Kundli Tv- भगवान श्रीकृष्ण से पहले इन्होंने गीता के रहस्य को उजागर किया था

punjabkesari.in Saturday, Dec 01, 2018 - 07:13 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
गीता की बात करें तो हर ज़ुबान पर श्रीकृष्ण का ही नाम आता है। क्योंकि हर कोई जानता है भागवत गीता के द्वारा श्रीकृष्ण ने मानव को बहुत से उपदेश दिए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं श्रीकृष्ण से भी पहले किसी ने भागवत का उपदेश दिया था। जी हां, ये सच है कुछ पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्रीकृष्ण से पहले भगवान सूर्य ने अपने किसी को गीता का महा उपदेश दिया था। तो चलिए जानते हैं आखिर कौन था जिसने सबसे पहले गीता का उपदेश लिया था। 

PunjabKesari
पौराणिक कथाओं के अनुसार कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा, मुझे एक बार युद्ध के मैदान में ले चलिए। मैं उन्हें देखना चाहता हूं, जिनसे मुझे युद्ध करना है। सामने कौरवों की विशाल सेना खड़़ी थी, जिसमें अर्जुन के सारे अपने थे- गुरु, भ्राता, मामा, दादा, सभी कौरव-बंधु। 


जिन्हें देखकर अर्जुन का मन डावांडोल होने लगा। उसने अपना गांडीव श्रीकृष्ण के चरणों पर रखकर कहा, मैं युद्ध नहीं करूंगा। ये सभी मेरे अपने है और इनको मारकर मुझे राज्य का सुख-वैभव नहीं चाहिए। 

PunjabKesari
अब सवाल ये आता है कि क्या अर्जुन को पहले से नहीं पता था कि उसे अपने ही रिश्तेदारों से युद्ध करना होगा? 


ये सब दृश्य देखकर अर्जुन के सामने घोर अंधकार छा गया। जब श्रीकृष्ण ने देखा कि अर्जुन पूरी तरह से अंधकार में खोकर कर्तव्यपरायण हो रहा है तब उन्होंने गीता का उपदेश दिया।


आपको बता दें कि ये बातें न केवल उस समय में अर्जुन के लिए जाननी ज़रूरी थी बल्कि आज के समय में हर इंसान के लिए जाननी ज़रूरी है। 

PunjabKesari
कृष्ण ने उसे कोई नए हथियार नहीं दिए थे, बल्कि आत्मशक्ति को जागृत करने के लिए ‘आत्मज्ञान’ का उपदेश दिया। कृष्ण ने कहा, जो ज्ञान मैं तुझे दे रहा हूं, यही ज्ञान आदि में सूर्य ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को दिया। 

PunjabKesari
कहा जाता है कि इस सनातन ज्ञान के प्राप्त होने से बुद्धि स्थिर हो जाती है, एकाग्रता बढ़ती है और हृदय में आनंद का संचार होता है। 

जब अर्जुन ने दिव्य चक्षु द्वारा श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप देखा, उसमें आत्मशक्ति का कंपकंपी हुई और वह युद्ध के लिए तैयार हो गया। इसका मतलब है कि व्यक्ति के अंदर एक घमासान चलता रहता है, जो महाभारत से भी बड़़ा है। लेकिन फ़र्क सिर्फ इतना है कि इस युद्ध में व्यक्ति अकेला होता है। इसलिए जीतेगा वो अकेला और हारेगा तो वो भी अकेला। इस युद्ध में व्यक्ति के अपने ही शत्रु होते हैं- काम, क्रोध, मद, लोभ, अज्ञानता। कहते हैं कि व्यक्ति को इनसे इतना मोह हो जाता है कि वे इन्हें मारना चाहता ही नहीं। व्यक्ति खुद को इतने असहाय कर लेता है कि उसे कुछ सूझता ही नहीं है कि क्या करें और क्या न करें।

PunjabKesari
इन हालातों में ही व्यक्ति अर्जुन की तरह कभी-कभी धनुष छोड़कर बैठ जाने को तत्पर हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में इंसान को कुछ ज्यादा नहीं केवल श्रीकृष्ण जैसा मार्गदर्शक चाहिए।
इस कारण शनिवार को नहीं लेते लोहा (VIDEO)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Jyoti

Recommended News

Related News