Kundli Tv- यहां मरने के बाद भी चुकानी पड़ती है बड़ी रकम

punjabkesari.in Monday, Oct 01, 2018 - 12:28 PM (IST)

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हिंदू शास्त्रों में बताया गया है कि पृथ्वी पर जिसने जन्म लिया है उसका अंत होना भी निश्चय मनुष्य का अंत है। जैसे इस धर्म में बच्चे के जन्म पर बहुत से रीति-रिवाज़ों को अपनाया जाता है, वैसे ही इंसान की मृत्यु के समय पर भी कुछ रीति-रिवाज़ अपनाएं जाते हैं। ग्रंथों के अनुसार हिंदू धर्म में मृत्यु के समय व्यक्ति के शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। ज्यादातर अंतिम संस्कार की इस क्रिया को नदी किनारे निभाया जाता है। परंतु मान्यता के अनुसार किसी भी इंसान के शव का अंतिम संस्कार अगर गंगा घाट पर किया जाए तो उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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पुराणों की मानें तो काशी को मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे पावन स्थान माना जाता है। इतना ही नहीं काशी के बारे में कहा जाता है कि यहां जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है वह सीधे स्वर्ग को प्राप्त होता है। मगर आज हम आपको एक एेसे घाट के बारे में बताने जा रहे हैं जहां मूर्दों से भी टैक्स वसूला जाता है। जी हां, सुनने में अजीब लगने वाली ये बात सच है। यहां आए मुर्दों को अंतिम संस्कार के लिए कीमत चुकानी पड़ती है। यह घाट बनारस में है और ये घाट दुनिया का इकलौता ऐसा घाट है जहां पर हमेशा चिता जलती रहती है, कभी ठंडी नहीं होती।
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चिता की आग
बनारस के इस श्मशान घाट की अजीबो-गरीब रस्म के पीछे एक बहुत ही रौचक कहानी है। आइए जानते हैं क्या है वो कहानी, जिसके बाद से यहां ये रस्म शुरू हुई।
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कहा जाता है कि हरिश्चंद्र घाट पर अंतिम संस्कार की कीमत चुकाने की यह परंपरा करीब 3000 साल पुरानी है। माना जाता है कि श्मशान के रख-रखाव का जिम्मा तभी से डोम जाति के हाथ था। दरअसल टैक्स वसूलने के मौजूदा दौर की शुरुआत हुई राजा हरीशचंद्र के जमाने से। हरीशचंद्र ने एक वचन के तहत अपना राजपाट छोड़ कर डोम परिवार के पूर्वज कल्लू डोम की नौकरी की थी। इसी बीच उनके बेटे की मौत हो गई और बेटे के दाह संस्कार के लिए उन्हें मजबूरन कल्लू डोम की इजाजत मांगनी पड़ी। चूंकि बिना दान दिए तब भी अंतिम संस्कार की इजाज़त नहीं थी, इसलिए राजा हरीशचंद्र को अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा दक्षिणा के तौर पर कल्लू डोम को देना पड़ा। उसी के बाद से शवदाह के बदले टैक्स मांगने की परंपरा शुरु हो गई और जो की आज तक निभाई जा रही है।
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Jyoti

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