क्या है कश्मीर का तुलबुल प्रोजेक्ट, जिससे पाकिस्तान को शुरु से रही है आपत्ति?
punjabkesari.in Saturday, May 17, 2025 - 02:17 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत-पाकिस्तान के बीच एक बार फिर झेलम नदी चर्चा में है। वजह है तुलबुल परियोजना यानी Tulbul Navigation Project। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस परियोजना को फिर से शुरू करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि इससे कश्मीरियों को सीधा फायदा मिलेगा। लेकिन उनकी इस बात ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने इसे भावनाएं भड़काने वाला कदम बताया है। वहीं केंद्र सरकार पहले ही सिंधु जल संधि को स्थगित कर चुकी है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर तुलबुल प्रोजेक्ट है क्या, पाकिस्तान इससे क्यों घबरा रहा है और इसे फिर से शुरू करने पर क्या असर होगा?
क्या है तुलबुल परियोजना?
तुलबुल प्रोजेक्ट जम्मू-कश्मीर में झेलम नदी पर स्थित है। इसका निर्माण वुलर झील के पास किया जाना था। यह एक नेविगेशन लॉक-कम-कंट्रोल स्ट्रक्चर यानी पानी का नियंत्रण करने वाला बांध है।
इस परियोजना की शुरुआत 1984 में हुई थी। इसका मकसद था:
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झेलम नदी के प्रवाह को नियंत्रित करना
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सर्दियों में नौकायन (शिपिंग) को संभव बनाना
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खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था करना
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बिजली पैदा करना
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और कश्मीर में 100 किलोमीटर लंबा जल मार्ग (वाटरवे) बनाना
लेकिन 1987 में पाकिस्तान ने इसका विरोध किया और कहा कि यह सिंधु जल समझौते का उल्लंघन है। इसके बाद यह परियोजना रोक दी गई।
पाकिस्तान को क्या है आपत्ति?
पाकिस्तान को डर है कि यदि तुलबुल प्रोजेक्ट पूरा हो गया तो भारत झेलम नदी का बहाव अपने हिसाब से नियंत्रित कर पाएगा। झेलम, भारत से निकलकर पाकिस्तान में बहती है, इसलिए इस नदी पर नियंत्रण भारत को रणनीतिक बढ़त देगा।
सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) के तहत:
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चिनाब, झेलम और सिंधु नदी पर पाकिस्तान का अधिकार है
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जबकि ब्यास, सतलुज और रावी नदी पर भारत को पूरा अधिकार है
भारत को केवल इतना ही अधिकार है कि वह झेलम, चिनाब और सिंधु नदियों का आंशिक प्रयोग कर सकता है, जिससे नदी के प्रवाह पर कोई असर न पड़े।
पाकिस्तान का दावा है कि अगर भारत तुलबुल बांध बना लेता है तो झेलम का पानी धीरे-धीरे छोड़कर, वह पाकिस्तान में सूखा पैदा कर सकता है।
भारत के लिए क्यों जरूरी है यह प्रोजेक्ट?
भारत के लिए यह परियोजना कई मायनों में अहम है:
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इससे जम्मू-कश्मीर में सिंचाई सुविधाएं बेहतर होंगी।
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कश्मीर को सस्ता जल परिवहन मार्ग मिलेगा।
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नदी पर नियंत्रण से बाढ़ नियंत्रण और बिजली उत्पादन आसान होगा।
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पाकिस्तान पर रणनीतिक दबाव बनाया जा सकेगा।
वहीं उमर अब्दुल्ला का कहना है कि "अगर पाकिस्तान आतंकवाद को बंद नहीं करता, तो हम अपने संसाधनों का इस्तेमाल करने से पीछे क्यों हटें?"
राजनीति क्यों गरमा रही है?
जहां एक तरफ उमर अब्दुल्ला इस परियोजना को फिर से शुरू करने की वकालत कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ महबूबा मुफ्ती इसे भावनाएं भड़काने वाला और युद्ध की ओर ले जाने वाला कदम बता रही हैं। महबूबा का तर्क है कि जब भारत-पाक हाल ही में युद्ध के कगार से लौटे हैं, तब इस तरह की बातें करना राजनीतिक भड़काव है। लेकिन दूसरी ओर सरकार का रुख स्पष्ट है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं "खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते"। यानि अगर पाकिस्तान आतंकवाद बंद नहीं करता तो सिंधु जल समझौते का पालन भी नहीं होगा।