अब समय है लोगों के ‘मन की बात’ सुनने का

punjabkesari.in Thursday, Dec 13, 2018 - 03:12 AM (IST)

कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष बनने की पहली वर्षगांठ पर राहुल गांधी को मिलने वाला इससे अच्छा उपहार क्या होगा। कांग्रेस की तीन राज्यों में जीत के समाचार इस बात के गवाह बने हैं कि भाजपा इन 5 राज्यों की विधानसभा में 0-5 की लीड का स्कोर कार्ड होते हुए भी एक भी राज्य में जीत हासिल न कर सकी। कांग्रेस तथा भाजपा (दोनों प्रतिद्वंद्वी) के लिए ये नतीजे खास सबक रखते हैं। कांग्रेस के लिए प्रमुख बात यह है कि इससे पहले वह 2014 के लोकसभा चुनावों में 22 विधानसभाओं में से 20 को खो चुकी थी। मात्र पंजाब तथा पुड्डुचेरी अपवाद रहे थे। 

भाजपा का वोट शेयर बेहतर
मगर एक बात दिमाग में रखनी चाहिए कि भाजपा इन चुनावों में शिकस्त के बावजूद बेहतर वोट शेयर रखती है। नवीनतम आंकड़े दर्शाते हैं कि मध्य प्रदेश में विजेता रही कांग्रेस के वोट शेयर से ज्यादा भाजपा का ऊंची दर का मामूली फर्क से वोट शेयर ज्यादा रहा। भाजपा ने कांग्रेस पार्टी के 40.9 प्रतिशत की तुलना में 41 प्रतिशत मत हासिल किए। राजस्थान में जहां कांग्रेस ने 39.3 प्रतिशत मत हासिल किए, वहीं भाजपा के खाते में 38.8 प्रतिशत मत आए। हालांकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस तथा भाजपा में मतों की हिस्सेदारी का अंतर 43 प्रतिशत तथा 33 प्रतिशत क्रमश: रहा। 

इससे स्पष्ट है कि इन राज्यों में भाजपा ने सशक्त कैडर का निर्माण किया जिससे इस पार्टी के समर्थन के आधार की अनदेखी नहीं की जा सकती। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन तीन राज्यों में लोकसभा की 65 में से 62 सीटें जीतने वाली भाजपा को 2019 में 31 सीटों की हानि होगी। यह कहना सही नहीं होगा क्योंकि लोकसभा चुनावों में विधानसभा चुनावों की निस्बत राष्ट्रीय कारक ज्यादा मायने रखते हैं। इस तरह कांग्रेस के लिए यह सोचना भूल होगी कि उसने 2019 के आम चुनावों में जीत की पटरी पर अपनी गाड़ी दौड़ा दी है। प्रत्येक जीत से हेकड़ी भरने वाले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि पार्टी हार का आत्ममंथन करेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कांग्रेस तथा मिजोरम तथा तेलंगाना की दो क्षेत्रीय पाॢटयों को बधाई दी है। भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत के कथन से बिल्कुल ही अलग बात दिखाई दी।

राहुल ने अपना संतुलन बनाए रखा
राहुल गांधी के सिर पर जीत का सेहरा सजा है जिन पर कि चुटकुले बनाए जाते थे और ‘पप्पू’ होने का लेबल लगा था। गौमाता के प्रभाव वाले 3 राज्यों में राहुल ने अपना संतुलन बनाए रखा। वह अपने व्यवहार में हेकड़ी दिखाते नजर नहीं आए। इसकी तुलना में वह शालीन और अनथक कार्य करने वाले नजर आए। उन्होंने भाजपा के सत्ताहीन हो चुके मुख्यमंत्रियों तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बुरे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। दूसरी तरफ उन्होंने कहा कि मोदी से बहुत कुछ सीखा है। उन्होंने यह भी बात रखी कि भाजपा की तरह उनका उद्देश्य उनकी पार्टी को खत्म करना नहीं बल्कि वोटिंग के माध्यम से उनको हराना है। या यूं कहा जाए कि राहुल गांधी के पूर्व में दिए गए बयानों की तुलना में इस बार के चुनावी भाषण की रूपरेखा ज्यादा बेहतर नजर आई बल्कि यह कहना जल्दबाजी होगी कि उम्र के अनुसार उन्होंने अपने आप को ढाल लिया। ऐसा प्रतीत होता है कि अब उनके पास अच्छे परामर्शदाताओं के समूह का साथ आ गया है। 

भाजपा के समक्ष नई चुनौती
चुनावों के नतीजों ने भाजपा के पाले में एक नई चुनौती डाल दी है कि कैसे वह लोकसभा चुनावी मुहिम के लिए अपने नजरिए को बदल डाले। शायद सबसे बड़ा सबक भाजपा के लिए यह है कि योगी आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक बनाते हुए हिन्दुत्व के एजैंडे पर ज्यादा निर्भरता न दिखाई जाए। अपने भड़काऊ भाषणों तथा व्यवहारों से मीडिया का आकर्षण पाने वाले उग्र हो चुके हिन्दुत्व समर्थक एक झुंड के बलबूते भाजपा अगले वर्ष केन्द्र में वापसी नहीं कर सकती। विधानसभा चुनावों के नतीजों ने यह दिखाया है कि विकास, रोजगार, कृषि तथा आर्थिक संकट के मुद्दे पार्टी के एजैंडे की मुख्य बातों में शामिल होने चाहिएं यदि वह केन्द्र में सत्ता पर फिर से काबिज होना चाहती है। 

पार्टी के लिए यह भी बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि सत्ता के नशे में मगरूर रहना अच्छी बात नहीं। अपनी उपलब्धियों में शालीनता लाते हुए अपनी गलतियों को मानने के लिए तैयार रहना चाहिए। समय की यह भी जरूरत होगी कि अपने ही संस्करण को आगे धकेलते हुए अपनी मन की बात के माध्यम से एकतरफा बात करने की बजाय लोगों तथा मीडिया की बात को गौर से सुना जाए। अब समय आ चुका है कि ‘जनता के मन की बात’ भी सुनी जाए।-विपिन पब्बी


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Pardeep

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