धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, समलैंगिक संबंध अपराध नहीं

punjabkesari.in Friday, Sep 07, 2018 - 12:46 AM (IST)

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने आज आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखते हुए कहा कि हमें एक व्यक्ति की पंसद का सम्मान करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि दो बालिगों का सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाना जायज है इसलिए समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है।

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मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने धारा 377 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं का संयुक्त रूप से निपटारा करते हुए कहा कि एलजीबीटी समुदाय को हर वह अधिकार प्राप्त है, जो देश के किसी आम नागरिक को मिला हुआ है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने अलग-अलग परंतु सहमति का फैसला सुनाया। 

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जानिए किसने दायर की थी याचिका
संविधान पीठ ने नृत्यांगना नवतेज जौहर, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ ऋतु डालमिया, होटल कारोबारी अमननाथ और केशव सूरी एवं व्यवसायी आयशा कपूर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के 20 पूर्व तथा मौजूदा छात्रों की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। इन सभी ने दो वयस्कों द्वारा परस्पर सहमति से समलैंगिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध के दायरे से बाहर रखने का अनुरोध करते हुए धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। 

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क्या है धारा 377?
संविधान पीठ ने आम सहमति से 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया जिसके तहत परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध था। न्यायालय ने हालांकि पशुओं और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के अपराध के मामले में धारा 377 के एक हिस्से को पहले की तरह अपराध की श्रेणी में ही बनाए रखा है।  न्यायालय ने कहा कि धारा 377 एलजीबीटी के सदस्यों को परेशान करने का हथियार था, जिसके कारण इससे भेदभाव होता है। 

 

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न्यायालय के फैसले का विशेषज्ञों ने किया स्वागत  

  • पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने इसे ‘उत्साहजनक’ फैसला बताया जबकि अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि इस फैसले से राजनीति की दशा और मानवीय मूल्यों में बदलाव आएगा। 
  • वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि इस फैसले ने लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर (एलजीबीटीक्यू) समुदाय के लिए पूरी समानता के दरवाजे खोल दिए हैं।      
  • सोराबजी ने कहा कि यह एक उत्साहजनक फैसला है और यदि किसी व्यक्ति के यौन रूझान विशिष्ट हैं तो यह कोई अपराध नहीं है।     

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Yaspal

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