पत्नी की गर्भावस्था क्रूरता की घटनाओं को मिटा नहीं सकती: अदालत
punjabkesari.in Tuesday, Nov 25, 2025 - 05:42 PM (IST)
नेशनल डेस्क: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति के पक्ष में तलाक का आदेश देते हुए कहा कि गर्भावस्था या कुछ समय के लिए सुलह पत्नी द्वारा अपने पति के प्रति किए गए पिछले क्रूरतापूर्ण और बुरे बर्ताव को मिटा नहीं सकती। उच्च न्यायालय ने कहा कि क्रूरता का अंदाजा पूरी परिस्थितियों से लगाया जाना चाहिए, न कि सुलह के कुछ मामलों से। न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति रेणु भटनागर की पीठ ने यह बात एक कुटुंब अदालत के उस फैसले को रद्द करते हुए कही, जिसमें उस आदमी की तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया गया था।
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पीठ ने 20 नवंबर के अपने फैसले में कहा, ‘‘कुटुंब अदालत ने 2019 की शुरुआत में प्रतिवादी (पत्नी) के गर्भपात होने के आधार पर दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते होने का निष्कर्ष निकाला था। ऐसा निष्कर्ष निकालना कानूनी तौर पर सही नहीं है।'' इसमें कहा गया, ‘‘गर्भावस्था होना या कुछ समय के लिए सुलह होने से पहले की क्रूरता की घटनाएं मिट नहीं सकतीं, खासकर तब जब रिकॉर्ड से पता चलता है कि प्रतिवादी का बुरा बर्ताव, धमकियां और साथ रहने से इनकार उसके बाद भी जारी रहा।'' इस जोड़े ने मार्च 2016 में शादी की थी, और शादी में अनबन की वजह से, पति ने 2021 में अदालत में तलाक की अर्जी दी, जिसमें दावा किया गया कि उसके साथ क्रूरता की गई। दूसरी ओर, महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति और ससुराल वालों ने दहेज को लेकर उसका उत्पीड़न किया और उसे ससुराल से निकाल दिया गया।
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कुटुंब अदालत ने तलाक की अर्जी इस आधार पर खारिज कर दी कि पति क्रूरता साबित करने में नाकाम रहा और दहेज उत्पीड़न के आरोपों को ठीक से खारिज नहीं कर पाया, और 2019 की शुरुआत में पत्नी का गर्भपात दिखाता है कि दंपति के बीच अच्छा रिश्ता था। हालांकि, उच्च न्यायालय ने कुटुंब अदालत के फैसले के खिलाफ आदमी की अपील को स्वीकार कर लिया और कहा कि वह इस बात से संतुष्ट है कि दोनों पक्षों के बीच शादी पूरी तरह से टूट चुकी थी, और पति ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता का आधार सफलतापूर्वक साबित कर दिया था।
