अब तो समझ गए होंगे आप, घोसी ने क्यों लांधी अपनी सीमा ?

punjabkesari.in Sunday, Aug 02, 2015 - 05:55 PM (IST)

लखनऊ। मौका था रामपुर में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन मनाने का। सभी में उत्साह था। सपा के नेता आजम खान भी उत्साहित थे। इस बीच पत्रकार ने पूछ डाला कि इस समारोह में होने वाला खर्च किस फंड से किया जा रहा है। फिर क्या था कि आजम साहब का संतुलन बिगड़ गया और वह कह उठे, यह तालिबानी फंड है और बचा खुचा दाउद इब्राहिम ने दिया है। यानी अगर आजम साहब को गुस्सा उठे तो उन्हें तालिबान व दाउद से भी परहेज नहीं। दूसरी तरफ बिनायक सेन के घर से माओवादी साहित्य बरामद हो जाए तो उन पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। 
 
यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट किसी साहित्य को रखने या पढ़ने को अपराध नहीं मानता, क्योंकि सेन को जमानत देते वक्त यही बात कोर्ट ने कही थी कि अगर किसी के घर से गांधी से जुड़ा साहित्य बरामद हो तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह गांधी को मानता है। बिनायक सेन छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की मदद में लगे थे और सरकार ने उन्हें देशद्रोह के लिए दोषी माना। आखिर बिनायक सेन अपनी बराबरी आजम खान से कैसे करें, क्योंकि आजम खान तो अखिलेश सरकार में मुलायम के चहेते मंत्री हैं। अगर आजम खान को तालिबान शब्द से परहेज नहीं है तो फिर मोहम्मद फारूकी घोसी को याकूब मेमन की पत्नि राहीन मेेमन को राज्यसभा सदस्य बनाने की बात से क्यों परहेज हो। इसमें कोई अजूबा नहीं है। 
 
अगर इस मामले में कोई चीज अनोखी है तो वह है सपा द्वारा घोसी के खिलाफ कार्रवाई करना, क्योंकि अगर आजम खान को छुट है तो फिर यह छुट घोसी के लिए क्यों नहीं। उन्होंने भी तो सिर्फ मुलायम सिंह से राहीन के लिए आग्रह ही किया था। उत्तर प्रदेश में चुनाव को सिर्फ एक साल बाकी है। अपराध वहां जोरों पर है। बदायूं की घटना भी लोग अ्भी भूले नहीं होंगे। हाल में सपा सुप्रीमो ने खुद एक आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को कथित धमकी ही दे दी। फिर विरोध करने पर उन्हें निलंबित भी कर दिया गया। अखिलेश यादव कहते हैं कि अगर मुलायम सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री को डांट सकते हैं तो एक आईपीएस को कुछ कहने में क्या गलत है। शायद मुख्यमंत्री यह नहीं समझते कि यह पद संवैधानिक पद है और संविधान में रिश्ते का कोई मतलब नहीं। इस हिसाब से मुलायम सिंह अखिलेश को तो डांट सकते हैं लेकिन मुख्यमंत्री को नहीं। 
 
आगे बिहार में भी चुनाव होने हैं और सपा वहां भी चुनाव लड़ सकती है। जानकार भी मानते हैं कि चुनावी माहौल के चलते ही घोसी के खिलाफ यह कार्रवाई की गई है। एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टिच्यूट (आद्री) पटना के डायरेक्टर व समाजशास्त्री डा. सैबाल गुप्ता की मानें तो घोसी का बयान बिल्कुल ही बेमतलब है। घोसी को निलंबित कर सपा ने अच्छा काम किया है। हालांकि गुप्ता इस बात से भी इनकार नहीं करते कि चुनावी माहौल ने सपा को घोसी के खिलाफ कार्रवाई करने को मजबूर किया है। डाक्टर गुप्ता के मुताबिक  याकूब को शहीद के रूप में स्थापित करना खतरनाक है। याकूब को अपने किए की सजा मिली है। उसे कोर्ट द्वारा खुद को निर्दोष साबित करने का पूरा मौका दिया गया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने उसकी बात रात को भी सुनी।
 

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