राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस अपनी ‘प्रासंगिकता’ पूरी तरह खो देगी

punjabkesari.in Sunday, Feb 26, 2017 - 10:15 PM (IST)

राजनीतिक पार्टियों की मौत कैसे होती है? इस विषय पर चिंतन-मनन करना बहुत दिलचस्प होगा क्योंकि वर्तमान में हम कांग्रेस को धीरे-धीरे दीर्घकालिक मृत्यु की ओर बढ़ता देख रहे हैं। भारत की इस सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का गठन 132 वर्ष पूर्व किया गया था और सत्ता से बाहर हुए इसे मात्र 3 वर्ष ही हुए हैं। फिर भी यह स्पष्ट हो गया है कि एक राष्ट्रीय शक्ति के रूप में यदि इसकी मृत्यु नहीं भी हुई तो भी यह मूर्छित अवश्य ही हो चुकी है। एक ब्रांड के रूप में इसका नाम बुरी तरह लहू-लुहान हो चुका है और इसके बारे में मुश्किल से ही कोई सकारात्मक टिप्पणी की जा सकती है। 

मतदाताओं में इसका बहुत मामूली आधार ही बचा हुआ है लेकिन इन वफादारों के लिए भी इसके बारे में कोई वास्तविक राजनीतिक संदेश नहीं है। जब यह एक राष्ट्रीय शक्ति के रूप में पूरी तरह गायब हो जाएगी (यानी जब यह इतने वोट भी हासिल नहीं कर पाएगी, चुनावी निशान ‘पंजा’ पर अपना अधिकार बनाए रखे) तो  मौत के मुंह में जाने वाली यह भारत की प्रथम राजनीतिक पार्टी नहीं होगी। 

इससे पहले आल इंडिया मुस्लिम लीग की मौत हो चुकी है। इसकी मौत इसलिए हुई थी कि इसके समक्ष जिंदा रहने का कोई कारण ही नहीं था। इस पार्टी का गठन मुस्लिमों के राजनीतिक अधिकार सुरक्षित करने और औपनिवेशक शासन से टक्कर लेने के लिए 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में किया गया था। इसने कांग्रेस के साथ सत्ता में भागीदारी की व्यवस्था तय करने के लिए प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो पाई। (अधिकतर मुस्लिमों की नजर में कांग्रेस एक हिन्दू पार्टी थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे आजकल भाजपा है) यह समझौता न हो पाने के कारण ही देश का विभाजन हो गया और उसके बाद भारत में मुस्लिम लीग किसी न किसी हद तक गायब ही हो गई। इसका जनाजा इसलिए निकल गया कि इस पार्टी का ब्रांड देश विभाजन से जुड़ा हुआ था। 

कई वर्षों तक केवल एक ही सांसद इस पार्टी का इंडियन मुस्लिम लीग के नाम पर प्रतिनिधित्व करता रहा। बेशक जी.एम. बनातवाला नामक इस महाशय को केरल से बार-बार सांसद चुना गया तो भी वह एक गुजराती था। पाकिस्तान में देश विभाजन के बाद भी मुस्लिम लीग विभिन्न प्रधानमंत्रियों के नेतृत्व में लगभग एक दशक तक सत्तासीन रही। द्विराष्ट्र सिद्धांत ही इस पार्टी का मूलभूत राजनीतिक प्लेटफार्म था और वह भी मुख्य रूप में मुस्लिम आबादी वाले राष्ट्र में प्रासंगिक नहीं रह गया था। इसके 2 सबसे बड़े नेता तो पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के कुछ ही वर्षों के अंदर चल बसे थे। जहां गवर्नर जनरल जिन्ना 11 सितम्बर 1948 को टी.बी. की बीमारी के शिकार हो गए, वहीं  प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को 16 अक्तूबर 1951 को एक सार्वजनिक समारोह में कत्ल कर दिया गया था। 

जब कुछ वर्ष बाद जनरल अयूब सत्ता पर काबिज हुए तब तक जिन्ना के नेतृत्व वाली पार्टी दोफाड़ हो चुकी थी और इसके स्थान पर कन्वैंशन मुस्लिम लीग गठित की गई थी। यह पाकिस्तान में जिन्ना की पार्टी के अनेक संस्करणों में से प्रथम था। पाकिस्तान में किसी सैन्य शासक के समर्थन में पार्टी के टूटने और पुनर्गठित होने की यह परम्परा दशकों तक चलती रही। जनरल जिया-उल-हक के प्रधानमंत्री जुनेजो ने मुस्लिम लीग (जे) का गठन किया तो जनरल मुशर्रफ का समर्थन करने केलिए मुस्लिम लीग (क्यू) गठित हो गई। वर्तमान में जिस पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) का शासन है वह भी जिया-उल-हक के जमाने में ही गठित हुईथी। 

