वो किताबें जिनकी वजह से भारत में मच गया सियासी बवाल; कांग्रेस के लिए बनीं मुश्किलें, बीजेपी भी हुई घेर
punjabkesari.in Friday, Dec 20, 2024 - 04:02 PM (IST)
नेशनल डेस्क: भारतीय राजनीति में किताबों ने कई बार विवादों को जन्म दिया है, और यह सच कांग्रेस पार्टी के लिए विशेष रूप से हकीकत बन चुका है। सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस पार्टी को किताबों के विवादों का सामना कई बार करना पड़ा है। खासकर, जब पार्टी के भीतर के नेता या पूर्व नेता अपने अनुभवों को साझा करते हैं, तो अक्सर उन किताबों से सियासी भूचाल आ जाता है। ताजा मामला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर की किताब "A Mixture in Politics" से जुड़ा है, जिसने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।
मणिशंकर अय्यर की इस किताब में कई बिंदुओं पर विवाद उठाए गए हैं, जिनमें सबसे बड़ा आरोप यह है कि अगर 2012 में डॉ. मनमोहन सिंह की जगह प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बना दिया जाता, तो शायद 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना नहीं करना पड़ता। इसके अलावा, अय्यर ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से अपनी दूरी की बात भी साझा की, जिससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी के भीतर उनके रिश्ते खराब हो गए थे और उन्हें किनारे कर दिया गया था। यह किताब कांग्रेस के लिए एक नई मुश्किल पैदा कर सकती है, खासकर तब जब पार्टी पहले ही सत्ता से बाहर है और विपक्षी दल बीजेपी इसकी आलोचना करने में पीछे नहीं हटेंगे।
हालांकि, मणिशंकर अय्यर की किताब नई नहीं है, कांग्रेस को किताबों से जुड़ी विवादों का पुराना अनुभव है। भारत की राजनीति में ऐसी कई किताबें आई हैं, जिनकी वजह से कांग्रेस को काफी आलोचना और विवादों का सामना करना पड़ा। इस लेख में हम उन किताबों का जिक्र करेंगे, जिनकी वजह से कांग्रेस को विवादों का सामना करना पड़ा और बीजेपी भी इनमें फंसी।
1. द इमरजेंसी: ए पर्सनल हिस्ट्री (2015)
कोमी कपूर द्वारा लिखी गई यह किताब 1975 में लागू किए गए आपातकाल पर आधारित है। इस किताब में आपातकाल के दौरान कांग्रेस नेताओं के रवैये और निर्णयों पर सवाल उठाए गए हैं। किताब में यह दावा किया गया है कि आपातकाल के दौरान कांग्रेस नेताओं का व्यवहार तानाशाही जैसा था। विपक्षी दलों को जेल में डालने और प्रेस पर सेंसरशिप लगाने के फैसले की कड़ी आलोचना की गई है। यह किताब कांग्रेस के लिए बेहद संवेदनशील साबित हुई, खासकर उन लोगों के लिए जो आपातकाल के दौरान कांग्रेस की नीतियों का विरोध करते थे।
2. नेहरू: द इन्वेस्टमेंट ऑफ इंडिया
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर द्वारा लिखी गई इस किताब में पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद के शासनकाल का विश्लेषण किया गया है। हालांकि, शशि थरूर ने नेहरू की कई नीतियों की आलोचना की है, जिससे कांग्रेस को कुछ सवालों का सामना करना पड़ा। थरूर ने नेहरू की समाजवादी-रक्षात्मक सोच पर सवाल उठाए, साथ ही यह भी कहा कि उन्होंने सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए जो कदम उठाए थे, वो प्रभावी नहीं रहे। इस किताब ने कांग्रेस के भीतर कुछ हलचल पैदा की, क्योंकि इसे नेहरू के नेतृत्व और उनके शासनकाल के बारे में खुली आलोचना माना गया।
3. जिन्ना: इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंस (2009)
यह किताब बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने लिखी थी। जसवंत सिंह ने अपनी किताब में पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना की भूमिका पर चर्चा की और इसके साथ ही पंडित नेहरू और महात्मा गांधी पर भी सवाल उठाए। जसवंत सिंह का यह दावा था कि जिन्ना ने पाकिस्तान का निर्माण करने का निर्णय इसलिए लिया था क्योंकि नेहरू और गांधी ने हिंदू-मुस्लिम संबंधों को लेकर एक पक्षीय रवैया अपनाया था। इस किताब के प्रकाशित होने के बाद बीजेपी में उथल-पुथल मच गई। बीजेपी ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया, जबकि कांग्रेस भी इस किताब को लेकर नकारात्मक प्रतिक्रिया देने से नहीं चूकी, क्योंकि इसमें कांग्रेस के नेताओं को आड़े हाथ लिया गया था।
