विलुप्त होते विपक्ष का जिम्मेदार कौन!

punjabkesari.in Monday, Jul 31, 2017 - 12:46 PM (IST)

दर्शन की अमर कहानियों में एक थी ‘हार की जीत’। उसमें बाबा भारती एक पुजारी संत थे जिनके पास एक बलशाली घोड़ा था। एक दिन बाबा घोड़े पर हवा से बातें करते हुए जा रहे थे कि कान में आवाज  आई, ‘‘बाबा, इस दुखियारे को भी लेता चल, बीमार हूं डाक्टर को दिखाने जाना है’’। बाबा ने दया करते हुए उसे बैठा लिया। लेकिन चंद मिनटों में ही बाबा को धक्का देकर वह दुखियारा  तन कर लगाम ताने घोड़े पर बैठा था और कह रहा था ‘‘बाबा, तुम संतों को ऐसे बलवान घोड़े से क्या लेना-देना, यह तो हम डाकुओं के इस्तेमाल के लिए है’’। तब बाबा को अहसास हुआ कि दुखियारा कोई और नहीं, डाकू खड़ग सिंह है। डाकू घोड़े को लेकर अभी चंद कदम बढ़ा ही था कि बाबा कि आवाज आई। जिस पर डाकू ने कहा, बाबा कुछ भी मांग लो, दे दूंगा पर, अब यह घोड़ा नहीं दूंगा। बाबा ने घोड़े की ओर से मुंह मोड़ते हुए कहा कि घोड़ा अब तुम्हारा हुआ मैं कभी इस ओर देखूंगा भी नहीं, पर एक प्रार्थना है और वह यह कि इस घटना का जिक्र किसी से न करना। खड़ग सिंह चौंका।

‘बाबा मैं तो खुद ही आप से कहना चाहता था क्योंकि कि इस इलाके में आप का सम्मान है और लोगों को मेरा यह घोड़ा आप से छीनना अच्छा नहीं लगेगा पर आप स्वयं यह बात क्यों कह रहे हैं ? बाबा ने कहा, अगर लोगों को यह पता लगा तो वे आज से किसी दुखियारे की मदद नहीं करेंगे।’ बिहार की ताजा राजनीतिक घटनाओं के बाद अब देश में राजनीतिक वर्ग से जनता का विश्वास हमेशा-हमेशा के लिए उठ गया। यह विश्वास पहले ही से काफी कम हो गया था और राजनीति में सिद्धांत एक मजाक हो चुका था लेकिन फिर भी एक झीना पर्दा था और कई बार लगता था कि कभी यह पर्दा पूरी तरह पारदर्शी नहीं होगा। जिस देश में आजादी के लिए गांधी ने लाखों लोगों के साथ एक अहिंसक आंदोलन किया (जिसमें जबरदस्त नैतिक साहस की दरकार होती थी) उस देश में आज कोई लालू यादव 20 साल तक चारा घोटाले में कानूनी प्रक्रिया को धत्ता बताते हुए सत्ता में रह सकता है और यही नहीं लगातार अद्भुत हिमाकत दिखाते हुए भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार कर सकता है।

कोई तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व्यक्तिगत सुचिता की नई परिभाषा गड़ते हुए इसे सिर्फ अपने तक महदूद करता हुआ दूसरों के भ्रष्टाचार को मौन स्वीकृति दे सकता है। कोई वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘पत्ता भी नहीं हिलेगा मेरी मर्जी के बगैर’ के भाव में अपने मंत्रिमंडल पर ऐसी लगाम कस सकता है कि मंत्री महज सांस ही ले सकता है, लेकिन जब पूरे देश में एक नए राष्ट्रवाद के अलम्बरदार के रूप में लम्पट तत्व किसी अखलाक को घर में घुस कर गौमांस तलाशते हुए जान से मारते हैं या जब कुछ ऐसे ही तत्व किसी कारोबारी पहलू खान को सरे-राह दिन-दिहाड़े पीट-पीट कर मार देते हैं और उसका वीडियो भी उपलब्ध होता है तो वही मोदी कुछ नहीं करते।

किसी भी प्रजातंत्र में, खासकर भारत के सन्दर्भ में जहां द्वंद्वात्मक प्रजातंत्र है, विपक्ष की बड़ी भूमिका होती है। लेकिन जिस तरह सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस मृतप्राय: सड़क के कोने में पड़ी है और कभी-कभी पूंछ हिलाकर अपने जीने का संकेत दे रही है उससे साफ है कि युवाओं को अपना भविष्य भारतीय जनता पार्टी में या राष्ट्रवादी बनकर गाय के नाम पर एक समुदाय विशेष के लोगों को मार कर भारतीय जनता पार्टी में अपनी उपादेयता सिद्ध करने पर लगी है। उत्तर प्रदेश में संगीत सोम का भाजपा विधायक बनना इसी प्रक्रिया को दर्शाता है।  यही वजह है कि आज भारतीय जनता पार्टी देश की 68 प्रतिशत जनसंख्या पर अपनी राज्य सरकारों के जरिए शासन कर रही है और कांग्रेस मात्र पांच प्रतिशत पर सिमट गई है। कोई ताज्जुब नहीं कि राष्ट्रवाद की एक झूटी किन्तु अति बलशाली चेतना में बहते हुए पूरा देश यानी 90 प्रतिशत बहुसंख्यक इसी दल को अपना मुखिया बना लें।

आरोप मीडिया पर लग रहे हैं। मीडिया की भूमिका हमेशा द्वितीयक रही है प्राथमिक नहीं। जब 80 प्रतिशत एक समुदाय विशेष की सोच एक खास दिशा में जा रही हो, जब विपक्ष का मुद्दों को लेकर दूर-दूर तक नामो-निशान न मिले तो मीडिया उस भावनात्मक आंधी के खिलाफ ज्यादा दूर नहीं जा सकता। सन् 1975 में जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया तो जनमत, विपक्ष और नैतिकता का पूर्ण संबल आपातकाल के खिलाफ था। फिर भी आपने देखा कि मीडिया का कुछ वर्ग ही नहीं सर्वोच्च न्यायालय का एक धड़ा भी इंदिरा गांधी के सामने सजदा कर रहा था। आज जरूरत है कि एक संबल विपक्ष और जन-स्वीकार्यता वाला नेता सामने आए। वरना मोदी-अमित ब्रांड ‘फाइट टू फिनिश’ वार में कोई भी नहीं बचेगा। मीडिया भी नहीं, विपक्ष भी नहीं और न ही तर्क-आधारित जनमत।
(एन.के. सिंहः लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

 


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