आखिर कश्मीर घाटी को छोड़कर जम्मू को ही क्यों निशाना बना रहे हैं आतंकी ?
punjabkesari.in Friday, Jul 12, 2024 - 08:55 AM (IST)
नेशनल डेस्क: बीते सोमवार को जम्मू-कश्मीर के कठुआ में हुए आतंकी हमले में उत्तराखंड के पांच जवान शहीद होने के बाद अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या 2019 के बाद पाक प्रायोजित आतंकी समूहों की कमर अभी भी नहीं टूटी है। एक माह के भीतर आतंकियों ने जम्मू में सात बड़े हमलों को अंजाम दिया है। मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि धारा 370 हटने के बाद से घाटी में सुरक्षा व्यवस्था इतनी ज्यादा मजबूत है कि आतंकियों के लिए वहां सेंध लगाना मुश्किल हो गया है।
इसलिए उन्होंने 90 के दशक के पैटर्न को अपनाते हुए एक बार फिर से जम्मू को निशाना बनाना शुरु कर दिया है। हमलों की एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि कश्मीर की तुलना में जम्मू की डेमोग्राफी अलग है। यहां हिंदू-मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है। ऐसे में पाकिस्तान की एजेंसी आई.एस.आई. के इशारे पर आतंकी जम्मू को निशाना बना रहे हैं, ताकि सांप्रदायिक भावनाएं उकसाकर दंगों जैसे हालात पैदा कर सकें। इससे उनकी आवाजाही और आसान हो जाएगी और वे नागरिकों, तीर्थयात्रियों समेत सेना पर भी घात लगाकर हमले कर सकेंगे।
आगामी चुनाव में अशांति फैलाना हो सकता है मकसद
आतंकी हमलों को जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने से रोकने के कदम के रूप में भी देखा जा रहा है, जो 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से पहला चुनाव होगा। आतंकवादी गुट इसलिए भी क्षेत्र में अस्थिरता और डर पैदा करना चाह रहे हैं ताकि राजनीति स्ट्रक्चर के साथ-साथ आम लोगों की भावनाओं के साथ छेड़छाड़ हो सके।
कठुआ फिर बना आतंकियों का ठिकाना
रिपोर्ट के मुताबिक नब्बे के दशक में कठुआ आतंकियों का बड़ा ठिकाना हुआ करता था, जहां से वे पूरे जम्मू-कश्मीर पर निशाना साधते थे। दरअसल इस जिले की बनावट ऐसी है कि यहां छिपना-छिपाना आसान है। जंगलों से सटे क्षेत्र में हमले के बाद आतंकी गायब हो सकते हैं, जैसा कि हाल ही में हुए हमले में हुआ है। दूसरी बड़ी वजह यह भी बताई जा रही है कि कठुआ के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा सटती है, तो दूसरी तरफ हिमाचल और पंजाब हैं। कठुआ उधमपुर, सांबा और डोडा जिलों से भी लगा हुआ है। जहां से आतंकी हमला करने के बाद वे आसानी से गायब हो सकते हैं। नब्बे के दशक में यहां सुरक्षा बलों का बेस भी हुआ करता था ताकि आतंक पर रोक लगाई जा सके।
2023 में जम्मू के भीतर 43 आतंकी हमले
बीते सोमवार को हुआ हमला कठुआ में दूसरा बड़ा अटैक था। 11 जून को हीरानगर के एक गांव में एक सुरक्षाकर्मी समेत दो आतंकी मारे गए थे। वहीं महीने भर के भीतर जम्मू में यह सातवां अटैक है। इसकी शुरुआत 9 जून को हुई थी जब आतंकियों ने रियासी में श्रद्धालुओं की बस को टारगेट किया था। 12 जून को डोडा में दो अटैक हुए थे। इसके बाद 26 जून को इसी तरह की घटना दोहराई गई थी। बता दें कि साल 2023 में भी ऐसी कोशिश हुई थी, जब जम्मू में 43 आतंकी हमले दर्ज किए गए थे। माना जा रहा है कि बीते सोमवार को हुए हमले में आतंकियों को लोकल शख्स ने ही गाइड किया होगा, वरना घटनास्थल से बचकर निकल सकना आसान नहीं था। अटैक की जिम्मेदारी आतंकी संगठन कश्मीर टाइगर्स ने ली है। ये शैडो संगठन है, जो जैश-ए-मोहम्मद के लिए काम करता है। ये उन्हीं 7 आतंकियों का ग्रुप बताया जा रहा है जिनमें से 3 को डोडा में सुरक्षाबलों ने मार गिराया था।
