिल्पकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। 

 

श्रवणबेलगोला का इतिहास

पूरे विश्व में एक ही पत्थर से निर्मित इस विशालकाय मूर्ति का निर्माण 983 ई. में गंगा राजा रचमल के एक मंत्री चामुण्डाराया ने करवाया था। श्रवणबेलगोला में जहां बाहुबली की विश्व प्रसिद्ध प्रतिमा जैनों की आस्था का केंद्र है, वहीं चंद्रगिरि पर्वत पर मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य और उनके गुरु भद्रबाहु की समाधि और गुफा भी है। यहीं पर इन लोगों ने अपने जीवन का आखिरी समय भगवान को याद करते हुए बिताया था। दरअसल, नंद वंश का विनाश कर चंद्रगुप्त ने चाणक्य की सहायता से मौर्य वंश की स्थापना लगभग 320 ईसा पूर्व में की थी।

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अपने 22 वर्ष के शासन के बाद उन्होंने अपना साम्राज्य पुत्र बिंदुसार को सौंप दिया और जैन गुरु भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला आ गए। यहां आकर तपस्या करते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिया। उन दोनों की याद में मंदिर का निर्माण आज से लगभग 2300 साल पहले किया गया था जो आज भी अपनी संपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रहा है। इसके अलावा महान सम्राट अशोक जो चंद्रगुप्त मौर्य के पौत्र थे, उन्होंने भी जब श्रवणबेलगोला की यात्रा की तो अपने दादा की याद में एक मंदिर का निर्माण कराया। अब भी वह मौजूद है। इन सबके अलावा काफी संख्या में शिलालेख और स्तंभलेख यहां मौजूद हैं जो अमूमन 9वीं से 12वीं शताब्दी के हैं। 

 

जैन धर्म में पहला मोक्षगामी 

श्रवणबेलगोला में गोम्मटेश्वर द्वार के बाईं ओर एक पाषाण पर शक सं. 1102 का एक लेख कानड़ी भाषा में है। इसके अनुसार जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव के दो पुत्र थे, भरत और बाहुबली। बाहुबली अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती से युद्ध के बाद मुनि के रूप में जाने गए। अपने भाई भरत को पराजित कर राजसत्ता का उपभोग बाहुबली कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और सारा राजपाठ छोड़कर वे तपस्या करने लगे। बाहुबली ने करीब एक वर्ष तक कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान किया। कठोर तपस्या के बाद वे मोक्षगामी बने। जैन धर्म में भगवान बाहुबली को पहला मोक्षगामी माना जाता है।

12 साल बाद महामस्तकाभिषेक

जैन समुदाय के र्ती‍थ श्रवणबेलगोला में 88वें महामस्तिकाभिषेक की तैयारियां जोरों पर हैं। हर 12 साल बाद लाखों श्रद्धालु महामस्तकाभिषेक के लिए यहां आते हैं। इस मौके पर हजारों साल पुरानी इस मूर्ति का दूध, दही, घी, केसर और  सोने के सिक्कों से अभिषेक किया जाता है। पिछला अभिषेक फरवरी 2006 में हुआ था। इस साल इसमें 35 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। 57 फीट ऊंची और 26 फीट चौड़ी भगवान की मूर्ति के एक हजार साल के इतिहास में पहली बार जर्मन तकनीक से 100 बाय 60 वर्गफीट का चार मंजिला मंच बन रहा है, जिसकी लागत करीब 12 करोड़ बतार्इ जा रही है।

स्वास्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी के अनुसार महोत्सव में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक समय में 30 हजार लोगों के लिए आवास की व्यवस्था भी की जाएगी साथ ही अलग-अलग स्थानों पर 17 भोजनशाला बनाई जाएगी।  इन भोजनशालाओं में हर दिन करीब एक लाख लोगों का भोजन बनेगा। जैन समाज के आठ तीर्थ क्षेत्रों की प्रतिकृति भी यहां बनाई जाएगी, ताकि दुनियाभर के लोगों को जैन धर्म के प्रमुख तीर्थ क्षेत्र की पूरी जानकारी मिल सके।

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कैसे पहुंचें श्रवणबेलगोला

बेंगलुरु से श्रवणबेलगोला की दूरी वाया चेनेरायपटना 160 किलोमीटर है। मेजेस्टिक बस स्टैंड से सीधी बसें भी वहां जाती हैं। रेलवे ने श्रवणबेलगोला के लिए एक नियमित ट्रेन का संचालन भी शुरू कर दिया है। इंटरसिटी एक्सप्रेस 22679 शाम को 6.15 बजे से 133 किलोमीटर का सफर कर श्रवणबेलगोला 8.10 बजे पहुंचा देती है।  वहीं, नजदीकी एयरपोर्ट बैंगलुरु है जहां से 170 किमी की दूरी कैब से लगभग 3 घंटे में पूरी कर आप श्रवणबेलगोला पहुंच सकते हैं। 



- 2 लाख से अधिक लोगों के लिए बसाएंगे 12 नगर: चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी

महामस्तकाभिषेक के नेतृत्वकर्ता जगद्गुरु कर्मयोगी, चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी ने बताया कि इस बार लोगों के आवास के लिए 12 नगर बसाए जाएंगे, जिसमें अस्थायी रूप से रहने की व्यवस्था की जाएगी। भगवान बाहुबली का महामस्तकाभिषेक विंध्यगिरि पर्वत पर होगा, जबकि सामने स्थित चंद्रगिरि पर्वत पर महामस्तकाभिषेक दर्शन के लिए 3 लाख लोगों की बैठक व्यवस्था की जाएगी। इस पहाड़ी पर चेयर, एलईडी स्क्रीन और दूरबीन लगाई जाएगी।

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इसके साथ ही चिकित्सा सुविधा भी रहेगी। उन्होंने बताया कि आयोजन की व्यवस्थाओं के लिए करीब 36 समितियां बनाई गई हैं। व्यवस्थाओं के संचालन में 5 हजार पुलिसकर्मियों के अतिरिक्त विभिन्ना समाजिक संगठनों के कार्यकर्ता भी भागीदारी करेंगे। हजारों लीटर दूध, दही, केसर व अन्य सामग्री से किए जाने वाले अभिषेक से मूर्ति को नुकसान न हो, इसके लिए पुरात्तव विभाग ने विशेष रासायन की परत भी चढ़ाई है। जगद्गुरु के अनुसार श्रद्धालुओं को लाने व ले जाने के लिए स्पेशल ट्रेन देश के विभिन्न शहरों से चलाई जाएगी। 


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