Supreme Court का बड़ा फैसला: मैटरनिटी लीव हर महिला का अधिकार, कोई छीन नहीं सकता
punjabkesari.in Friday, May 23, 2025 - 01:49 PM (IST)

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने मैटरनिटी लीव को लेकर एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने यह साफ किया है कि मैटरनिटी लीव हर महिला का बुनियादी अधिकार है। यह मातृत्व सुविधाओं से जुड़े नियमों का एक अभिन्न हिस्सा है और प्रजनन के अधिकार का भी हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि कोई भी संस्थान किसी महिला को उसके मातृत्व अवकाश के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता है।
यह ऐतिहासिक फैसला जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने तमिलनाडु की एक सरकारी कर्मचारी, उमादेवी की अर्जी पर सुनाया है। उमादेवी ने पुनर्विवाह के बाद एक बच्चे को जन्म दिया था। उनके विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें यह कहते हुए मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया कि उनके पास अपनी पहली शादी से पहले से ही दो बच्चे थे। तमिलनाडु राज्य में यह नियम है कि मातृत्व लाभ केवल पहले दो बच्चों के लिए ही उपलब्ध होता है। इस अन्याय के बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
याचिकाकर्ता का पक्ष-
याचिका में महिला ने बताया कि पहली शादी से पैदा हुए अपने बच्चों के लिए भी उन्हें मैटरनिटी लीव का लाभ नहीं मिला था। उनके वकील केव मुथुकुमार ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता ने दूसरी शादी के बाद ही सरकारी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनके पहले बच्चों के लिए उन्हें छुट्टी नहीं मिली थी।
मातृत्व अवकाश से जुड़े मौजूदा नियम-
आपको बता दें कि मातृत्व अवकाश से संबंधित मामलों में सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है। 2017 में, मातृत्व लाभ अधिनियम में संशोधन किया गया था, जिसके तहत 12 सप्ताह की छुट्टी को बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया। वर्तमान में, सभी महिला कर्मचारियों को पहले और दूसरे बच्चे के लिए मैटरनिटी लीव दी जाती है। इसके अलावा, बच्चा गोद लेने वाली माताएं भी 12 सप्ताह के मातृत्व अवकाश की हकदार होती हैं, जो बच्चे को सौंपे जाने की तारीख से शुरू होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में मातृत्व अवकाश के अधिकार पर जोर दिया है। एक महत्वपूर्ण मामले में यह स्पष्ट किया गया था कि मातृत्व अवकाश सभी महिला कर्मचारियों का अधिकार है, भले ही उनकी नौकरी की प्रकृति कैसी भी हो। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों और उनके कार्यस्थल पर समान व्यवहार सुनिश्चित करने की दिशा में एक और बड़ा कदम है।