इतिहास के आईने से जानें क्या है कुंभ
punjabkesari.in Tuesday, Jan 22, 2019 - 04:12 PM (IST)
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कुंभ का अर्थ होता है ‘कलश’। जब देवताओं और दानवों ने मिल कर समुद्र मंथन किया तब समुद्र से 14 दुर्लभ रत्न प्रकट हुए। इनमें अमृत से भरा कलश भी प्रकट हुआ। इस अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और दानवों में धरती पर 12 वर्षों तक युद्ध होता रहा। इस युद्ध के दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं। ये बूंदें प्रयाग और हरिद्वार में गंगा जी में, उज्जैन में शिप्रा तथा नासिक में गोदावरी नदी में गिरीं। बारह वर्ष तक चले युद्ध के कारण बारह वर्षों के अंतराल के बाद इन सभी स्थानों पर कुंभ का योग बनता है जबकि हरिद्वार तथा प्रयाग में छ: वर्षों के बाद अर्थात अद्र्ध कुंभ का योग बनता है।
जब दुर्वासा ऋषि के श्राप से देवता शक्तिहीन हो गए तथा दैत्य राज बलि का तीनों लोकों में स्वामित्व था। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर प्रार्थना की और अपनी विपदा सुनाई। तब श्री भगवान बड़ी ही मधुर वाणी से बोले कि इस समय आपका संकट का काल है, दैत्य, असुर, उन्नति को प्राप्त हो रहे हैं। अत: आप सब देवता दैत्यों से मित्रता कर लो। आप देवता और दैत्य क्षीर सागर का मंथन कर अमृत प्राप्त करो तथा उसका पान करो। तब श्री भगवान की आज्ञा से देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन कर अमृत से भरे कुंभ अथवा कलश को प्राप्त किया।
सन् 1942 में प्रयाग कुंभ में पंडित मदन मोहन मालवीय जी से उस समय के वायसराय लिनलिथगो ने कुंभ में जुटी लाखों श्रद्धालुओं की संख्या में एकत्रित भीड़ को देख कहा कि इस कुंभ के मेले के आयोजन के लिए आपको कितना धन इकट्ठा करना पड़ता है और इतने लोगों को इकट्ठा करने में आप प्रचार पर कितना धन खर्च करते हैं? तब मालवीय जी बोले- कि मात्र दो पैसे।
वायसराय ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि यह कैसे संभव है? तब मालवीय जी ने जेब से पंचांग निकाला और उसे दिखाते हुए बोले कि इस दो पैसे के पंचांग से देश भर के वैदिक सनातन धर्म के श्रद्धालु, पता लगा कर श्रद्धा के वशीभूत होकर इस पावन महान कुंभ में एकत्रित होते हैं। इसलिए हमें न तो प्रचार की आवश्यकता पड़ती है न निमंत्रण पत्र भेजने की।
वास्तव में धर्म और भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा एवं आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं का संगम है यह कुंभ पर्व। अनादिकाल से चली आ रही कुंभ पर्व के महान आयोजन की परम्परा युगों-युगों तक इसी प्रकार चलती रहेगी तथा वैदिक सनातन धर्म की प्रतिष्ठा को गौरव का अनुभव करवाती रहेगी।
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