स्वयं को विद्वान समझने वाले अवश्य पढ़ें...

punjabkesari.in Wednesday, Jul 27, 2016 - 01:10 PM (IST)

एक बार राजा भोज और माघ पंडित सैर करने निकले, लेकिन रास्ता भूल गए। उन्हें एक बुढिय़ा दिखाई दी। दोनों ने उसे प्रणाम करके पूछा, ‘यह रास्ता कहां जाएगा?’  
 
इस सीख को अपनाएंगे तो गूंजने लगेगा जयकार नाद
 
बुढिय़ा ने उत्तर दिया, ‘यह रास्ता तो यहीं रहेगा, इसके ऊपर चलने वाले जाएंगे। पर तुम कौन हो?’  
दोनों बोले, ‘हम तो पथिक हैं।’ 

जीवन में हर कदम पर चाहिए सफलता, गांठ बांध लें यह सीख
  
बुढिय़ा ने चट से उत्तर दिया, ‘पथिक तो दो ही हैं एक सूरज और दूसरा चंद्रमा। तुम कौन से पथिक हो?’  
 
हम तो पाहुने हैं। माघ बोले। ‘पाहुने दो ही हैं एक धन, दूसरा यौवन। तुम कौन हो? बुढिय़ा ने पूछा।’  
 
भोज बोले, ‘हम तो राजा हैं।’  
 
प्रेरणात्मक कहानी: डाकूओं से मिली सीख ने बनाया विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक
 
बुढिय़ा बोली, ‘राजा तो बस दो हैं एक इंद्र, दूसरा यमराज। 
 
तुम कौन हो?’ दोनों बोले, ‘हम तो क्षमतावान हैं।’ 
 
‘भाई क्षमतावान तो दो ही हैं, पृथ्वी और स्त्री। तुम तो इनमें से नहीं दिखते, फिर तुम कौन हो?’ भोज बोले, ‘हम साधु हैं।’  
 
बुढिय़ा बोली, ‘साधु तो बस दो ही हैं, एक शील और दूसरा संतोष।’ 
  
सच-सच कहो तुम कौन हो? माघ बोले, ‘हम परदेसी हैं।’  
 
‘जीव और पेड़ का पत्ता, परदेसी ये दो ही हैं। तुम कौन हो?’ 
 
चकित माघ पंडित बोले, ‘अब क्या कहें, हम तो हारे हुए हैं।’  
 
बुढिय़ा बोली, ‘देखो भाई, हारा हुआ तो बस एक ही है ऋण लेने वाला, तुम कौन हो?’  
 
अंत में वे हारकर उस बुद्धिमान बुढिय़ा से बोले, ‘अब क्या बताएं, हम तो कुछ नहीं जानते।  
 
सच यह है कि सब कुछ जानने वाली तू ही है।’  
 
तब कुछ गंभीर होकर वह बुढिय़ा बोली, ‘तुम दोनों को अपनी विद्वता और ऐश्वर्य का बड़ा घमंड हो गया था। मुझे पता था कि तू तो है राजा भोज और यह माघ पंडित। रास्ता इस तरफ है, पर भविष्य में कभी अहंकार मत करना।’  

अहंकार टूटते ही दोनों ने बुढिय़ा से क्षमा मांग कर अपनी गलती स्वीकार की और आगे से खुद को सामान्य मनुष्य ही मानने का प्रण किया। 


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