चाणक्य नीति: मृत पुत्र कुछ क्षण कष्ट देता है, मूर्ख पुत्र जीवनभर जलाता है

punjabkesari.in Saturday, Feb 24, 2018 - 01:06 PM (IST)

आचर्य चाणक्य द्वारा लिखित चाणक्य नीति एक एेसा महान ग्रंथ है जो आज भी उतना ही प्रासंगिक व अपयोगी है जितना कि वह उस समय था। चाणक्य नीति की पुस्तक में कुल सत्रह अध्याय है। तो आईए जानें चाणक्य नीति के चौथे अध्याय की वर्णित कुछ महत्वपूर्ण बातें।


यह निश्चित है कि शरीरधारी जीव के गर्भकाल में ही आयु, कर्म, धन, विद्या, मृत्यु इन पांचो की सृष्टि साथ-ही-साथ हो जाती है।


साधु महात्माओं के संसर्ग से पुत्र, मित्र, बंधु और जो अनुराग करते है, वे संसार-चक्र से छूट जाते है और उनके कुल-धर्म से उनका कुल उज्ज्वल हो जाता है।


जिस प्रकार मछली देख-रेख से, कछुवी चिड़िया स्पर्श से (चोंच द्वारा) सदैव अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही अच्छे लोगों के साथ से सर्व प्रकार से रक्षा होती है।


यह नश्वर शरीर जब तक निरोग व स्वस्थ है या जब तक मृत्यु नहीं आती, तब तक मनुष्य को अपने सभी पुण्य-कर्म कर लेने चाहिएं क्योंकि अंत समय आने पर वह क्या कर पाएगा।


विद्या कामधेनु के समान सभी इच्छाएं पूर्ण करने वाली है। विद्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते है। परदेस में विद्या माता के समान रक्षा करती है। विद्वानों ने विद्या को गुप्त धन कहा है, अर्थात विद्या वह धन है जो आपातकाल में काम आती है। इसका न तो हरण किया जा सकता हे न ही इसे चुराया जा सकता है।


सैकड़ों अज्ञानी पुत्रों से एक ही गुणवान पुत्र अच्छा है। रात्रि का अंधकार एक ही चंद्रमा दूर करता है, न कि हजारों तारे।


बहुत बड़ी आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पैदा होते ही जो मर गया, वह अच्छा है क्योंकि मरा हुआ पुत्र कुछ देर के लिए ही कष्ट देता है, परंतु मूर्ख पुत्र जीवनभर जलाता है।


बुरे ग्राम का वास, झगड़ालू स्त्री, नीच कुल की सेवा, बुरा भोजन, मूर्ख लड़का, विधवा कन्या, ये छः बिना अग्नि के भी शरीर को जला देते हैं।

 

उस गाय से क्या लाभ, जो न बच्चा जने और न ही दूध दे। ऐसे पुत्र के जन्म लेने से क्या लाभ, जो न तो विद्वान हो, न किसी देवता का भक्त हो।


इस संसार में दुःखो से दग्ध प्राणी को तीन बातों से सुख शांति प्राप्त हो सकती है – सुपुत्र से, पतिव्रता स्त्री से और सद्संगति से।


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