करोगे ऐसा तो बरसेगा पैसा

punjabkesari.in Saturday, Apr 21, 2018 - 06:29 PM (IST)

पश्चिमी जगत में धनी लोग अपने परिवार या बच्चों के लिए अधिक धन-सम्पत्ति नहीं छोड़ते हैं। अमरीका के श्री वारेन बफेट जो संसार के सबसे बड़े विनिवेशक हैं और श्री बिल गेट्स जो संसार के सबसे बड़े सॉफ्टवेयर निर्माता हैं, उन्होंने अपनी सम्पत्ति का एक बड़ा हिस्सा मानव जाति के उत्थान के लिए दान कर दिया है। श्री वारेन बफेट कहते हैं, ‘‘मैं अपने बच्चों को इतना धन देना चाहता हूं कि वे महसूस कर सकें कि वे कुछ कर सकते हैं। परन्तु उन्हें इतना अधिक भी नहीं देना चाहता कि वे कुछ कर ही न सकें।’’ 


श्री वारेन बफेट और श्री बिल गेट्स ने संसार के सभी व्यवसायियों और उद्योगपतियों से अनुरोध किया है कि वे अपने धन का कुछ भाग मानव जाति के उत्थान के लिए दान करें। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘मुझे राज्य नहीं चाहिए, स्वर्ग नहीं चाहिए, मुक्ति भी नहीं चाहिए, लेकिन मेरी इच्छा है मेरा दोबारा मानव के रूप में जन्म हो तथा मेरी भावना जरूरतमंद प्राणियों की सेवा की रहे।’’ 


आपको सच्ची शांति तभी मिलेगी जब आपका कमाया हुआ संसाधन दीन-दुखियों की तकलीफों को दूर करने में लगे।


विप्रो के अध्यक्ष श्री अजीम प्रेमजी, जो भारत की तीसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कम्पनी के मालिक हैं और तीसरे सबसे धनी भारतीय हैं, जिनकी सम्पत्ति रुपए 80 हजार करोड़ से भी अधिक है। इन्होंने रुपए 10 हजार करोड़ का दान अजीम जी प्रेम जी फाऊंडेशन को 1.13 करोड़ विप्रो के इक्विटी शेयर का ट्रांसफर कर किया है। इससे पहले उन्होंने रुपए 700 करोड़ से भी अधिक का दान अजीमजी प्रेमजी फाऊंडेशन को किया था। उन्होंने इस बात को स्पष्ट किया है कि वे विशेषकर ग्रामीण भारत में स्कूल, शिक्षा में महत्वपूर्ण बदलाव लाकर सामाजिक परिवर्तन लाने के इच्छुक हैं। 


इन्फोसिस के संस्थापक निदेशक श्री नारायण मूर्ति कहते हैं, ‘‘पैसे की ताकत इसमें है कि इससे दूसरों का दुख दूर किया जाए।’’ 


डैक्कन एयर के संस्थापक कैप्टन गोपीनाथ कहते हैं, ‘‘भारत जैसे देश में मुद्दों की कमी नहीं है। मैं महसूस करता हूं कि रोजगार देने और युवाओं को जीवन जीने का जरिया प्रदान करने से बढ़कर इस संसार में कोई भी पुण्य का कार्य नहीं है।’’


दया और प्रेम की भावना ही इंसान को दान देने के लिए अभिप्रेरित करती है। दान करने से सौभाग्य, आत्मबल और तेज तो बढ़ता ही है साथ में परिवार के अंदर सुख, शांति और धन की वृद्धि भी होती है। दान देने की भावना रहने से मनुष्य के चित्त के विकार एवं दोष दूर हो जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होता है, अच्छे संस्कार बनते हैं। अन्नदान, वस्त्र दान, विद्यादान, ज्ञानदान, श्रमदान या सेवादान कोई भी क्यों न हो, वह सौभाग्य को बढ़ाता है।


आचार्य चाणक्य ने कहा है कि अगर आप धन का संचय करते हैं लेकिन उसमें से कुछ अंश अच्छे कामों में नहीं लगाते तब आपके संचित धन में से उसी प्रकार से बदबू फैलनी शुरू हो जाती है जैसे लम्बे समय तक संचित पानी की बदबू होती है। हमें यह सोचना चाहिए कि जिस चीज का हम इस्तेमाल नहीं करते उसे हम खो देते हैं। जिस प्रकार बगैर इस्तेमाल किए बुद्धि कमजोर पड़ जाती है, बगैर इस्तेमाल किए शक्ति क्षीण हो जाती है, बगैर इस्तेमाल की हुई मशीन में जंग लग जाता है, बगैर इस्तेमाल किया समय बर्बाद हो जाता है, बगैर इस्तेमाल किया हुआ ज्ञान बोझ बन जाता है तथा बगैर इस्तेमाल किए हुए रुपए की कीमत घट जाती है। 


मनुष्य की यह मूर्खता है कि वह भगवान से ज्यादा से ज्यादा मांगता रहता है लेकिन जो उसके पास है उसका ठीक से इस्तेमाल नहीं करता। मनुष्य मृत्यु होने के समय यह पश्चाताप करता है कि मेरे पास जितने संसाधन थे मैंने उनका इस्तेमाल ठीक से नहीं किया। इसलिए जरूरी है कि आप अपने जीवन में जो आपके अंदर खासियत, गुण, बुद्धि और ज्ञान है सभी का ठीक से इस्तेमाल करें अन्यथा वे व्यर्थ जाएंगे। हम सभी चीजों में रुपए को सबसे अधिक महत्व देते हैं, इसलिए मनुष्य की इच्छा रहती है कि उसे धन-सम्पत्ति की ज्यादा से ज्यादा प्राप्ति हो ताकि उससे आराम एवं खुशी प्राप्त करूं। ज्यादा धन-सम्पत्ति इकट्ठा करने से उसको खुशी भी होती है लेकिन किसी दुर्घटनावश अगर धन-सम्पत्ति चली जाती है तब असहनीय दुख भी उसी को मिलता है। धन-सम्पत्ति की प्राप्ति से उसे संतुष्टि मिलती है, लेकिन खोने से मानसिक पीड़ा भी होती है।


हमें यह सोचना चाहिए कि किसी भी मनुष्य को उसकी दीन अवस्था में अगर हम थोड़े से धन से मदद करते हैं तो उसके जीवन में परिवर्तन आ जाएगा। जिस प्रकार बहती नदी में से एक नहर निकालकर खेतीबाड़ी की सिंचाई के लिए उसका पानी दे दिया जाता है, उसी प्रकार हमें अपने धन का एक भाग शोषितों और वंचितों के उत्थान के लिए उपयोग करना चाहिए। यहां तक कहा गया है कि दीन-दुखियों की मदद में लगाया हुआ पैसा कई गुणा वापस होकर आता है।


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Niyati Bhandari

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