Kundli Tv- 19 नवंबर को 4 महीने की नींद से जागेंगे श्रीहरि

punjabkesari.in Monday, Nov 19, 2018 - 11:49 AM (IST)

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हिंदू धर्म में कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी का बहुत महत्व है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, बता दें कि इसके अलावा इसे देवोत्थान एकादशी, देव उठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी कई नामों से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में 4 महीने की निद्रा के बाद जागते हैं जिसके बाद से तमाम तरह के शुभ और मांगलिक काम फिर से आरंभ हो जाते हैं।
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बहुत से लोगों को नहीं पता कि आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीहरि क्षीर सागर में विश्राम यानि सोने के लिए चले जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार इस दिन को  देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। जिसके बाद सभी प्रकार के शुभ और मांगलिक काम किये जाते हैं। कहने का भाव है कि इस दिन के बाद सभी तरह के शुभ काम करने वर्जित माने जाते हैं। इन चार महीनों में संपूर्ण सृष्टि की जिम्मेदारी भगवान शंकर के साथ अन्य देवी-देवताओं के कंधे पर आ जाती है।
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इस दिन धूम-धाम से देवी-देवता मनाते हैं दिवाली
देवउठनी एकादशी के इस शुभ अवसर पर भगवान विष्णु के् जागने के बाद सभी तरह के मांगलिक और शुभ कामों की शुरुआत तो होती ही है। इसके साथ ही ये भी कहा जाता है कि इसी खुशी में सभी देवी-देवता पृथ्वी पर एक साथ आकर देव दिवाली मनाते हैं। आपको बता दें कि इस बार देवोत्थान एकादशी 19 नवंबर को मनाई जा रही है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि दिवाली के समय भगवान विष्णु निद्रा में लीन होते हैं, यही कारण है कि लक्ष्मी की पूजा उनके बिना ही की जाती है। मान्यता है कि देवउठनी ग्यारस को भगवान विष्णु के उठने के बाद सभी देवों ने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारी, इसलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है।
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इस दिन होता है तुलसी-शालीग्राम का विवाह
कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन यानि देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का आयोजन किया जाता है।  भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कारण है जो इस प्रकार है, तुलसी ने पति का साथ न देकर विष्णु का साथ दिया। विष्णु के साथ हास-परिहास भी उनके असुरपति को हार दिला सकता था, उन्होंने परिहास किया। जब वह उसके साथ भस्म हो गईं, तो कहते हैं कि उनके शरीर की भस्म से तुलसी का पौधा बना। यह पौधा भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इसलिए श्रीहरि किसी भी प्रकार का भोग तुलसी पत्र के बिना स्वीकार नहीं करते। 
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Jyoti

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