पाक के 3000 हजार बम भी न गिरा सके माता का ये मंदिर

punjabkesari.in Saturday, Jan 13, 2018 - 12:13 PM (IST)

जैसलमेर से करीब 130 किलो मीटर दूर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के निकट तनोट माता का मंदिर स्थित है। यह मंदिर लगभग 1,200 साल पुराना है। वैसे तो यह मंदिर सदैव ही आस्था का केंद्र रहा है पर 1965 कि भारत-पाकिस्तान लड़ाई के बाद यह मंदिर देश-विदेश में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हो गया।1965 कि लड़ाई में पाकिस्तानी सेना की तरफ से गिराए गए करीब 3,000 बम भी इस मंदिर पर खरोंच तक नहीं लगा सके, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तो के दर्शन के लिए रखे हुए हैं।


1965 कि लड़ाई के बाद इस मंदिर का जिम्मा सीमा सुरक्षा बल ने ले लिया और यहां अपनी एक चोकी भी बना ली। इतना ही नहीं एक बार फिर 4 दिसंबर 1971 कि रात को पंजाब रेजिमेंट और सीमा सुरक्षा बल की एक कंपनी ने मां की कृपा से लोंगेवाला में पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजिमेंट को धूल चटा दी थी और लोंगेवाला को पाकिस्तानी टैंको का कब्रिस्तान बना दिया था। लोंगेवाला तनोट माता के स्मीप ही स्थित है।लोंगेवाला कि विजय के बाद मंदिर परिदसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया गया जहां अब हर वर्ष 16 दिसंबर को सैनिको की याद में उत्सव मनाया जाता है।


माता के इस मंदिर को क आवड़ माता के नाम से भी जाना जाता है तथा इन्हें हिंगलाज माता का ही एक रूप माना जाता है। हिंगलाज माता का यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है। प्रति वर्ष आश्विन और चै‍त्र नवरात्र में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।


 
तनोट माता मंदिर का इतिहास

बहुत पहले मामडि़या नाम के एक चारण थे। उनको कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। तब माता ने एक बार माता उन्हें स्वप्न में आकर इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे यहां जन्म लें।


माता कि कृपा से चारण के यहां 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहां जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियां देवीय चमत्कारों से युक्त थी। 


कांस्टेबल कालिकांत सिन्हा जो तनोट चौकी पर पिछले चार साल से पदस्थ हैं का कहना है कि माता बहुत शक्तिशाली है और मेरी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। हमारे सिर पर हमेशा माता की कृपा बनी रहती है। इसलिए कोई भी हमारा बाल भी बांका नहीं कर सकता है।

माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हुआ। राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहां अपनी स्थापना की।


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