आखिर क्यों आई INDIA गठबंधन में दरार ? ममता के बाद अखिलेश की पार्टी ने भी छोड़ा गठबंधन का साथ!

punjabkesari.in Wednesday, Dec 04, 2024 - 11:42 AM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत में विपक्षी दलों के बीच एक बड़ी राजनीतिक दरार सामने आई है, जब ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) और अब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (SP) ने "इंडिया" गठबंधन से किनारा कर लिया है। इस कदम से यह स्पष्ट होता है कि विपक्षी दलों के बीच अडानी मुद्दे पर मतभेद गहरे होते जा रहे हैं, जबकि अन्य मुद्दों को लेकर गठबंधन की एकजुटता में कमी आ रही है। 

अडानी मुद्दे पर बवाल, विपक्षी दलों में असहमतियां
संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने के बाद से ही अडानी समूह से जुड़ी घोटालों और वित्तीय अनियमितताओं का मुद्दा तूल पकड़ चुका है। विपक्षी दल लगातार इस मुद्दे को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उनका कहना है कि अडानी समूह के साथ सरकार की मिलीभगत के कारण देश के आर्थिक ढांचे को नुकसान हो रहा है। इस विवाद में तृणमूल कांग्रेस (TMC) और समाजवादी पार्टी (SP) जैसे प्रमुख विपक्षी दलों ने गठबंधन से दूरी बनाना शुरू कर दी है। TMC ने पहले ही अडानी मुद्दे को लेकर इंडिया गठबंधन का साथ देने से इनकार कर दिया था और अब अखिलेश यादव की पार्टी भी इस मामले से खुद को अलग कर रही है।

TMC और SP का विरोध प्रदर्शन से किनारा
मंगलवार को इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने संसद भवन के बाहर अडानी मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी), आरजेडी, आम आदमी पार्टी (AAP), द्रमुक और वाम दलों के नेता शामिल हुए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। हालांकि, इस प्रदर्शन में TMC और SP के नेताओं का कहीं नाम नहीं था। दोनों पार्टियां इस विरोध प्रदर्शन का हिस्सा नहीं बनीं, जो विपक्ष के अंदर बढ़ते मतभेदों को दर्शाता है। इंडिया गठबंधन के विरोध प्रदर्शन में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, आप नेता संजय सिंह, आरजेडी नेता मीसा भारती, शिवसेना (यूबीटी) के नेता अरविंद सावंत और अन्य विपक्षी दलों के नेता शामिल थे। इन नेताओं ने संसद में सरकार के खिलाफ अपने गुस्से का इज़हार करते हुए वॉकआउट किया। लेकिन तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेता इस प्रदर्शन से पूरी तरह बाहर रहे, जिससे इन दलों का रुख स्पष्ट हो गया।

बेरोजगारी और महंगाई की ओर ध्यान देने की आवश्यकता
TMC के नेताओं का कहना है कि संसद सत्र में अडानी मुद्दे की बजाय बेरोजगारी और महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए। उनका कहना है कि इंडिया गठबंधन इस समय बेकार की बातों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जबकि जनता के असली मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। TMC ने यह भी कहा कि पार्टी हमेशा से ही इस मुद्दे पर स्पष्ट रही है और सरकार के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा नहीं बनना चाहती, जब तक कि असल मुद्दों पर चर्चा नहीं की जाती। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया गठबंधन की बैठक बुलाई थी, लेकिन इस बैठक में ममता बनर्जी ने हिस्सा नहीं लिया। TMC ने इस बैठक में न शामिल होने की वजह यह बताई कि वे महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर ही बात करना चाहती हैं, जबकि गठबंधन अन्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। 

अखिलेश यादव ने संभल हिंसा पर की आलोचना
समाजवादी पार्टी (SP) के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी हाल ही में सरकार को आड़े हाथों लिया, लेकिन अडानी मुद्दे पर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की। अखिलेश यादव ने यूपी के संभल में हुई हिंसा को लेकर राज्य सरकार पर आरोप लगाए और कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल रही है। हालांकि, अडानी मामले का जिक्र तक उन्होंने नहीं किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वह यूपी सरकार पर हमला करने के मूड में हैं और अडानी विवाद से खुद को दूर रखना चाहते हैं। अखिलेश यादव का यह कदम विपक्षी गठबंधन में उनका अलग रुख दर्शाता है। उन्होंने साफ किया कि वह राज्य सरकार के खिलाफ मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे और अडानी विवाद से खुद को अलग रखेंगे। इससे यह भी जाहिर होता है कि समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस के समान, अडानी विवाद को केंद्रीय मुद्दा बनाने में रुचि नहीं रखती।

क्या है वजह?
ममता बनर्जी और अखिलेश यादव का गठबंधन से हटने का कारण मुख्य रूप से अडानी मुद्दे पर असहमति है। दोनों दलों का मानना है कि यह मुद्दा चुनावी राजनीति में उतनी अहमियत नहीं रखता और उन्हें इससे ज्यादा महत्व जनता से जुड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। ममता बनर्जी और अखिलेश यादव जैसे नेताओं का यह रुख इस बात का संकेत हो सकता है कि विपक्षी दलों के बीच आगामी चुनावों में एकजुटता की कमी हो सकती है।

विपक्षी गठबंधन के सामने संकट
तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन से हटने के बाद विपक्षी एकता में और भी संकट आ सकता है। दोनों दलों का यह कदम इस बात का प्रतीक है कि अडानी मुद्दे पर विपक्षी दलों के बीच स्पष्ट विभाजन हो चुका है। इस बीच, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल अब भी अडानी विवाद को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कुछ राज्यस्तरीय नेता इसे ज्यादा महत्व देने के लिए तैयार नहीं हैं।  अगर ये मतभेद इसी तरह बढ़ते रहे, तो आगामी चुनावों में विपक्षी दलों की एकजुटता पर असर पड़ सकता है।


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Content Editor

Mahima

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