सद्दाम हुसैन से लेकर मोहम्मद नजीबुल्लाह तक...दुनिया के वो ताकतवर नेता, जिन्हें दी गई सजा-ए-मौत,क्या शेख हसीना का नंबर भी आएगा?
punjabkesari.in Monday, Nov 17, 2025 - 11:24 PM (IST)
इंटरनेशनल डेस्कः बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सज़ा सुनाई है। हालांकि हसीना फिलहाल भारत में रह रही हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि भारत उन्हें बांग्लादेश को सौंपने की संभावना बेहद कम है।शेख हसीना ने इस फैसले को पक्षपाती करार दिया है और राष्ट्रपति मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली सरकार पर बदले की राजनीति के आरोप लगाए हैं। कोर्ट ने उन्हें लगभग 1400 लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार माना है।इतिहास में यह कोई पहली बार नहीं है जब किसी सत्ताधारी या पूर्व सत्ताधारी नेता को मौत की सज़ा सुनाई गई हो। सत्ता संघर्ष, विद्रोह, भ्रष्टाचार, युद्ध अपराध या तख्तापलट — दुनिया ने कई ऐसे मजबूत नेताओं को फांसी पर चढ़ते देखा है।
यहां पढ़िए दुनिया के वो 10 नेता, जिन्हें मौत की सजा दी गई:
1. सद्दाम हुसैन — इराक का कुख्यात तानाशाह
इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन आधुनिक इतिहास के सबसे चर्चित तानाशाहों में से एक रहे।
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1979 से 2003 तक लोहे की मुट्ठी से इराक पर शासन
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कुर्द अल्पसंख्यक पर अत्याचार, विपक्षियों की हत्याएं
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2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला कर उन्हें पकड़ा
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दोजैल हत्याकांड में मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी
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30 दिसंबर 2006 को फाँसी
उनकी फांसी ने पूरे मध्य-पूर्व में भूचाल ला दिया था।
2. जुल्फिकार अली भुट्टो — पाकिस्तान का सबसे विवादित फैसला
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को 1979 में फांसी दी गई।
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उन पर एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या का आरोप
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सेना प्रमुख जनरल जिया-उल-हक ने गिरफ्तारी और फांसी का आदेश दिया
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दुनिया के कई देशों ने दया याचिका की अपील की
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आज भी पाकिस्तान में इस मौत की सज़ा को न्यायिक हत्या माना जाता है
भुट्टो की विरासत आज भी पाकिस्तान की राजनीति को प्रभावित करती है।
3. मोहम्मद नजीबुल्लाह — तालिबान का खौफनाक अध्याय
अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को 1996 में तालिबान ने बेहद क्रूर तरीके से मार डाला। पहले उन्हें प्रताड़ित किया गया और फिर काबुल में सार्वजनिक स्थल पर लटका दिया गया। उनकी हत्या तालिबान राज की बर्बरता का प्रतीक मानी जाती है। उनकी मौत के बाद अफगानिस्तान पूरी तरह तालिबान के नियंत्रण में आ गया था।
4. इमरे नागी — सोवियत संघ के खिलाफ खड़े होने की कीमत
हंगरी के प्रधानमंत्री इमरे नागी ने 1956 की हंगेरियन क्रांति का नेतृत्व किया था।
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सोवियत कब्जे के खिलाफ स्वतंत्रता की मांग
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विद्रोह दबा दिया गया और उन्हें गिरफ्तार किया गया
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1958 में गुप्त ट्रायल, फिर फाँसी
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1989 में साम्यवाद के पतन के बाद उन्हें राष्ट्रीय नायक घोषित किया गया
नागी यूरोप में लोकतंत्र और स्वतंत्रता के प्रतीक माने जाते हैं।
5. हिदेकी तोजो — जापान का युद्धकालीन प्रधानमंत्री
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के प्रधानमंत्री रहे जनरल हिदेकी तोजो:
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पर्ल हार्बर हमले सहित कई बड़े सैन्य अभियानों के लिए जिम्मेदार
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लाखों लोगों की मौत और विनाश के लिए दोषी
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टोक्यो ट्रायल्स में युद्ध अपराधी घोषित
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1948 में फांसी
तोजो की फांसी जापान के सैन्य साम्राज्य के अंत का प्रतीक बनी।
6. निकोला चाउशेस्कु — रोमानिया का तानाशाह
रोमानिया के राष्ट्रपति चाउशेस्कु को 1989 की क्रांति के दौरान सत्ता से हटा दिया गया।
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जनता के खिलाफ हिंसा, दमन, भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप
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सैन्य अदालत ने उन्हें और उनकी पत्नी को मौत की सजा दी
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क्रिसमस के दिन फायरिंग स्क्वाड द्वारा हत्या
उनकी मौत के साथ पूर्वी यूरोप में साम्यवादी शासन ढहने लगा।
7. मकसूद बिन अब्दुल अजीज — सऊदी अरब का राजकुमार
1975 में सऊदी राजकुमार मकसूद बिन अब्दुल अजीज को एक प्रेम प्रसंग से जुड़े अपराध में मौत की सजा दी गई।
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सार्वजनिक रूप से सिर कलम
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यह मामला अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में रहा
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सऊदी कानून के कठोर और सभी के लिए समान होने का उदाहरण बना
8. निकोलस मोरोजोव — रोमानिया के प्रधानमंत्री
1940 में रोमानिया के प्रधानमंत्री निकोलस मोरोजोव को फाँसी दी गई।
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राजनीतिक षड्यंत्र, सत्ता के दुरुपयोग और विद्रोह के आरोप
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त्वरित सैन्य मुकदमे के बाद सज़ा
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उस दौर में रोमानिया लगातार सत्ता संघर्ष में उलझा हुआ था
9. होस्नी जैम — सीरिया के राष्ट्रपति
सीरिया के राष्ट्रपति होस्नी जैम को 1949 में मौत की सज़ा दी गई।
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वे सैन्य तख्तापलट कर सत्ता में आए थे
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कुछ महीनों बाद ही दूसरा तख्तापलट हुआ
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नए शासन ने उन्हें देशद्रोह और दुरुपयोग का दोषी ठहराया
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गोली मारकर हत्या कर दी गई
उनकी मौत ने सीरिया की राजनीति को लंबे समय तक अस्थिर रखा।
क्या शेख हसीना भी इस सूची में जुड़ेंगी?
हसीना बांग्लादेश की चार बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं। बांग्लादेश की राजनीति में उनका प्रभाव कई दशकों से रहा है। वे अभी भारत में रह रही हैं और भारत का संकेत साफ है कि उन्हें वापस नहीं भेजा जाएगा। कई विशेषज्ञ इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रहे हैं।इसलिए निकट भविष्य में उनके लिए वास्तविक फाँसी की संभावना बेहद कम मानी जा रही है, लेकिन कानूनी और राजनीतिक लड़ाई आगे लंबी चलेगी।
