अगर ईरान में न्यूक्लियर लीकेज हुआ तो? रेडिएशन से उठेगा तबाही का तूफान, खाड़ी देश भी निशाने पर
punjabkesari.in Sunday, Jun 22, 2025 - 01:04 PM (IST)

नेशनल डेस्क: मध्य पूर्व में तनाव एक बार फिर विस्फोटक मोड़ पर पहुंच गया है। अमेरिका ने ईरान के खिलाफ बड़ा सैन्य कदम उठाते हुए उसके प्रमुख परमाणु ठिकानों पर बंकर बस्टर बम और टॉमहॉक मिसाइलें दाग दी हैं। सबसे बड़ा हमला फोर्डो, नतांज और एस्फाहान जैसी उन साइट्स पर किया गया है, जो ईरान के न्यूक्लियर कार्यक्रम की रीढ़ मानी जाती हैं। इन हमलों के बाद सबसे बड़ी चिंता उभरी—क्या इन हमलों से रेडिएशन लीक हुआ है?
हमले और दावे
ईरान की ओर से जारी किए गए शुरुआती बयान में कहा गया है कि हमले के बावजूद किसी भी परमाणु ठिकाने से रेडिएशन का कोई रिसाव नहीं हुआ है। जांच के लिए इस्तेमाल की गई स्पेशल मशीनों ने पूरे क्षेत्र की स्कैनिंग की, जिसके बाद अधिकारियों ने पुष्टि की कि आसपास के रिहायशी इलाकों में लोग सुरक्षित हैं। सऊदी अरब समेत कई खाड़ी देशों ने भी बताया कि उनके पर्यावरण या रेडियोलॉजिकल स्टेशनों पर किसी रेडियोधर्मी प्रभाव के संकेत नहीं मिले हैं।
क्या सच में खतरा टला है?
हालांकि सतह पर सब कुछ सामान्य दिख रहा है, लेकिन विशेषज्ञ इस स्थिति को हल्के में लेने को तैयार नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख रफाएल ग्रोसी ने आशंका जताई है कि यदि यूरेनियम प्रोसेसिंग यूनिट्स में कोई नुकसान हुआ हो, तो विकिरण फैलने का खतरा बना रहेगा। उनका कहना है कि अगर बड़ी मात्रा में रेडिएशन लीक हुआ, तो पूरा मिडिल ईस्ट इसकी चपेट में आ सकता है—चेरनोबिल जैसी त्रासदी की पुनरावृत्ति संभव है।
कहां से आ सकता है सबसे बड़ा खतरा?
फोर्डो और नतांज जैसे ठिकाने जमीन के भीतर हैं, जिससे रेडिएशन सीमित दायरे में रह सकता है—2 से 5 किलोमीटर के बीच। मगर बुशेहर न्यूक्लियर प्लांट के मामले में स्थिति बेहद संवेदनशील मानी जा रही है। यह प्लांट समुद्र किनारे स्थित है और पूरी तरह ऑपरेशनल है। यदि इस पर हमला होता है, तो रेडियोधर्मी तत्व हवा और पानी के जरिए फैल सकते हैं। इससे खाड़ी देशों में जल संकट और स्वास्थ्य संकट खड़ा हो सकता है, क्योंकि कई देश पीने के पानी के लिए समुद्र पर निर्भर हैं।
रेडिएशन लीक कैसे हो सकता है?
न्यूक्लियर फैसिलिटी में सेंट्रिफ्यूज लगे होते हैं, जो यूरेनियम को प्रोसेस कर गैसीय रूप में यूरेनियम हेक्साफ्लुरोइड बनाते हैं। किसी विस्फोट की स्थिति में ये सेंट्रिफ्यूज फट सकते हैं, जिससे यह गैस वातावरण में फैल सकती है। यह गैस अगर किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती है, तो तत्काल मौत हो सकती है। त्वचा जलना, उल्टियां, बेहोशी, और ऑर्गन फेलियर जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं।
क्या होगा असर?
ऐसे रेडिएशन के कारण कैंसर, थायरॉइड डिसऑर्डर, ल्यूकीमिया, प्रजनन क्षमता में गिरावट और बच्चों में जन्मजात विकार जैसी समस्याएं सामने आ सकती हैं। रेडिएशन मिट्टी और पानी में मिलकर लंबे समय तक क्षेत्र को असुरक्षित बना सकता है। चेरनोबिल और फुकुशिमा की घटनाएं इस बात का गवाह हैं कि ऐसे रिसाव का असर दशकों तक रहता है।
पर्यावरणीय जोखिम कितना बड़ा?
ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की परमाणु वैज्ञानिक प्रो. कैथरीन हिगली का मानना है कि ईरान की वर्तमान परमाणु साइट्स में अभी हथियार नहीं बनाए जा रहे, बल्कि उन पर काम चल रहा है। इसलिए उनके मुताबिक चेरनोबिल जैसी तबाही की संभावना बेहद कम है। हालांकि, वह भी मानती हैं कि यदि हमले में यूरेनियम प्रोसेसिंग यूनिट्स को नुकसान पहुंचा, तो सीमित क्षेत्र में खतरनाक रेडिएशन फैल सकता है, जिसका असर स्थानीय लोगों और पर्यावरण दोनों पर पड़ेगा।