4. इंडिया आफ्टर गांधी: द हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी
इतिहासकार रामचंद्र गुहा की यह किताब भारत के राजनीतिक इतिहास का विस्तृत रूप से अध्ययन करती है। इस किताब में कांग्रेस पार्टी के शासनकाल की आलोचना की गई है, खासकर 1984 के सिख दंगों और इंदिरा गांधी के शासनकाल के बारे में। रामचंद्र गुहा ने इस किताब में कांग्रेस की कुछ आर्थिक नीतियों और दंगों को लेकर सवाल उठाए हैं। हालांकि, किताब में बीजेपी और संघ परिवार पर भी विचार किया गया है, लेकिन कांग्रेस की आलोचना से यह किताब विवादों में आ गई।
5. द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह
संजय बारू की इस किताब में डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने और उनके कार्यकाल के कुछ विवादों का जिक्र किया गया है। इस किताब में यह दावा किया गया कि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह की पूरी कार्यशक्ति पर नियंत्रण किया और कई महत्वपूर्ण फैसले सुपर कैबिनेट द्वारा लिए गए, जिसमें गांधी परिवार के सदस्य होते थे। संजय बारू ने यह भी कहा कि मनमोहन सिंह को कई बार अपने मंत्रिमंडल से बाहर किया गया और उन्हें पीएम के तौर पर बहुत कम निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी गई। यह किताब बहुत विवादित रही और बाद में इस पर एक फिल्म भी बनाई गई, जिससे बीजेपी को चुनावी लाभ मिला।
6. क्रुसेडर ऑर कन्सपाइरेटर? कोलगेट एंड अदर ट्रुथ
पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख की यह किताब कोयला घोटाले से जुड़ी हुई है। किताब में यह दावा किया गया है कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए कोयला खनन में पारदर्शिता नहीं थी। पारेख ने मनमोहन सिंह की नीतियों और उनके मंत्रियों पर नियंत्रण की कमी को लेकर सवाल उठाए। इस किताब ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुए कोयला घोटाले पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे कांग्रेस के लिए परेशानी पैदा हुई।
7. वन लाइफ इज़ नॉट इनफ: एन ऑटोबायोग्राफी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री के. नटवर सिंह की यह किताब उनकी आत्मकथा है। इस किताब में नटवर सिंह ने कांग्रेस के अंदर की राजनीति और सरकार की नीतियों की आलोचना की है। उन्होंने यह भी कहा कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए कई फैसले बिना उनके सहमति के लिए गए थे। यह किताब कांग्रेस के लिए एक सिरदर्द साबित हुई क्योंकि इसने पार्टी के भीतर की दरारों को उजागर किया।
8. द प्रेसिडेंशियल इयर्स
पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी की यह किताब कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा विवाद पैदा करने वाली रही। किताब में प्रणब मुखर्जी ने पार्टी और सोनिया गांधी के नेतृत्व की आलोचना की। उन्होंने लिखा कि कांग्रेस को 2014 में बड़ी हार का सामना करना पड़ा क्योंकि पार्टी ने अपने करिश्माई नेतृत्व को सही से पहचानने में गलती की। यह किताब तब और विवादास्पद हो गई जब प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की, हालांकि बाद में किताब प्रकाशित हो गई।
9. द डिसेंट ऑफ एयर इंडिया
एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र भार्गव की यह किताब यूपीए सरकार के निर्णयों पर सवाल उठाती है, खासकर कोरमिनिस्ट्रियों और एयर इंडिया के घटते स्वास्थ्य पर। किताब में कहा गया कि मनमोहन सिंह सरकार ने एयर इंडिया के लिए गलत नीतियां बनाई, जिससे इस सरकारी विमान सेवा की स्थिति खराब हुई।
10. राजनीति के 5 दशक
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की यह किताब भी विवादास्पद रही। उन्होंने इस किताब में भगवा आतंकवाद का जिक्र किया और कहा कि यह एक वास्तविक समस्या है। उनके इस बयान के बाद कांग्रेस बीजेपी के निशाने पर आ गई और पार्टी को सफाई देनी पड़ी।