आप भी गरीब घर में पैदा होकर पा सकते हैं रजवाड़ों सा जीवन

punjabkesari.in Saturday, Aug 29, 2015 - 12:04 PM (IST)

एक बार विलायत में अकाल पड़ गया। लोग भूखों मरने लगे। एक छोटे नगर में एक धनी दयालु पुरुष थे। उन्होंने सब छोटे बच्चोंं को प्रतिदिन एक रोटी देने की घोषणा कर दी। दूसरे दिन सवेरे एक बगीचे में सब बच्चे इकट्ठे हुए। उन्हें रोटियां बंटने लगीं।
 
रोटियां छोटी-बड़ी थीं। सब बच्चे एक-दूसरे को धक्का देकर बड़ी रोटी पाने का प्रयत्न कर रहे थे। केवल एक छोटी लड़की एक ओर चुपचाप खड़ी थी। वह सबके अंत में आगे बढ़ी। टोकरे में सबसे छोटी अंतिम रोटी बची थी। उसने उसे प्रसन्नता से ले लिया और घर चली आई। दूसरे दिन फिर रोटियां बांटी गईं। उस बेचारी लड़की को आज भी सबसे छोटी रोटी मिली। लड़की ने जब घर लौटकर रोटी तोड़ी तो रोटी में से सोने की एक मोहर निकली। 
 
उसकी माता ने कहा, ‘‘यह मोहर उस धनी को दे आओ।’’ लड़की दौड़ी गई मोहर देने।
 
धनी ने उसे देख कर पूछा, ‘‘तुम क्यों आई हो?’’
 
लड़की ने कहा, ‘‘मेरी रोटी में यह मोहर निकली है। आटे में गिर गई होगी। देने आई हूं। आप अपनी मोहर ले लीजिए।’’
 
धनी ने कहा, ‘‘नहीं बेटी! यह तुम्हारे संतोष का पुरस्कार है।’’
 
लड़की ने सिर हिलाकर कहा, ‘‘पर मेरे संतोष का फल तो मुझे तभी मिल गया था। मुझे धक्के नहीं खाने पड़े।’’
 

धनी बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसे अपनी धर्मपुत्री बना लिया और उसकी माता के लिए मासिक वेतन निश्चित कर दिया। वही लड़की उस धनी की उत्तराधिकारिणी हुई। 


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