यह औरत उठाती है पुरुषों के लिए आवाज

punjabkesari.in Sunday, Jan 22, 2017 - 02:08 PM (IST)

नई दिल्ली : पतियों से प्रताडऩा की खबरों के बीच अगर चर्चा पत्नियों से परेशान पतियों की हो और वो भी भारत में तो कुछ हैरानी जरूर होती है। लेकिन पत्नियों से पीड़ित पुरुषों के लिए एक महिला ही मददगार के रूप में सामने आई है। भारत में जहां हर 15 मिनट में एक बलात्कार की घटना दर्ज होती है, हर 5वें मिनट में घरेलू हिंसा का मामला सामने आता है, हर 69वें मिनट में दहेज के लिए दुल्हन की हत्या होती है और हर साल हजारों की संख्या में बेटियां पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार दी जाती हैं।

दीपिका की मुहिम हवा की दिशा से अलग
इस तरह के माहौल में 31 वर्षीय दीपिका की मुहिम हवा की दिशा के उलटे चलने जैसी थी। दीपिका पूछती है क्या मर्द असुरक्षित नहीं हैं, क्या उन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता। दीपिका की लड़ाई भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 498ए (दहेज अपराध) के दुरुपयोग के खिलाफ है। भारत में दिल्ली समेत कई जगहों पर दहेज के लिए हत्या करने के मामले सामने आने पर 1983 में आईपीसी में धारा 498ए शामिल की गई थी। दुल्हनों को दहेज के लिए जिंदा जलाने की घटनाएं होती हैं। अक्सर इन हत्याओं के लिए पीड़ित महिला के पति और उसके ससुराल वालों को जिम्मेदार ठहराया जाता था। दीपिका कहती हैं कि ये कानून नेक नीयती से लाया गया था, लेकिन जो कानून जीवन बचाने के लिए लाया गया था, उसी ने कई जिंदगी ले ली।

दीपिका का परिवार भी हो चुका है झूठे केस का शिकार
दीपिका बताती हैं कि साल 2011 में मेरे चचेरे भाई की शादी 3 महीने में टूट गई और उसकी पत्नी ने भाई और हमारे पूरे परिवार पर मारपीट करने और दहेज मांगने का आरोप लगाया। उसने हमारे खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराया। दीपिका का कहना है कि ये वो घटना थी जिसने मुझे 498ए के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रेरित किया। वो कहती हैं कि ये कानून ब्लैकमेलिंग और पैसे की उगाही करने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है। दीपिका ने करीब 4 साल में तैयार इस डॉक्यूमेंट्री में कई पीड़ितो की दास्तां को दिखाया है। ऐसे पति जिन्होंने कई साल जेल में गुजारे और बाद में कोर्ट ने उन्हें बेगुनाह ठहराया, ऐसे बूढ़े माता-पिता जिन्होंने समाज में बदनामी के डर से खुदकुशी कर ली।
 

दहेज क़ानून का ‘दुरुपयोग’ हो रहा है
दीपिका ने बताया कि कुछ वर्षों में कई हजार लोगों ने उनसे मदद मांगी हैं। कई लोग बर्बाद हो रही हैं और कई खुद को मार रहे हैं। दहेज उत्पीडऩ ही नहीं कुछ समय से बलात्कार के भी कई झूठे मामले सामने आए हैं। दिसंबर 2016 में दिल्ली में निर्भया कांड के बाद सरकार ने कानून को और कड़ा कर दिया था। कई जज भी इस तरह के झूठे मुकदमों पर चेतावनी दे चुके हैं और दिल्ली महिला आयोग का कहना है कि अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 के बीच दर्ज रेप के कुल मामलों में से 53.2 प्रतिशत झूठे हैं।


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