भारत में कांग्रेस किसी न किसी हद तक राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट रही। इसमें एक ही भारी फूट लाल बहादुर शास्त्री के देहावसान और इंदिरा गांधी द्वारा सत्ता संभालने के बाद पैदा हुई थी। नेहरू के सहयोगी रहे पुराने और बूढ़े कांग्रेसियों ने अपनी खुद की कांग्रेस गठित कर ली जबकि  इंदिरा बहुत मजबूत थीं और उन्होंने मूल संगठन पर अपने करिश्मे और लोकप्रियता के कारण कब्जा जमा लिया। इंदिरा गांधी को पराजित करने वाली जनता पार्टी क्षेत्रीय पार्टियों का जोड़-तोड़ करके गठित की गई थी। जनता पार्टी  की विचारधारा समाजवादी होने के साथ कांग्रेस विरोधी थी। इस पार्टी का गठन आपातकाल के दौरान हुआ था और जल्दी ही बाद अपनी प्रासंगिकता खो बैठी थी। इसके विभिन्न घटकों ने जनता दल के माध्यम से कांग्रेस-विरोध को जिंदा रखने का प्रयास किया लेकिन यह गोंद कोई अधिक कारगर सिद्ध नहीं हो सका और जनता दल उत्तरी तथा दक्षिणी संस्करणों में बंट गया। 

लाल कृष्ण अडवानी ने राम जन्म भूमि आंदोलन के माध्यम से भारतीय राजनीति का हुलिया ही बदल दिया। जनता पार्टी के बिखरे हुए टुकड़ों की कांग्रेस विरोधी भावनाएं हिन्दुत्व विरोध की भावना का रूप धारण कर गईं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वे भाजपा और इसके आदर्शों से भयभीत थे और अब भी हैं। राजीव गांधी के अंतर्गत कांग्रेस अपनी बहुत वैचारिक खूबियों से किनारा कर गई। इसके पास कोई वास्तविक विचारधारा नहीं थी लेकिन फिर भी यह नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के अंतर्गत खुद को  कारगर सिद्ध करती रही। 

दिल्ली की सत्ता कांग्रेस के हाथों से निकलने का कारण यह है कि वह राज्यों में पहले ही सत्ता से वंचित हो चुकी थी। वैसे 2004 से 2014 तक बेशक एक दशक के लिए तो कहने को कांग्रेस का शासन था लेकिन इसके पीछे कुछ तथ्य छिपे हुए थे। उत्तरी भारत के ज्यादातर हिस्से में तो कांग्रेस स्थायी रूप में विपक्षी पार्टी बन रह गई है। गुजरात में तो यह 3 दशकों से चुनाव नहीं जीत पाई है। कई अन्य बड़े राज्यों में भी जहां भाजपा सत्तारूढ़ या विपक्षी दल है वहां कांग्रेस चौथे या 5वें स्थान पर है यानी कि बिल्कुल ही अप्रासंगिक। 

दक्षिण में कांग्रेस का जनाधार बहुत  तेजी से भाजपा की ओर खिसकता जा रहा है और तमिलनाडु व केरल में हिन्दुत्व बहुत धैर्य लेकिन निष्ठुरता से आगे बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस के क्षमतावान नेताओं ने तो बहुत पहले ही भांप लिया था कि इस क्षेत्र में कांग्रेस की निश्चय ही मृत्यु होने जा रही है। उनमें से कुछेक ने तो सफलतापूर्वक पार्टी संगठन पर कब्जा कर लिया, जैसे कि बंगाल में ममता बनर्जी ने। महाराष्ट्र में शरद पवार जैसे कुछ अन्य नेता ममता जितने सफल नहीं हुए लेकिन फिर भी पवार को कांग्रेस के साथ विलय करने का कोई तुक दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि ‘कांग्रेस’ रूपी ब्रांड दागदार हो चुका है। जैसे कि पहले कहा जा चुका है, कांग्रेस ब्रांड की अब कोई कीमत नहीं रह गई और यह किसी भी आदर्श का प्रतीक नहीं रह गया है। 

रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि हाल ही के स्थानीय निकायों के चुनावों में महाराष्ट्र में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है उसका मुख्य कारण यह है कि उम्मीदवारों को पार्टी की ओर से कोई वित्तीय समर्थन नहीं मिला। यह बहुत खतरे का संकेत है फिर भी इसकी ओर ध्यान दिए जाने की कोई संभावना नहीं। चूंकि कांग्रेस पार्टी एक ऐसे परिवार की जागीर बन चुकी है जो किसी के आगे उत्तरदायी नहीं। इसलिए पार्टी एक के बाद एक पटखनी खाती जाएगी। 

यह संभव है कि किसी अन्य नेता के तत्वावधान में कांग्रेस फिर से सुरजीत हो सकती है लेकिन राहुल गांधी कोई बुजुर्ग व्यक्ति नहीं हैं अभी वह कुछ दशकों तक सक्रिय भूमिका अदा कर सकते हैं। इसलिए यदि वह पार्टी के नेता बने रहते हैं तो पार्टी को ही नुक्सान होगा और यह राष्ट्रीय स्तर पर धीरे-धीरे अपनी प्रासंगिकता पूरी तरह खो देगी। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News