चीन को क्यों लगता है दलाई लामा से डर? शी जिनपिंग को तिब्बत से है कौन सा खतरा

punjabkesari.in Wednesday, Jul 02, 2025 - 01:59 PM (IST)

National Desk :  दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रमुख आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं। वर्तमान में 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, 1950 से इस पद पर कार्यरत हैं। वे केवल एक धार्मिक नेतृत्व नहीं हैं, बल्कि तिब्बत की सांस्कृतिक धरोहर और स्वायत्तता के मजबूत प्रतीक भी हैं। चीन और दलाई लामा के बीच विवाद की जड़ें कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारणों में निहित हैं। आइए, इन पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।

दलाई लामा और चीन के बीच चल रहे विवाद को समझने के लिए सबसे पहले तिब्बत के इतिहास को जानना जरूरी है। तिब्बत ऐतिहासिक रूप से एक स्वतंत्र क्षेत्र रहा है, हालांकि 13वीं से 20वीं सदी के बीच यह कई बार चीन के प्रभाव में भी रहा। 1950 में कम्युनिस्ट चीन के नेता माओ ज़ेडॉन्ग के नेतृत्व में तिब्बत पर सैन्य कब्जा हो गया और 1951 में तिब्बत को आधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा घोषित किया गया। लेकिन तिब्बत के लोग इसे स्वीकार नहीं करते और अपनी स्वतंत्रता की मांग करते हैं।

क्या है विवाद की मुख्य वजह


तिब्बत की स्वायत्तता की मांग
दलाई लामा और उनके समर्थक तिब्बत के लिए असली स्वायत्तता चाहते हैं, जिसमें धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई स्वतंत्रता शामिल हो। 1980 के दशक से दलाई लामा ने “मध्यम मार्ग” नीति अपनाई है, जिसमें वे तिब्बत को चीन के अंदर एक अधिक स्वायत्त क्षेत्र बनाने की बात कहते हैं। चीन इस मांग को तिब्बत को अलग करने की साजिश समझता है और दलाई लामा को ‘विभाजनकारी’ करार देता है।

दलाई लामा की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा
दलाई लामा को दुनिया भर में शांति और मानवाधिकार के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। उन्हें 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला है। उनकी वैश्विक लोकप्रियता और कई देशों के नेताओं से उनकी मुलाकातें चीन के लिए चिंता का विषय हैं क्योंकि वे तिब्बत के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत करती हैं। जब भारत या अमेरिका जैसे देश दलाई लामा से मिलते हैं, तो चीन इसका कड़ा विरोध करता है और इसे अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानता है।

तिब्बत में चीन की नीतियां
चीन ने तिब्बत में कठोर नीतियां लागू की हैं, जिनमें धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण, तिब्बती भाषा और संस्कृति को कमजोर करना, और वहां बड़ी संख्या में हान चीनी लोगों को बसाना शामिल है। दलाई लामा इन नीतियों की आलोचना करते हैं, जिसे बीजिंग “चीन विरोधी” गतिविधि मानता है। साथ ही, तिब्बत में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी विवाद को और बढ़ाते हैं।

दलाई लामा के उत्तराधिकारी का सवाल
दलाई लामा की उम्र बढ़ने के कारण उनके उत्तराधिकारी का मुद्दा भी विवाद का विषय है। तिब्बती परंपरा के अनुसार दलाई लामा का पुनर्जन्म होता है और नया दलाई लामा चुना जाता है। लेकिन चीन दावा करता है कि वह अगला दलाई लामा चुनने का अधिकार रखता है, जैसा उसने पंचेन लामा के मामले में किया था। दलाई लामा ने कहा है कि उनका उत्तराधिकारी तिब्बती परंपराओं के अनुसार चुना जाएगा और वह भारत या किसी अन्य देश में भी पुनर्जन्म ले सकते हैं, जो चीन के लिए चुनौतीपूर्ण है।

चीन क्यों मानता है दलाई लामा को खतरा?
चीन के लिए दलाई लामा तिब्बत में उसकी नियंत्रण और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा हैं। दलाई लामा की वैश्विक लोकप्रियता और तिब्बती समुदाय में प्रभाव चीन की सत्तावादी व्यवस्था के लिए असहज है। चीन तिब्बत को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है और दलाई लामा की मांगों को देश के एकता विरोधी गतिविधि के रूप में देखता है।

भारत का रुख
भारत ने 1959 में दलाई लामा को शरण दी और धर्मशाला में उनकी निर्वासित सरकार को भी आश्रय दिया। भारत दलाई लामा को एक धार्मिक नेता के रूप में मानता है, लेकिन यह चीन के साथ भारत के संबंधों में तनाव का भी कारण बना है।

इस प्रकार, दलाई लामा और चीन के बीच विवाद तिब्बत की स्वायत्तता, सांस्कृतिक पहचान, राजनीतिक नियंत्रण और दलाई लामा की वैश्विक छवि से जुड़ा हुआ एक जटिल मुद्दा है, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारणों से लगातार बना हुआ है।


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Content Editor

Shubham Anand

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