किसने दी थी गोडसे को बंदूक, जिससे हुई थी गांधी जी की हत्या, 500 रूपए में हुई थी डील

punjabkesari.in Tuesday, Jan 30, 2024 - 04:57 PM (IST)

नेशनल डेस्क: 30 जनवरी 1948 की वो शाम जब महात्मा गांधी ने सरदार पटेल के साथ अपनी आखिरी बातचीत के बाद भोजन किया था। उस दिन उनके खाने में डेढ़ कप बकरी का दूध, सब्जियों का सूप और तीन संतरे भी शामिल थे। उस वक्त वह अपने भोजन के साथ-साथ कताई भी कर रहे थे। इसी दौरान पटेल की बेटी मनुबेन ने बापू से आकर कहा कि वह पहले ही प्रार्थना सभा के लिए लेट हो चुके हैं, इस लिए उन्हें चलना चाहिए। यह सुन बापू उठ खड़े हुए और मनु ने उनकी कलम, चश्मे का डिब्बा, नोटबुक, प्रार्थना की माला और थूकदान को उठाय। इसके बाद मनु बापू को सहारा देते हुए बाहर निकलीं। 

30 जनवरी 1948 को क्या हुआ था?
30 जनवरी की उस शाम दिल्ली की बिड़ला हाउस में मौजूद लेखक और पत्रकार विंसेंट शीन अपनी किताब ‘लीड, काइंडली लाइट’ में लिखते हैं कि मैं 5 बजे से कुछ पहले ही बिड़ला हाउस में दाखिल हुआ था। बीबीसी दिल्ली के संवाददाता बॉब स्टिमसन वहां पहले से मौजूद थे। उसी वक्त बॉब ने अपनी घड़ी की तरफ देखा और कहा, ‘बड़ा अजीब है.. गांधी जी कभी इतनी देर नहीं करते…’ हम दोनों यह चर्चा कर ही रहे थे कि बॉब ने कहा- वह आ गए। उस वक्त घड़ी में 5:12 हो रहे थे।

पेंगुइन से पब्लिश्ड अपनी किताब ‘महात्मा गांधी: मृत्यु और पुनरुत्थान’ में मकरंद परांजपे लिखते हैं कि बापू जब प्रार्थना स्थल पर पहुंचे तो खाकी वस्त्र पहने एक नौजवान भीड़ में से उनकी तरफ आया और प्रणाम करने के लिए झुका। वह शख्स कोई और नहीं नाथूराम गोडसे था। मनुबेन जब उसे पीछे हटने को कहने लगीं तो उसने उन्हें धकेल दिया। ठीक उसी वक्त गोडने ने अपनी पिस्तौल निकाली और प्वाइंट ब्लैंक से एक के बाद एक लगातार 3 गोलियां चला दीं। जब तक हम में से कोई कुछ समझ पाता, बापू वहीं लहूलुहान होकर वहीं गिर पड़े।

कहानी एम1934 बेरेटा की
बता दें कि नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को जिस पिस्तौल से गोली मारी वह सीरियल नंबर 606824 वाली 7 चैंबर की सेमी-ऑटोमेटिक एम1934 बेरेटा की पिस्टल थी। उन दिनों बेरेटा पिस्टल भारत में बहुतमुश्किल से उपलब्ध थी। हालांकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इटली समेत कई देशों ने इसका इस्तेमाल किया था। हालांकि बेरेटा अपने अचूक निशाने के लिए मशहूर मानी जाती थी और कभी धोखा भी नहीं देती थी। 

प्रथम विश्व युद्ध और हथियार
वैसे तो बेरेटा बनाने वाली कंपनी साल 1526 से वेनिस में बंदूक के बैरल का निर्माण किया करती थी, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के दौरान कंपनी का बिजनेस अचानक से आगे बढ़ने लगा। 1915 में जब इटली के सैनिकों को हथियार सप्लाई होने शुरू हुए तो  इसी दौरान बंदूक के निर्माण की शुरुआत भी हो गई। इस पिस्तौल की गुणवत्ता और विश्वसनीयता इतनी सटीक थीं कि देखते-देखते यह सैनिकों की सबसे पसंदीदा बन गई।1930 में जर्मनी की वाल्थर पीपी पिस्टल के बाद एम 1934 का आगमन हुआ। बैरेटा एम1934 एक कॉम्पैक्ट और हल्की बंदूक थी, लेकिन आकार के विपरीत इसका कारतूस पैक बहुत मजबूत था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बैरेटा ने दस लाख से अधिक एम1934 पिस्टल बेची थी।

कैसे आई भारत में यह बंदूक
वास्तव में यह बंदूक किसकी थी इसका आज तक पता नहीं चल पाया है, लेकिन इसके सीरियल नंबर से कुछ तो जरुर पता लगता है। जैसे की यह पिस्तौल साल 1934 की मैन्युफैक्चर थी, या फिर यह साल 1934 या 1935 में इटली आर्मी के किसी बड़े अफसर को मिली थी। अब सवाल यह था कि महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को यह पिस्तौल कैसे मिली ? इतिहासकार और लेखक डॉमिनिक लापिर और लेरी कॉलिन्स ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में बताया हैं कि नाथूराम गोडसे ने पहले दिल्ली के शरणार्थी शिविरों से पिस्तौल हासिल करने की कोशिश की थी लेकिन उस वक्त वह नाकाम रहा। आखिरकार दिल्ली से 194 मील दूर ग्वालियर में जा कर उसकी यह कोशिश सफल हुई। गांधी की हत्या से तीन दिन पहले 27 जनवरी 1948 को ग्वालियर में उसे यह पिस्टल मिली। 

500 रुपये का था सौदा
अप्पू एस्थोस सुरेश और प्रियंका कोटामराजू ने अपनी किताब ‘द मर्डरर, द मोनार्क एंड द फकीर’ में लिखती हैं कि नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे एक अच्छे हथियार की तलाश में ग्वालियर पहुंचे थे। उस वक्त गोडसे के पास हथियार के नाम पर सिर्फ एक देशी कट्टा था, लेकिन वह उस वक्त उसपर भरोसा नहीं करना चाहता था। जब उन्होंने परचुरे से मदद मांगी तो परचुरे ने हथियार सप्लायर गंगाधर दंडवते से संपर्क किया, लेकिन इतने शॉर्ट नोटिस पर अच्छा हथियार मिलना थोड़ा मुश्किल सा था। थक-हारकर जब गोडसे HRS अफसर जगदीश गोयल के पास पहुंचा तो 500 रुपये के बदले उनकी खुद की पिस्तौल को ही मांग लिया। उस समय 24 साल के गोयल अपना हथियार देने को तैयार हो गए। गोडसे ने उन्हें 300 रुपये एडवांस में दिये और 200 बाद में देने का वादा किया था। 
 


 


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Content Editor

Mahima

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