मैरिटल रेप पर दिल्ली HC की टिप्पणी, जब सेक्स वर्कर को ना कहने का अधिकार, तो एक पत्नी को क्यों नहीं?

punjabkesari.in Friday, Jan 14, 2022 - 12:32 PM (IST)

नेशनल डेस्क: दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने मैरिटल रेप याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की।  हाईकोर्ट ने कहा कि क्या एक पत्नी को निचले पायदान पर रखा जा सकता है जो एक सेक्स वर्कर की तुलना में कम सशक्त है। हाईकोर्ट ने पूछा कि आखिर क्यों एक विवाहित महिला को सेक्स से इंकार करने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। जबकि, दूसरों को सहमति के बिना संबंध होने पर बलात्कार का मामला दर्ज करने का अधिकार है।

 

हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या सेक्स वर्कर की तुलना में भी एक पत्नी के अधिकार कम है। अगर एक सेक्स वर्कर संबंध बनाने से इंकार कर सकती है तो पत्नी क्यों नहीं। दिल्ली हाईकोर्ट के जज राजीव शकधर और जज हरि शंकर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे। इस दौरान पीठ ने ये टिप्पणी की। जस्टिस शकधर ने कहा कि सेक्स वर्कर्स को भी अपने ग्राहकों को ना कहने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि जब पति की बात आती है तो एक महिला को, जो एक पत्नी भी है, इस अधिकार से कैसे दूर रखा जा सकता है? याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश अधिवक्ता करुणा नंदी ने कहा कि शादी के मामले में सेक्स की उम्मीदें हैं, इसलिए सेक्स वर्कर के साथ भी ऐसा ही है। इस पर जस्टिस हरि शंकर ने कहा कि दोनों चीजों को एक जैसा नहीं कहा जा सकता।

 

जस्टिस हरि शंकर ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि महिला को तकलीफ हुई है। लेकिन हमें उस व्यक्ति के परिणामों को ध्यान में रखना होगा जो 10 साल की कैद के लिए उत्तरदायी है … मैं फिर से दोहराता हूं कि धारा 375 का प्रावधान यह नहीं कहता है कि बलात्कार को दंडित नहीं किया जाना चाहिए। सवाल यह है कि क्या इसे रेप की तरह सजा दी जानी चाहिए। दिल्ली हाईकोर्ट ने इससे पहले मंगलवार को कहा था कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के सम्मान में अंतर नहीं किया जा सकता और कोई महिला विवाहित हो या न हो, उसे असहमति से बनाए जाने वाले यौन संबंध को ‘ना’ कहने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि एक महिला, महिला ही होती है और उसे किसी संबंध में अलग तरीके से नहीं तौला जा सकता। 


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Content Writer

Seema Sharma

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