कुछ ऐसी थी मनमोहन सिंह की PhD thesis, जो बनी भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने वाला अहम दस्तावेज
punjabkesari.in Friday, Dec 27, 2024 - 02:36 PM (IST)
नेशनल डेस्क: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार रात 9:51 बजे निधन हो गया। 92 साल की उम्र में उनका निधन भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए गहरी क्षति है। डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के विकास में अमूल्य रहेगा। उनके विचार, नीतियाँ और कार्य भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते रहेंगे।
डॉ. मनमोहन सिंह का शोध और भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान
1960 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था आयात प्रतिस्थापन की नीति पर चल रही थी, जिसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना था। आयात प्रतिस्थापन नीति में अधिकांश देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को आंतरिक रूप से मजबूत करने के लिए आयात पर शुल्क बढ़ाए और स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए विदेशी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाए। यह नीति खासतौर पर विकासशील देशों में अपनाई जा रही थी। इस संदर्भ में, डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी पीएचडी में भारत के निर्यात प्रदर्शन पर गहराई से शोध किया और इस पर एक नई दृष्टि प्रस्तुत की। उनका शोध भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्विक व्यापार के महत्व को उजागर करता था। उन्होंने यह समझाया कि आयात प्रतिस्थापन नीति से भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धा क्षमता में कमी आ सकती है, जबकि निर्यात और मुक्त व्यापार के माध्यम से अर्थव्यवस्था को स्थिरता और समृद्धि मिल सकती है। यह दृष्टिकोण बाद में भारत के आर्थिक सुधारों का आधार बना।
1964 में की गई पीएचडी में क्या था खास?
1964 में जब डॉ. मनमोहन सिंह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे थे, उन्होंने "भारत का निर्यात प्रदर्शन, 1951-1960" पर शोध किया। उस समय दुनिया भर के देशों ने आंतरिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आयात प्रतिस्थापन की नीति अपनाई थी, लेकिन डॉ. सिंह ने इस विचार को चुनौती दी। उन्होंने निर्यात और मुक्त व्यापार के महत्व पर जोर दिया। उनका कहना था कि आयात का भुगतान केवल निर्यात से ही किया जा सकता है और किसी भी देश को अपनी निर्यात क्षमता को मजबूत करने की जरूरत है। उनकी पीएचडी में भारत के निर्यात के विविध पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण किया गया था। उन्होंने पाया कि भारत का निर्यात उस समय मुख्यतः कृषि उत्पादों पर निर्भर था, जैसे चाय, कपास, मसाले और अन्य कच्चे माल, जबकि औद्योगिक उत्पादों का निर्यात नगण्य था। उनके शोध से यह स्पष्ट हुआ कि भारतीय निर्यात का प्रदर्शन अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत धीमा था, और इसके पीछे कई संरचनात्मक कमजोरियां थीं जैसे उत्पादकता की कमी, तकनीकी उन्नति की कमी, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारतीय उत्पादों की कमी।
निर्यात और आयात के बीच संतुलन की आवश्यकता
डॉ. सिंह ने अपने शोध में यह भी दिखाया कि किसी भी देश के लिए निर्यात और आयात के बीच संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। उनका मानना था कि एक मजबूत निर्यात क्षमता के बिना, कोई भी देश आयात के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित नहीं कर सकता। इसलिए, उन्होंने भारत को अपनी निर्यात क्षमता बढ़ाने के लिए नई नीतियों और सुधारों की आवश्यकता महसूस की, जिसमें व्यापार नीति का उदारीकरण और विदेशों में भारतीय उत्पादों की उपस्थिति को बढ़ाना शामिल था। उनका यह दृष्टिकोण और विचार आज भी भारतीय नीतियों में देखा जाता है।
आर्थिक सुधारों की शुरुआत और वैश्विक प्रभाव
डॉ. मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हुए। 1991 में, जब भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, तो उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के साथ मिलकर भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। इस समय भारत को विदेशी मुद्रा संकट, बढ़ती बेरोजगारी और उच्च मुद्रास्फीति जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। डॉ. सिंह ने इन समस्याओं से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों का प्रस्ताव किया। इन सुधारों में आयात शुल्क कम करना, आयात लाइसेंस को समाप्त करना, विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नियमों को आसान बनाना, रुपये को अवमूल्यन करना और भारत के बाजार को वैश्विक व्यापार के लिए खोलना शामिल था। इसके परिणामस्वरूप भारतीय उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़ा किया गया, विदेशी निवेश आकर्षित हुआ, और भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिली। डॉ. सिंह की नीतियों ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन स्तर को सुधारने में मदद की।
मनमोहन सिंह की नीतियों का प्रभाव
उनके द्वारा किए गए सुधारों ने भारत को वैश्विक आर्थिक शक्तियों के रूप में स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया। उनका आर्थिक दृष्टिकोण भारतीय अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में सहायक सिद्ध हुआ। उनकी नीतियों से भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता आई और भारत ने वैश्विक आर्थिक संकटों के बावजूद अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखी। उनके विचारों का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें एक सम्मानित अर्थशास्त्री के रूप में पहचाना गया।
भारतीय राजनीति के एक सम्मानित नेता
डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्हें भारतीय राजनीति में एक शांत, संयमित और विचारशील नेता के रूप में जाना जाता था। उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण था, खासतौर पर उनके द्वारा किए गए ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों की वजह से। डॉ. सिंह का जन्म 1932 में हुआ था और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (UK) से आर्थिक विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उनकी पीएचडी का विषय भारतीय विभाजन के आर्थिक प्रभावों पर आधारित था, जो उन्हें अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एक विशेषज्ञ के रूप में स्थापित करता है।
डॉ. मनमोहन सिंह को भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने का श्रेय जाता है। उन्होंने भारतीय उद्योगों को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बनाने, विदेशी निवेश आकर्षित करने और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सम्मानित अर्थशास्त्री माना जाता था और उनकी नीतियों ने भारतीय समाज के जीवन स्तर को सुधारने का अवसर प्रदान किया। डॉ. मनमोहन सिंह का निधन भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी क्षति है, लेकिन उनके विचार और नीतियां हमेशा जीवित रहेंगी। उनका योगदान भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में अमिट रहेगा, और उनका दृष्टिकोण आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक रहेगा। उनके नेतृत्व, विचारों और सुधारों का असर हमेशा भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में बना रहेगा।