मानसून में बढ़ जाती है आतंकी घुसपैठ
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकी हमले बरसात के दौरान बढ़ जाते हैं। चूंकि तेज बारिश के दौरान मॉनिटरिंग सिस्टम पर असर होता है और फेंसिंग और इंफ्रारेड लाइट्स कमजोर या खराब हो जाती हैं। इसका फायदा उठाकर आतंकी सीमा पार से आकर आतंक मचा जाते हैं।
हाइब्रिड कम्युनिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं आतंकी
आतंकी इन मंसूबों को इतनी खामोशी से अंजाम दे रहे हैं कि प्लानिंग की भनक तक खुफिया एजेंसियों को नहीं लग रही है। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि आतंकी हाइब्रिड कम्युनिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं। आतंकियों द्वारा पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से संपर्क साधने के लिए हाइब्रिड अल्ट्रासेट सिस्टम का इस्तेमाल किया गया था। सेना को सर्च ऑपरेशन के दौरान ऐसे की अल्ट्रासेट सिस्टम मिले हैं। आतंकी हैंडसेट से कंप्रेस्ड डाटा को पाकिस्तान में एक सेंट्रल सर्वर तक पहुंचने के लिए चीनी सैटेलाइट्स पर निर्भर रहते हैं। इसके बाद यह सर्वर मैसेज को उनके निर्दिष्ट प्राप्तकर्ताओं को भेजता है और यह हाइब्रिड तंत्र सुरक्षा एजेंसियों खुफिया जानकारी जुटाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे उपकरणों की पकड़ में नहीं आता है।
जम्मू सेक्टर एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र
पाकिस्तान कश्मीर में कुछ खास करने में सफल नहीं हो रहा है, वहीं जम्मू क्षेत्र में समान स्तर की खुफिया जानकारी मौजूद नहीं है। इसलिए आतंकी सॉफ्ट टारगेट को निशाना बना रहे हैं। वे अस्थाई चौकियां, वाहन चौकियां और यहां तक कि नागरिकों को भी निशाना बना रहे हैं। पुलिस और सुरक्षा बलों की महत्वपूर्ण सफलताओं के बावजूद, जम्मू सेक्टर एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है। मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करने और कम से कम स्थानीय लोगों के समर्थन के कारण लश्कर और जैश मॉड्यूल को ट्रैक करना मुश्किल हो रहा है।
स्थानीय आबादी के समर्थन जुटाने के प्रयास
राजौरी और पुंछ में पुलिस ने चौकियां स्थापित की हैं और जवानों को तैनात किया है। जंगलों में जहां कोई नहीं जाता, आतंकी वहां अपना ठिकाना बनाते हैं। कुछ दिन पहले ऐसी ही जगह पर सुरक्षाबलों की आतंकियों से मुठभेड़ हुई थी। जिसके बाद आतंकवादी भाग गए थे। आतंकवाद विरोधी प्रयासों में स्थानीय आबादी का समर्थन महत्वपूर्ण रहा है। अब स्थानीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सभी गांवों में एक नेटवर्क बनाया जा रहा है, साथ ही ग्राम रक्षा समिति को भी एक्टिव किया जा रहा है। ।जम्मू में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है, लेकिन सुरक्षाबल हाई अलर्ट पर हैं, स्थानीय आबादी के समर्थन से क्षेत्र में आतंकवाद से निपटने के प्रयास तेज किए गए हैं।