कांग्रेस के लिए ‘संजीवनी’ का काम करेंगे सावरकर?

punjabkesari.in Monday, Dec 16, 2019 - 12:40 PM (IST)

नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): भाजपा के बनाए चक्रव्यूह में भले ही कांग्रेस बार-बार उलझी जा रही हो, लेकिन इस बार उसी के एक महानायक का नाम कांग्रेस के लिए संजीवनी बनता दिख रहा है। सावरकर को लेकर भाजपा बीते दो दिनों से राहुल गांधी पर हमलावर है। इससे राहुल अचानक फिर से राष्ट्रीय फलक पर चमकने लगे हैं। शायद राहुल के सलाहकार भी यही चाहते हैं कि वे लगातार चर्चाओं में बने रहें ताकि विपक्ष का प्रमुख चेहरा बन कर उभरें। 
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कांग्रेस की यह रणनीति दिख रही है कि राहुल गांधी को भाजपा जितना अहमियत देगी, वे उतने ही मजबूत होंगे और भाजपा के विकल्प के तौर पर कांग्रेस उभर कर सामने आएगी। लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद राहुल गांधी अध्यक्ष पद त्याग कर नेपथ्य में चले गए थे। लेकिन रामलीला मैदान में एंग्री यंग मैन की अपनी छवि को कांग्रेस के लिए उभारने के साथ ही सावरकर विवाद से राहुल ने खुद को राष्ट्रीय चर्चा में शामिल कर लिया है। भाजपा के नेता राहुल पर हमलावर हैं। कोई कह रहा है कि राहुल हजार जन्म ले लें, तब भी सावरकर नहीं बन सकते तो कोई कह रहा है कि गांधी टाइटल उधार में मिला है। 

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बहरहाल, विरोधियों के हमलों ने राहुल और कांग्रेस को चर्चाओं में लाकर खड़ा कर दिया है। देखा जाए तो परोक्ष रूप से राहुल ने सावरकर को लेकर ऐसी कोई गंभीर टिप्पणी नहीं की थी, जिससे भाजपा और उसके नेताओं को तिलमिलाने की जरूरत थी। उन्होंने इशारों में वही बात कही जो सावरकर को लेकर कांग्रेस हमेशा कहती रही है। यही कि ब्रिटिश काल में सावरकर ने खुद को जेल से रिहा करने के लिए ब्रिटिश शासन को माफीनामा भेजा था। ‘रेप इन इंडिया’ वाले बयान पर भाजपा राहुल गांधी से माफी की मांग कर रही है। इसी संदर्भ में राहुल ने कहा कि वे मर जाएंगे, माफी नहीं मांगेगे। जानकार कह रहे हैं कि सावरकर को अपने बयान में शामिल कर राहुल ने एक सियासी गुगली फेंकी है। दरअसल, अब तक भाजपा चक्रव्यूह रच कर कांग्रेस को कभी राममंदिर, कभी एनआरसी, कभी अनुच्छेद 370 तो कभी तीन तलाक में उलझाती रही है। अब पलटवार करते हुए कांग्रेस ने भाजपा को उलझाने की रणनीति अपनायी है।

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नागरिकता संशोधन कानून बना कर भाजपा एक बड़े वर्ग की सहानुभूति हासिल करने में जुटी है, तो ऐसे में सावरकर पर विवाद पैदा करना भाजपा का ध्यान भटकाने का तरीका माना जा रहा है। लेकिन बात इतनी सीमित भी नहीं है। सावरकर शिवसेना की भी कमजोरी हैं। महाराष्ट्र की महाअघाड़ी गठबंधन सरकार में कांग्रेस नेतृत्व बेमन से शिवसेना के साथ गया है। जबकि शिवसेना के साथ जाने का फैसला एनसीपी का था। कांग्रेस ने एनसीपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था, इसलिए सरकार में भी हिस्सेदार बनी। लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक का लोकसभा में समर्थन कर शिवसेना ने कांग्रेस नेतृत्व को नाराज कर दिया है। कांग्रेस अब ऐसे मौके की तलाश में है, जिससे शिवसेना से पिंड छूटे, लेकिन गठबंधन तोडऩे और सरकार से हटने का इल्जाम उसके सिर नहीं आए।


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vasudha

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