उत्तर-पूर्वी दिशा में बनी ये चीजें, आपके अच्छे समय को बुरे में बदल देती हैं

punjabkesari.in Monday, Jan 18, 2016 - 05:06 PM (IST)

वास्तुशास्त्र जनित दोष और नियमानुसार उनके निदान व गणना करने के पीछे पूर्णत: वैज्ञानिक दृष्टिकोण छिपा है। इसमें सूर्य की रश्मियों, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र तथा भौगोलिक स्थिति का पूरा-पूरा ध्यान किसी निर्माण से पूर्व रखा जाता है।  निर्माण चाहे झोंपड़ी का हो या फिर किसी महल का, उद्देश्य यही होता है कि विभिन्न दुष्प्रभाव पैदा करने वाली रेडियोधर्मिता को कैसे दूर किया जाए जिससे कि उनके स्वामियों पर आर्थिक, दैहिक और आध्यात्मिक, तीनों प्रकार के सुप्रभाव ही अधिकाधिक उत्पन्न हों।

यदि निर्माण कार्य होना है, तब यही परामर्श दिया जाएगा कि वह वास्तु नियमों के अनुरूप ही हो परन्तु यदि निर्माण कार्य सम्पन्न हो गया है और वह वास्तु जनित दोष दे रहा है तो उन दोषों के निराकरण हेतु यथासामर्थ्य उपक्रम अवश्य करें।  अपने बुद्धि-विवेक से अच्छी तरह सुनिश्चित कर लें कि भवन में आपकी समस्याओं का कारण वास्तव में कहीं उत्तर-पूर्वी दिशा में स्थित शौचालय तो उत्पन्न नहीं कर रहा है। इस दोष का संक्षिप्त विवरण और निदान यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। संभव है आपकी समस्या का निदान मिल जाए।
 
1 शौचालय तथा स्नान घर एक साथ अथवा अलग बनवाने का चलन सुविधानुसार प्रत्येक घर में किया जाता है। दोनों ही दशाओं में भवन के दक्षिण दिशा में इसका चुनाव उचित है।
 
2 किसी कमरे के वायव्य अथवा नैऋत्र्य में शौचालय बनाया जा सकता है। वायव्य दिशा का शौचालय उत्तर की दीवार छूता हुआ नहीं पश्चिमी दिशा की दीवार से लगा हुआ होना चाहिए।
 
3 आग्नेय में पूर्व दिशा की दीवार स्पर्श किए बिना भी शौचालय बनवाया जा सकता है।
 
4 शौचालय में पॉट, कमोड इस प्रकार होना चाहिए कि बैठे हुए व्यक्ति का मुंह उत्तर अथवा दक्षिण दिशा में रहे। मल-मूत्र विसर्जन के समय व्यक्ति का मुंह पूर्व अथवा पश्चिम दिशा की ओर कदापि नहीं होना चाहिए।
 
5 पानी के लिए नल, शावर आदि उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए।
 
6 वाश बेसिन तथा बाथ टब भी ईशान कोण में होना चाहिए।
 
7 गीजर अथवा हीटर क्वाइल आग्नेय कोण में रखना चाहिए।
 
8 शौचालय के द्वार के ठीक सामने रसोईघर नहीं होना चाहिए।
 
9 यदि केवल स्नानगार बनाना है तो वह शयनकक्ष के पूर्व, उत्तर अथवा ईशान कोण में हो सकता है।
 
10 दो शयनकक्षों के मध्य यदि एक स्नानगार आता हो तो एक के दक्षिण तथा दूसरे के उत्तर दिशा में रहना उचित है।
 
11 स्नानागार में यदि दर्पण लगाना है तो वह उत्तर अथवा पूर्व की दीवार में होना चाहिए।
 
12 पानी का निकास पूर्व की ओर रखना शुभ है। शौचालय के पानी का निकास रसोई, भवन के ब्रह्मस्थल तथा पूजा के नीचे से नहीं रखना चाहिए।
 
13 स्नानागार में यदि प्रसाधन कक्ष अलग से बनाना हो तो वह इसके पश्चिम अथवा दक्षिण दिशा में होना चाहिए।
 
14 स्नानागार में कपड़ों का ढेर वायव्य दिशा में होना चाहिए।
 
15 स्नानागार में खिड़की तथा रोशनदान पूर्व तथा उत्तर दिशा में रखना उचित है। एग्जॉस्ट फैन भी इसी दिशा में रख सकते हैं। वैसे यह वायव्य दिशा में होना चाहिए।
 
16 स्नानागार में फर्श का ढलान उत्तर, पूर्व अथवा ईशान दिशा में रखना शुभ है।
 
17 अलग से स्नानागार बनाना है तो यह पश्चिम अथवा दक्षिण की बाह्य दीवार से सटा कर नैऋत्र्य दिशा में बनाना उचित है।
 
18 पश्चिम की दिशा में पश्चिमी बाह्य दीवार से सटा कर अलग से भी स्नानागार बनाया जा सकता है।
 
19 बाहर बनाया गया स्नानागार उत्तर की दीवार से सट कर नहीं होना चाहिए।
 
20 शौचालय भवन की किसी भी सीढ़ी के नीचे स्थित नहीं होना चाहिए।
 
21 उत्तर तथा पूर्वी क्षेत्र में बना शौचालय उन्नति में भी बाधा पहुंचाता है, मानसिक तनाव देता है तथा वास्तु नियमों के विपरीत होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा करता है। यदि आपके भवन का निर्माण हो चुका है और आप वास्तु जनित दोषी से पीड़ित हैं तो निम्र उपाय करके देखिए
 
22 शौचालय की उत्तर पूर्वी दीवार में एक दर्पण लगा लें।
 
23 शौचालय के उत्तर पूर्वी कोण पर भूमि में एक छोटा सा छेद (ड्रिल) करें जिससे उत्तर-पूर्वी कोण अलग हो जाए।एक कार्बन आर्क इस प्रकार लगा लें जिससे कि उसका प्रकाश शौचालय के उत्तर-पूर्वी कोण पर पड़े।
 
24 शौचालय के ईशान कोण में एक छोटा-सा गड्ढा बना लें और उसमें एक कृत्रिम फव्वारा लगा लें जिसमें से निरंतर पानी बहता रहे।
 
25 ईशान कोण में संभव हो तो एक्वेरियम का प्रयोग करें।
 
26 सबसे सरल है कि आप ईशान में पानी से भर कर कोई बर्तन रखा करें। कांच के एक बड़े बर्तन में डली वाला नमक भरकर शौचालय में रख दिया करें और किसी रविवार को वहां इसे फलश करके पुन: नए नमक से बर्तन को भर दिया करें।
 
27 शौचालय के द्वार पर नीचे लौहे, तांबे तथा चांदी के तीन तार एक साथ दबा दें। 

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