बिजली सुधारों को लेकर भ्रांतियां निराधार, इसका मकसद क्षेत्र को सक्षम बनाना है: आर के सिंह

punjabkesari.in Friday, Jun 26, 2020 - 08:25 PM (IST)

नयी दिल्ली, 26 जून (भाषा) बिजली मंत्री आर के सिंह ने शुक्रवार को सुधारों को लेकर फैलायी जा रही भ्रांतियों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि बिजली कानून में प्रस्तावित संशोधन और शुल्क नीति लाने का मकसद केवल क्षेत्र को व्यवहार्य और बाजार में टिके रहने में सक्षम बनाना तथा उपभोक्ताओं के हितों का ध्यान रखना है।

सिंह ने बिजली कानून में प्रस्तावित संशोधन को लेकर भ्रांतियों को दूर करने के वास्ते राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी भी लिखी है।

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की भी जिम्मेदारी संभाल रहे सिंह ने ‘भाषा’ से विशेष बातचीत में कहा, ‘‘भारत अब अधिशेष बिजली वाला देश है। बिजली की ढांचागत सुविधा के मामले में हमारी स्थिति मजबूत है। देश में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में एक लाख मेगावाट बिजली पारेषण किया जा सकता है। हमने इस क्षेत्र में हर चुनौतियों को पूरा किया है लेकिन एक चीज बाकी है, वह है, इस क्षेत्र को व्यवहार्य और बाजार में टिके रहने में सक्षम बनाना।’’
उन्होंने कहा कि बिजली क्षेत्र में सुधारों (बिजली कानून में प्रस्तावित संशोधन) को लेकर तीन भ्रांतियां फैलायी जा रही है। इसमें राज्य बिजली नियामकों में सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार राज्यों से केंद्र के अपने हाथ में लेने का दावा शमिल है।
मंत्री ने साफ तौर पर कहा, ‘‘ राज्य विद्युत नियामक आयोग (एसईआरसी) के सदस्यों / चेयरपर्सन की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकारों से लेने का कोई प्रस्ताव नहीं है। इस प्रकार के दावे पूरी तरह बेबुनियाद है।’’
उन्होंने कहा कि इस साल अप्रैल में जारी बिजली संशोधन विधेयक के मसौदे के तहत एसईआरसी के सदस्यों/चेयरपर्सन की नियुक्ति राज्य सरकारें पहले की तरह करती रहेंगी।
फिलहाल चयन समिति में एक-एक सदस्य केंद्र और राज्य सरकारों से होते हैं।
प्रस्तावित चयन समिति में भी केंद्र और राज्यों से सदस्यों की संख्या समान होगी।

मंत्री ने कहा, ‘‘एक मात्र अंतर यह है कि फिलहाल चयन समिति के अध्यक्ष उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं जबकि प्रस्तावित संशोधन में समिति के अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के मौजदा न्यायाधीश में से होंगे।’’
उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग चयन समितियों की जगह एक चयन समिति होगी जो केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) और एसईआरसी के पदों के लिये पैनल बनाएंगी।

सिंह ने आश्वस्त किया कि सीईआरसी के लिये नियुक्ति पहले की तरह केंद्र सरकार करेगी जबकि एसईआरसी के लिये राज्य सरकारें करेंगी।
प्रस्तावित संशोधन का कारण यह भी है कि अभी हर राज्य और केंद्र को हर नियुक्ति के लिये एक अलग चयन समिति गठित करना होता है और इसमें समय लगता है। कुछ मामलों में नियुक्ति में एक साल तक का समय लग जाता है जिससे काम में बाधा उत्पन्न होती है।
उन्होंने कहा कि हालांकि, जो सुझाव मिले हैं, उसके तहत अब विचार है कि हर राज्य के लिये अलग-अलग चयन समिति रहने दी जाये लेकिन उसे स्थायी समिति बना दिया जाए ताकि नियुक्ति में विलम्ब नहीं हो।

मंत्री ने कहा कि दूसरी गलत धारणा यह है कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण यानी डीबीटी ग्राहकों खासकर किसानों के हितों के खिलाफ है। उन्होंने कहा, ‘‘यह कहा जा रहा है कि अगर राज्य समय पर सब्सिडी का भुगतान नहीं करेंगे, तो ग्राहकों को दी जाने बिजली काट दी जाएगी।’’
बिजली कानून, 2003 की धारा 65 के तहत राज्य सरकार को वितरण कंपनियों को सब्सिडी की राशि अग्रिम देनी है। विचाराधीन संशोधन में यह प्रस्ताव किया गया है कि सब्सिडी अब उपभोक्ताओं को डीबीटी के जरिये उनके उस खाते में दी जाये जिसका रखरखाव वितरण कंपनियां करती हैं।
नई ‘टैरिफ पॉलिसी’ में यह व्यवस्था की गयी है कि अगर राज्य सरकार समय पर या तीन-चार महीने तक भी सब्सिडी का भुगतान करने में विफल रहती है, संबंधित उपभोक्ता की बिजली नहीं काटी जाएगी।

डीबीटी से वितरण कंपनियों को लाभ होगा। वे इस बात को लेकर निश्चिंत होंगे कि लाभार्थियों की संख्या के हिसाब से उन्हें सब्सिडी राशि मिल रही है।
उल्लेखनीय है कि केंद्र ने अबतक 56 मंत्रालयों/ विभागों से जुड़ी 419 योजनाओं में डीबीटी को लागू किया है। इससे कुल मिलाकर 1.70 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई है।

मंत्री के अनुसार सुधारों को लेकर तीसरी भ्रांति यह है कि बिजली शुल्क तय करने का अधिकार राज्य सरकारों से लिया जा रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘...यह पूरी तरह आधारहीन है। फिलहाल शुल्क का निर्धारण एसईआरसी करते हैं और मौजूदा व्यवस्था में बदलाव करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।’’


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PTI News Agency

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