आखिर क्यों 100 साल तक जिंदा रहते हैं इंसान और 10 साल में साथ छोड़ा जाता है डॉगी...पढ़ें दिलचस्प शोध

punjabkesari.in Monday, Apr 18, 2022 - 01:52 PM (IST)

नेशनल डेस्क: इंसानों की औसत उम्र  70-80 साल तक होती है, कई लोगों की तो 100 के पार भी उम्र चली जाती है। लेकिन क्या ऐपने कभी इस बारे में कभी विचार किया है कि हमारे शरीर में ऐसा क्या होता है कि हम इतनी लंबी उम्र जी जाते है। वहीं अगर अपने आसपास देखें तो चूहे, कुत्ते, बिल्ली आदि जानवर कुछ ही साल तक जिंदा रह पाते हैं। ऐसा शरीर में क्या होता है कि कुछ जीवों पर उम्र का असर धीरे-धीरे दिखता है, जबकि कुछ बड़ी जल्दी बूढ़े होकर मर जाते हैं। वैज्ञानिकों ने इस गुत्थी को सुलझाने का दावा किया है। 

 

ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने बताया जीवों की उम्र का राज
स्तनपायी जीवों पर हुई एक रिसर्च के बाद ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने बताया कि जीवों की उम्र का राज उनके डीएनए में छिपा होता है। इस डीएनए में बदलाव की रफ्तार जितनी तेज होगी, जीव के जिंदा रहने का वक्त उतना ही कम होगा।

 

16 स्तनपायी जानवरों के डीएनए की स्टडी की
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन के वेलकम सेंगर इंस्टिट्यूट के साइंटिस्टों ने इंसानों के अलावा चूहे, बिल्ली, कुत्ते, घोड़े, जिराफ, शेर, खरगोश जैसे 16 स्तनपायी जानवरों के डीएनए की स्टडी की और नतीजे निकाले हैं। साइंटिस्टों ने देखा कि सभी के डीएनए में होने वाले म्यूटेशंस की संख्या लगभग एक जैसी होती है। सभी जीवों की पूरी जिंदगी में डीएनए लगभग 3200 बार म्यूटेट होता है लेकिन जिसमें जितनी जल्दी-जल्दी म्यूटेशन होते हैं, वह उतने ही कम समय तक जिंदा रह पाता है।

 

सबसे कम उम्र चूहे की
आमतौर पर 4 साल से कम जिंदा रहने वाली चुहिया के डीएनए में साल में औसतन 800 बार बदलाव होते हैं। कुत्तों में साल में लगभग 249, शेर में 160, जिराफ में 99 और इंसानों में करीब 47 बार डीएनए में म्यूटेशन होते हैं, इसी हिसाब से इनकी औसत उम्र में अंतर दिखता है।

 

इंसान का इतनी बार बदलता है म्यूटेट
रिसर्च करने वाली टीम के वैज्ञानिक डॉ. एलेक्स केगन के मुताबिक अगर इंसानों का डीएनए चुहिया के डीएनए में म्यूटेशन की रफ्तार से बदलता तो मनुष्यों की पूरी जिंदगी में औसतन 50 हजार से ज्यादा बार डीएनए म्यूटेट होता, लेकिन ऐसा नहीं होता। इंसानों में डीएनए में बदलाव साल में महज 47 बार ही होता है। डॉ कैगन ने कहा कि अलग-अलग उम्र होने के बावजूद जीवन के अंत में स्तनधारियों में डीएनए म्यूटेशन की संख्या लगभग बराबर पाई गई, ऐसा क्यों है, यह अभी हमारे लिए भी राज है। उन्होंने कहा कि अब हम ग्रीनलैंड शार्क जैसी मछलियों पर यही रिसर्च करने जा रहे हैं। इस मछली की उम्र 400 साल से भी ज्यादा होती है और इसे दुनिया में सबसे ज्यादा समय तक जीवित रहने वाला रीढ़ वाला प्राणी माना जाता है।

 

वैज्ञानिकों ने इसलिए की यह रिसर्च
वैज्ञानिकों की इस रिसर्च का मकसद जहां उम्र की गुत्थियों को सुलझाना था वहीं इसकी एक और वजह कैंसर का इलाज ढूंढना था। कहते हैं जिस जीव में जितनी ज्यादा कोशिकाएं होंगी, उसकी उम्र उतनी ही अधिक होगी और उसे कैंसर होने की संभावना भी सबसे ज्यादा होगी। डॉ. केगन कहते हैं कि यह सच नहीं लगता क्योंकि व्हेल मछली में तो इंसानों के मुकाबले अरबों-खरबों सेल्स होते हैं जबकि उनसे ज्यादा कैंसर मनुष्यों में फैलता है, इसका जवाब भी म्यूटेशन में छिपा हो सकता है, जितनी धीमे म्यूटेशन होगा, कैंसर होने की संभावना उतनी कम होगी। डॉ. केगन ने कहा कि कहते यह भी है कि जो जीव जितना ज्यादा बड़ा होगा, वह उतना ही ज्यादा जिएगा लेकिन हमारी रिसर्च कहती है कि ये सच नहीं है। छछूंदर और जिराफ की उम्र लगभग एक जितनी होती है, उनके डीएनए में म्यूटेशन की रफ्तार भी एक जैसी होती है, जबकि छछूंदर के मुकाबले जिराफ साइज में बहुत विशाल और लंबा होता है।


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Content Writer

Seema Sharma

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