कनाडा के बुजुर्गों का दर्द

punjabkesari.in Tuesday, Nov 20, 2018 - 05:33 AM (IST)

बिना शक कनाडा की धरती को ‘स्वर्ग’ कहा जाता है। कनाडा में पले-बढ़े लोग बिना किसी भेदभाव के हंसते हुए मुस्कुराहट बांटते नजर आते हैं। हैलो, हाय, थैंक्यू, सॉरी, प्लीज जैसे शब्दों से अठखेलियां करते हुए गोरों को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि ये लोग सच में स्वर्ग का आनंद ले रहे हैं पर जब हाथ में सहारे की छड़ी, चेहरे पर झुर्रियां, बालों में सफेदी तथा आंखों की रोशनी में धुंधलापन शुरू हो जाता है तो वही स्वर्ग वाली जिंदगी नर्क जैसी प्रतीत होने लगती है। 

बचपन तथा जवानी में आनंद लेने वाले ज्यादातर गोरों की बुढ़ापे में जिंदगी उस चारदीवारी में गुजरती है जहां अपना कोई भी नजर नहीं आता। यह हैरानीजनक बात अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कनाडा के शहरों में बुजुर्गों को संभालने के लिए बने वृद्ध आश्रमों में बुजुर्गों की हालत पीड़ादायक नजर आती है। 

एक अलग दुनिया
इन ओल्ड एज होम्ज में जाकर देखा तो गोरों की एक अलग ही दुनिया नजर आई। इस दुनिया ने मेरे दिल को हिला कर रख दिया। मुझे लग रहा था कि जैसे मैं स्वर्ग की इस धरती का उलटा ही नजारा देख रहा हूं। ओल्ड एज होम के अंदर केयर टेकर लड़कियां बुजुर्ग गोरों तथा गोरियों को नाश्ता करवा रही थीं। जो चलने-फिरने के योग्य थे, वह कुर्सियों पर बैठे टेबल पर नाश्ता कर रहे थे पर कुछ कमजोर बुजुर्ग बैड पर बैठ कर सिर्फ मुंह खोल रहे थे तथा खाने-पीने का सामान लड़कियां उनके मुंह में डाल रही थीं। एक बड़े हाल में बसी इन बेबस बुजुर्गों की भीड़ को देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया। ज्यादातर बुजुर्गों की हालत दयनीय थी।

चाहे देखभाल करने वाली लड़कियां उनका अपनों से ज्यादा ध्यान रख रही थीं, फिर भी मेरे लिए यह दृश्य रूह कंपाने वाला था। बेशक यह कनाडा का कल्चर माना जा रहा है परन्तु मेरे लिए इसलिए हैरानीजनक था कि हमारे भारतीय समाज की धारणा यह है कि जब हमारे किसी अपने का आखिरी समय नजदीक आता है तो हम सभी इकट्ठे होकर उसके चले जाने को सुखमय बनाते हैं पर उस धरती पर इसके उलट धारणा है कि चले जाने के समय अपना कोई पास नहीं होता। 

मैंने पूरे हाऊस का दौरा किया। इस दौरान एक वार्ड ऐसा भी आया, जहां आम लोगों की ‘नो एंट्री’ थी। पता करने पर बताया गया कि यहां मानसिक परेशानी से पीड़ित बुजुर्ग रखे गए हैं। मैंने कोशिश करके उस वार्ड में जाने की आज्ञा ले ली। उस वार्ड ने मेरी तकलीफ को और बढ़ा दिया। वार्डन ने बताया कि हमारे हाऊस के अलावा बाकी शहरों के हाऊसों में मानसिक रोगियों की गिनती ज्यादा है। मानसिक पीड़ा झेलते बुजुर्ग इधर-उधर घूम रहे थे, कुछ बैठे हुए थे तथा कुछ लेटे हुए थे। वार्डन ने बताया कि इनमें कुछ बुजुर्गों को मानसिक दौरा इस कदर पड़ता था कि वह बाहर की तरफ दौड़ते थे। उन्हें संभालने के लिए हमें हर समय ‘अलर्ट’ रहना पड़ता है। उन्होंने मुझे कुछ बुजुर्गों की ओर इशारा करके समझाया कि इन बुजुर्गों को जब दिमागी दौरा पड़ता है तो वे घातक रूप धारण कर लेते हैं। 

पंजाबी बुजुर्ग
पर जो मैंने इसके बाद देखा वह और भी ज्यादा परेशान कर देने वाला मंजर था। एक टेबल पर एक पंजाबी बुजुर्ग व तीन पंजाबी बुजुुर्ग महिलाओं ने मेरी ओर ध्यान से देखा। वे मुझे बुलाने के इंतजार में थेे। होते भी क्यों न? गोरों की भीड़ में बैठे इन पीड़ित पंजाबियों को सामने से आता एक पंजाबी नजर आ रहा था। मैंने हाथ जोड़ कर ‘सत श्री अकाल’ कहा तो उनके चेहरों पर चमक आ गई। उन्हें प्रतीत हो रहा था कि शायद इनमें से किसी का पारिवारिक सदस्य हो। मैंने उन्हें बताया कि मैं पंजाब से आप जैसे बुजुर्गों का हाल जानने आया हूं। सारे बुजुर्ग अपनी-अपनी कहानी सुनाने लगे। एक बुजुर्ग महिला तो जोर से रोने लग पड़ी। 

वह रोती-रोती कह रही थी कि ‘‘बेटा, मेरा यहां मन नहीं लगता, मुझे इतना पता करके बता कि मुझे मेरा परिवार कब लेकर जाएगा?’’ उन पंजाबी बुजुर्गों की बातों से मेरा मन बहुत दुखी हुआ। बाद में मैंने वार्डन से उस बुजुर्ग महिला के बारे में पूछा तो उसने भरे मन से बताया कि अब इसे कोई लेने नहीं आएगा। इनमें से अधिकतर को इस बात का पता है तथा कुछ इस भ्रम में हैं। दरअसल इस चारदीवारी में सभी मौत का इंतजार कर रहे हैं। चाहे इन बुजुर्गों के वारिस इस बात से बेबसी जाहिर करते हैं कि भागदौड़ की जिंदगी में पीछे घर बैठे बीमार मां-बाप की देखभाल करने का उनके पास समय नहीं। इसलिए बुजुर्गों की बढिय़ा देखभाल के लिए ओल्ड एज होम एक बेहतर विकल्प है पर यह सब देख कर एक सवाल जरूर मन में उठता है कि कहीं जाने-अनजाने में विकसित देशों में तरक्की के लिए इंसानी रिश्तों की बलि तो नहीं चढ़ाई जा रही?-रामदास बंगड़


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Pardeep

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