आज ही के दिन राकेश शर्मा पहुंचे थे चांद तक, अंतरिक्ष स्टेशन से किया था इंदिरा गांधी को फोन

punjabkesari.in Monday, Apr 03, 2017 - 01:37 PM (IST)

नई दिल्ली: राकेश शर्मा आज के ही दिन यानि 3 अप्रैल 1984 को अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय बने थे। राकेश शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1949 को पंजाब के पटियाला शहर में हुआ था। बतौर वायूसेना के जवान के तौर पर अपनी नौकरी करते हुए राकेश शर्मा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका सफर भारतीय वायूसेना से अंतरिक्ष तक पहुंच जाएगा। बचपन से राकेश फाइटर पायलट बनना चाहते थे। जब भारतीय वायुसेना को पहला फाइटर जैट ‘द वैम्पायर’ मिला था। तब राकेश इसे आकाश में उड़ते देखा करते थे। ये विमान हैदराबाद के करीब हाकिमपेट से उड़ा करते थे। वह अपने घर से हवाई अड्डे तक 10-15 किलोमीटर साइकिल पर जाते थे ताकि इस विमान को उड़ान भरते हुए देख सकें।

चमक गया सितारा
सोवियत संघ ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने दो भारतीयों के उनके मिशन में शामिल होने का प्रस्ताव रखा था। इंदिरा गांधी के पास वायूसेना के अफसरों के अलावा कोई विकल्प नहीं था। ISRO के पास तब इतने संसाधन नहीं थे। ऐसे में वायुसेना के दो अफसरों को 18 महीने की लंबी ट्रेनिंग दी गई। राकेश शर्मा के साथ गए रवीश मल्होत्रा उनके साथ ही इस मिशन में शामिल रहे। लेकिन पहला और सीनियर होने का ठप्पा राकेश शर्मा के साथ रहा। राकेश शर्मा ने लोकप्रियता की बुलंदियां छुईं लेकिन रविश कहीं खो से गए। 2 अप्रैल 1984 को दो अन्य सोवियत अंतरिक्षयात्रियों के साथ सोयूज टी-11 में राकेश शर्मा को लॉन्च किया गया। इस उड़ान में साल्युत 7 अंतरिक्ष केंद्र में उन्होंने उत्तरी भारत की फोटोग्राफी की और गुरुत्वाकर्षण-हीन योगाभ्यास किया। जब राकेश शर्मा अंतरिक्ष पहुंचे तो भारत के लोगों के लिए ये 'न' मानने वाली बात ही थी। लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि कोई मानव जीव अंतरिक्ष में जा रहा है।

अंतरिक्ष स्टेशन से इंदिरा गांधी को किया फोन
अंतरिक्ष स्टेशन से राकेश शर्मा ने इंदिरा गांधी को फोन किया तो भारतीय प्रधानमंत्री ने पूछा कि वहां से हमारा हिंदुस्तान कैसा नजर आता है, इसके जवाब में शर्मा ने कहा, 'सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा'। उन्होंने अंतरिक्ष की कक्षा में 7 दिन, 21 घंटे और 40 मिनट गुजारे।

‘हीरो ऑफ़ सोवियत यूनियन’ सम्मान
अंतरिक्ष से वापस लौटने के बाद सोवियत सरकार ने उन्हें ‘हीरो ऑफ़ सोवियत यूनियन’ के सम्मान से नवाजा गया। भारत सरकार ने उन्हें शांति-काल के सबसे उच्च बहादुरी पुरस्कार ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया।


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