द्रौपदी अौर कौरवों की पत्नियां करती ये काम, टल जाता महाभारत

punjabkesari.in Wednesday, Jul 13, 2016 - 02:46 PM (IST)

अक्सर कहा जाता है कि बड़ों का आशीर्वाद बड़ा फलदायी होता है। बड़ों के आशीर्वाद से हमें अक्सर वह भी मिल जाता है जो भगवान ने हमारे भाग्य में नहीं लिखा होता। बड़ों का आशीर्वाद होनी को अनहोनी और अनहोनी को होनी में बदल देता है। इसलिए हमें हर पल बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए। इस पर महाभारत का यह प्रसंग बड़ा ही शिक्षादायक है।
 
 
जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो दुर्योधन ने अपनी हारने वाली स्थिति को देख कर भीष्म पितामह पर अनेक कटाक्ष करते हुए एक प्रकार से उन्हें प्रताडि़त कर दिया। दुर्योधन के कटाक्ष से आहत होकर भीष्म पितामह ने घोषणा कर दी कि अगले दिन वह पांडवों का वध निश्चित तौर पर कर देंगे। जब भीष्म पितामह की इस घोषणा का पता पांडवों को चला तो वह बड़े बेचैन हो गए। सभी भीष्म पितामह के संकल्प को जानते थे। द्रौपदी ने भावी अनिष्ट को देखते हुए श्री कृष्ण के आगे प्रार्थना की। 
 
 
श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि आप सायंकाल तक प्रतीक्षा करें। जब सांझ ढल गई तो श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुंच गए। भीष्म पितामह के कक्ष के पास पहुंच कर श्री कृष्ण स्वयं तो बाहर रहे और उन्होंने द्रौपदी को कुछ समझाकर भीष्म पितामह के पास भेज दिया। द्रौपदी ने अंदर जाकर भीष्म पितामह के चरण छुए और उन्हें प्रणाम किया। जैसे ही द्रौपदी ने प्रणाम किया तो भीष्म पितामह ने उन्हें अखंड सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद दे दिया। फिर उन्होंने द्रौपदी से पूछा, ‘‘बेटी तुम इतनी रात में अकेली यहां कैसे आई हो।’’
 
 
 द्रौपदी ने कहा, ‘‘पितामह मैं अकेली नहीं आई, श्री कृष्ण मेरे साथ आए हैं और वह आपके कक्ष के बाहर खड़े हैं।’’ भीष्म पितामह अपने कक्ष के बाहर आए और दोनों ने एक-दूसरे को प्रणाम किया। 
 
 
भीष्म ने कहा, ‘‘कृष्ण तुम वास्तव में ही महान हो। मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम आप ही करवा सकते हैं।’’ 
 
 
ऐसा कह कर भीष्म पितामह वापस अपने कक्ष में चले गए और कृष्ण द्रौपदी को लेकर वापस अपने शिविर में गए। रास्ते में श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा, द्रौपदी तुम्हारे एक बार पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पांच पतियों को जीवनदान मिल गया और तुम्हारे सुहाग की रक्षा हो गई। यदि तुम प्रतिदिन भीष्म पितामह, धृतराष्ट और द्रोणाचार्य आदि को प्रणाम करती और कौरवों की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होतीं तो शायद आज इस युद्ध की नौबत ही नहीं आती।
 
 

वर्तमान में हमारे परिवार और समाज में जो इतनी समस्याएं हैं, उनका मूल कारण यही है कि हम जाने-अनजाने में अपने बड़ों की उपेक्षा कर रहे हैं। हम अपने आप में इतने मस्त हो गए हैं और अपने आपको इतना समझदार और समर्थ समझने लगे हैं कि हम कभी बड़ों के पास जाकर न तो उनसे बातचीत करते हैं न उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और न ही उनका आदर करते हुए उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं बल्कि उन्हें पुराने जमाने के और पुरानी सोच वाले बता कर हर पल उनकी उपेक्षा करते हैं। यह सत्य है कि यदि हम सब अपने बड़ों का आदर करें, उन्हें प्रणाम करें और उनसे आशीर्वाद लें तो हमारे घर परिवार और समाज में कोई समस्या ही नहीं रहेगी। बड़ों का आशीर्वाद हमारे लिए एक ऐसे अभेद्य कवच का काम करता है जिसे कोई भी अस्त्र-शस्त्र भेद नहीं सकता। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News