जानिए ,आखिर क्या है कावेरी विवाद,क्यों भड़क रही हिंसा

punjabkesari.in Monday, Sep 12, 2016 - 10:16 PM (IST)

नई दिल्ली: कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक एक बार फिर से आमने-सामने हैं । जल बंटवारे को लेकर चल रहा विवाद 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। उस वक्त ब्रिटिश राज के तहत ये विवाद मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच शुरू हुआ था। विवाद पर कानूनी शुरुआत 1892 और 1924 को हुए समझौतों की वजह से हुई जोकि मैसूर के राजपरिवार और मद्रास प्रेसिडेंसी के बीच हुर्ई थी। सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद केंद्र सरकार ने 1990 में कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया।
 
विवाद का रहा है लंबा इतिहास
इस नदी के जल के बंटवारे को लेकर इन राज्यों में विवाद का एक लम्बा इतिहास है। 1924 में इन दोनों के बीच एक समझौता हुआ। लेकिन बाद में इस विवाद में केरल और पांडिचारी भी शामिल हो गए और यह विवाद और गंभीर हो गया।
 
भारत सरकार द्वारा 1972 में बनाई गई एक कमेटी की रिपोर्ट और विशेषज्ञों की सिफारिशों के बाद अगस्त 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एक समझौता हुआ। समझौते की घोषणा संसद में भी की गई। लेकिन समझौते का पालन नहीं हुआ और ये विवाद चलता रहा। 
 
इसके बाद जुलाई 1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत इस मामले को सुलझाने के लिए आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार से एक न्यायाधिकरण के गठन किए जाने का अनुरोध किया। इस बीच तमिलनाडु के कुछ किसानों की याचिका की सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस मामले में न्यायाधिकरण गठित करने का निर्देश दिया।
 
1991 में अंतरिम आदेश पारित किया गया
1991 में न्यायाधिकरण ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक कावेरी जल का एक तय हिस्सा तमिलनाडु को देगा। हर महीने कितना पानी छोड़ा जाएगा, ये भी तय किया गया। हालांकि लेकिन इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ। इस बीच तमिलनाडु इस अंतरिम आदेश को लागू करने के लिए जोर देने लगा। आदेश को लागू करने के लिए एक याचिका भी तमिलनाडु उच्चतम न्यायालय में दाखिल की। इसके बाद  मामला और जटिल होता गया।

साल 2007 में ट्रिब्यूनल ने दिया अपना अंतिम फैसला
साल 2007 में ट्रिब्यूनल ने अपने अंतिम फैसला देते हुए कहा कि तमिलनाडु को 419 टीएमसीएफटी पानी मिलना चाहिए, कोर्ट ने जो आदेश दिया है, ये उसका दोगुना है यही वजह है कि कर्नाटक इस आदेश से संतुष्ट नही है। 2007 के आर्डर से पहले तलिमनाडु ने 562 टीएमसीएफटी पानी की मांग की जोकि कावेरी बेसिन में मौजूद पानी का तीन चौथाई हिस्सा था। 
 
वहीं कर्नाटक ने 465 टीएमसीएफटी पानी की मांग की जोकि उपलब्ध पानी का दो तिहाई हिस्सा था। इस साल अगस्त में तमिलनाडु सरकार ने कहा कि कर्नाटक ने 50,0052 टीएमसीएफटी पानी कम छोड़ा है। वही कर्नाटक सरकार ने कहा कि वो कावेरी का और पानी तमिलनाडु को नहीं दे सकते क्योंकि कम बारिश की वजह से पानी का रिजर्व आधा है।
 
कर्नाटक के सीएम ने की शांति की अपील
बता दें इससे पहले कोर्ट ने 15000 क्यूसेक पानी रोजाना छोडऩे का आदेश दिया था। कावेरी विवाद में हिंसक प्रदर्शन पर कर्नाटक के सीएम ने कहा कि दोनों राज्यों के लोगों को शांति बरतने की जरूरत है। हिंसक प्रदर्शन से किसी भी राज्य का फायदा नहीं होने वाला है। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले पर कर्नाटक के गृहमंत्री जी परमेश्वरा ने कहा कि अदालत ने पानी की मात्रा को घटा दिया है लेकिन दिनों की संख्या में इजाफा कर दिया है। इसे न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है। कर्नाटक सरकार सुप्रीम कोर्ट में 20 सितंबर के बाद एक बार फिर अपील करेगी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोगों को सम्मान करना चाहिए। 

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