भिखारी से बना सूट-बूट वाला बाबू, आपका जीवन भी बदल सकती है यह कहानी

punjabkesari.in Thursday, Mar 31, 2016 - 03:57 PM (IST)

एक भिखारी किसी स्टेशन पर पैंसिलों से भरा कटोरा लेकर बैठा हुआ था। एक युवा व्यवसायी उधर से गुजरा और उसने कटोरे में 50 रुपए डाल दिए लेकिन उसने कोई पैंसिल नहीं ली। उसके बाद वह ट्रेन में बैठ गया। डिब्बे का दरवाजा बंद होने ही वाला था कि युवा व्यवसायी एकाएक ट्रेन से उतर कर भिखारी के पास लौटा और कुछ पैंसिलें उठाकर बोला, ‘‘मैं कुछ पैंसिलें लूंगा। इन पैंसिलों की कीमत है, आखिरकार तुम एक व्यापारी हो और मैं भी।’’ उसके बाद वह युवा व्यवसायी तेजी से ट्रेन में चढ़ गया।

कुछ वर्षों बाद वह व्यवसायी एक पार्टी में गया। वह भिखारी भी वहां मौजूद था। भिखारी ने उस व्यवसायी को देखते ही पहचान लिया। वह उसके पास जाकर बोला, ‘‘आप शायद मुझे नहीं पहचान रहे हैं लेकिन मैं आपको पहचानता हूं।’’ उसके बाद उसने उसके साथ घटी उस घटना का जिक्र किया। 

व्यवसायी ने कहा, ‘‘तुम्हारे याद दिलाने पर मुझे याद आ रहा है कि तुम भीख मांग रहे थे लेकिन तुम यहां सूट और टाई में क्या कर रहे हो?’’ 

भिखारी ने जवाब दिया, ‘‘आपको शायद मालूम नहीं है कि आपने मेरे लिए उस दिन क्या किया। मुझ पर दया करने की बजाय मेरे साथ सम्मान के साथ पेश आए। आपने कटोरे से पैंसिलें उठाकर कहा, ‘‘इनकी कीमत है, आखिरकार तुम भी एक व्यापारी हो और मैं भी।’’ 

आपके जाने के बाद मैंने बहुत सोचा, मैं यहां क्या कर रहा हूं? मैं भीख क्यों मांग रहा हूं? मैंने अपनी जिंदगी को संवारने के लिए कुछ अच्छा काम करने का फैसला लिया। मैंने अपना थैला उठाया और घूम-घूम कर पैंसिलें बेचने लगा। फिर धीरे-धीरे मेरा व्यापार बढ़ता गया। मैं कापियां-किताबें एवं अन्य चीजें भी बेचने लगा और आज पूरे शहर में मैं इन चीजों का सबसे बड़ा थोक विक्रेता हूं। मुझे मेरा सम्मान लौटाने के लिए मैं आपका तहेदिल से धन्यवाद करता हूं क्योंकि उस घटना ने आज मेरा जीवन ही बदल दिया।

आप अपने बारे में क्या सोचते हैं? अपने लिए आज आप क्या राय जाहिर करते हैं? क्या आप अपने आपको ठीक तरह से समझ पाते हैं? इन सारी चीजों को ही हम असीधे रूप से आत्मसम्मान कहते हैं। दूसरे लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं ये बातें उतनी मायने नहीं रखतीं या यूं कहें कि कुछ भी मायने नहीं रखतीं लेकिन आप अपने बारे में क्या राय जाहिर करते हैं, क्या सोचते हैं यह बात बहुत ही ज्यादा मायने रखती है लेकिन एक बात तय है कि हम अपने बारे में जो भी सोचते हैं उसका अहसास जाने-अनजाने में दूसरों को भी करवा ही देते हैं और इसमें कोई भी शक नहीं कि इसी कारण की वजह से दूसरे लोग भी हमारे साथ उसी ढंग से पेश आते हैं।


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