जब Ford ने की टाटा की बेइज्जती, नौ साल बाद लिया अपमान का बदला!

punjabkesari.in Sunday, Jun 07, 2020 - 04:51 PM (IST)

नेशनल डेस्क: रतन टाटा दुनिया के सबसे सम्मानित उद्योगपति में से एक हैं। टाटा संस के चेयरमैन 83 वर्षीय रतन टाटा को आज उनकी उदारता, दयालुता, जुनून और व्यावसायिक नैतिकता के लिए जाना जाता है। टाटा ने भारत की पहली स्वदेशी और निर्मित कार Tata Indica, और भारत की पहली SUV टाटा सफारी को लॉन्च कर देश के ऑटोमोबाइल क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक समय ऐसा था जब रतन टाटा अपनी कंपनी बेचने जा रहे थे।

 

टाटा ने बहुत बार इस बात का ज़िक्र किया है कि भारत की पहली स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित कार को बनाते हुए उन्हें किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने भारत की पहली निर्मित कार तो बनाई लेकिन पैसेंजर व्हीकल क्षेत्र में प्रवेश करना उनके लिए चुनौतियों की शुरुआत थी। कहा जाता है कि 1998 में, जब टाटा की कंपनी ने इस क्षेत्र में अपना कदम रखा तो ये गलत समय पर लिया गया फैसला साबित हुआ। रतन टाटा ने इस प्रोजेक्ट पर खूब मेहनत की लेकिन उनका ये प्रोजेक्ट सफल नहीं हो पाया। टाटा मोटर्स को भारी नुकसान हो गया और घाटे से उबरने के लिए शेयरहोल्डर्स ने कंपनी को बेचने का सुझाव दिया। इसके बाद जो हुआ उसने रतन टाटा और कंपनी का इतिहास बदल दिया।

 

दरअसल, रतन टाटा अपनी कंपनी को बेचने का प्रस्ताव लेकर अमेरिका पहुंचे, वहां वह फोर्ड मोटर के हेड ऑफिस गए। उनकी कंपनी के शेयरहोल्डर्स भी उनके साथ थे। फोर्ड कंपनी के साथ रतन टाटा की तीन घंटे की मीटिंग चली। ख्याल तो कंपनी बेचने का था लेकिन फोर्ड के अधिकारीयों ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस दौरान फोर्ड के चेयरमैन ने रतन टाटा से बहुत बदसलूकी से कहा था। जब तुम्हे इस बिजनेस का कोई ज्ञान नहीं था तो, तुमने इस कार को लॉन्च करने में इतना पैसा क्यों लगाया? हम तुम्हारी कंपनी को खरीद कर तुम पर अहसान कर रहे है।

 

रतन टाटा पहले ही अपनी कंपनी को बेचने के प्रस्ताव से दुखी थे, और इस बात ने उन्हें बेहद निराश किया। वे मीटिंग को अधूरा छोड़कर भारत लौट आये और टाटा मोटर्स को नहीं बेचने का फैसला किया। कहते हैं सफलता सबसे अच्छा बदला है। टाटा ने एक बार फिर मेहनत की और इस बार कंपनी सफलता मिली। करीब नौ साल बाद इतिहास ने खुद को दोहराया। लेकिन इस बार बात कुछ अलग थी। 2008 तक जहां टाटा मोटर्स का मुनाफा कई गुना बढ़ गया तो वहीं फोर्ड घाटे के कारण दिवालिया होने के कगार पर आ गई। इस समय रतन टाटा ने फोर्ड की जेएलआर यानि जगुआर लेंड रोवर खरीदने का प्रस्ताव रखा, जिनके ही कारण कंपनी घाटे में गई थी। 

 

टाटा मोटर्स की कायापलट और उसकी ग्रोथ में अहम भूमिका निभाने वाले काडले के मुताबिक यह 1999 था और फिर 2008 आया, उसी फोर्ड का जगुआर और लैंड रोवर हमारे द्वारा खरीदा गया था। फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने रतन टाटा को धन्यवाद देते हुए कहा था कि आप जेएलआर को खरीदकर हम पर बहुत बड़ा उपकार कर रहे हैं। काडले बताते हैं कि न केवल टाटा ने जेएलआर को खरीदा, बल्कि कुछ साल बाद में जेएलआर ब्रांड को मजबूती मिली और आज यह टाटा मोटर्स का बड़ा ब्रांड बन गया। हाल ही में रतन टाटा ने भारत की पहली निर्मित कार टाटा इंडिका लांच की एक फोटो शेयर की और कैप्शन में लिखा कि सभी ने हमें बताया कि यह एक जॉइंट वेंचर या एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी के साथ साझेदारी किए बिना नहीं किया जा सकता है। अगर मैंने ऐसा किया, तो मैं असफल रहूंगा। लेकिन हम वैसे भी आगे बढ़ गए। तकनीकी दिक्क्तें आईं और हमें कई सबक सीखे। नई बुलंदियों पर पहुंचना एक अद्भुत अनुभव था। हार मानने के मौके बहुत से थे। हमने अपना काम जारी रखा, हर परेशानी पर काम किया, और यह भारत की पहली स्वदेशी कार, द टाटा इंडिका का जन्म था।


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vasudha

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