ऑफ द रिकॉर्डः क्यों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी से हुए नाराज?
punjabkesari.in Thursday, Aug 27, 2020 - 05:47 AM (IST)

नेशनल डेस्कः राहुल गांधी को अभी संपन्न हुई कांग्रेस कार्यसमिति (सी.डब्ल्यू.सी.) की बैठक में पार्टी का अगला अध्यक्ष बनाने की पूरी तैयारी थी। यह होना ही था क्योंकि कोई और विकल्प है ही नहीं और सोनिया गांधी का स्वास्थ्य गिरने से चीजों को संभालना कठिन होता जा रहा है। परंतु लगता है राहुल गांधी खुद ही अपने लिए मुसीबत बुलाने पर आमादा हैं। उन्होंने पार्टी के एक के बाद एक वरिष्ठ नेताओं को नाराज कर दिया है।
सबसे पहले उन्होंने यह कहकर वरिष्ठतम नेता अहमद पटेल को अपमान वाली स्थिति में डाल दिया कि सभी नेता कांग्रेस के महासचिव प्रभारी के.सी. वेणुगोपाल को रिपोर्ट करेंगे। अहमद पटेल ने कई महीनों से अपने को सबसे दूर कर लिया और वह केवल सोनिया गांधी से मिलने आते थे। राहुल से बातचीत बंद हो चुकी थी। वेणुगोपाल पता नहीं कहां से आ गए तथा राहुल ने सभी की इच्छा के विरुद्ध उन्हें राजस्थान से राज्यसभा में भेज दिया।
यह बात अशोक गहलोत, जो सोनिया के वफादार माने जाते हैं, को चुभ गई थी। इसके अलावा राहुल गहलोत के बजाय सचिन पायलट के पक्षधर माने जाते हैं। फिर आई महाराष्ट्र से कांग्रेस की एक सीट से राज्यसभा भेजने के लिए नेता चुनने की बारी। सोनिया गांधी ने रजनी पाटिल से वायदा किया था कि यह टिकट उन्हें दी जाएगी। पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण भी दौड़ में थे। वरिष्ठ महासचिव एवं राहुल के वफादार मुकुल वासनिक भी उम्मीद लगाए बैठे थे। इन सब नेताओं को नजरअंदाज करके राहुल ने सबसे जूनियर नेता राजीव साटव, जिन्हें शायद ही कोई जानता था, को राज्यसभा भेज दिया। जाहिर है कि इससे वरिष्ठ नेताओं को गुस्सा आया।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तो अपने पुत्र दीपेंद्र हुड्डा के लिए राज्यसभा टिकट प्राप्त करने हेतु लगभग लड़ाई ही करनी पड़ी जबकि राहुल गांधी कुमारी शैल्जा को राज्यसभा भेजने की ठाने हुए थे। जब बात बनती नजर नहीं आई तो भूपेंद्र हुड्डा ने अपने विधायकों के साथ पार्टी छोडऩे की धमकी दे डाली तो सोनिया को उनकी मांग पूरी करने के लिए झुकना पड़ा। आनंद शर्मा और गुलाम नबी आजाद इस बात से क्रुद्ध थे कि 2021 में मल्लिकार्जुन खडग़े को नेता विपक्ष बनाने के लिए राज्यसभा ले आया गया। कपिल सिब्बल इस बात से कुढ़े हुए थे कि उन्हें न तो विशेष और न ही स्थायी आमंत्रित सदस्य के रूप में चुना गया। इस सबके बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इस बार घुटने टेकने के बजाय लडऩे का फैसला किया।