अंतरिक्ष में spacex का सैटेलाइट पूरी तरह टूटकर बिखरा, धरती पर गिरा तो इंटरनेट और कम्युनिकेशन हो सकता ठप
punjabkesari.in Wednesday, Dec 31, 2025 - 03:12 PM (IST)
नेशनल डेस्क: अंतरिक्ष जितना शांत दिखता है, उतना ही अस्थिर भी होता जा रहा है। 17 दिसंबर 2025 को स्पेसएक्स की स्टारलिंक इंटरनेट सेवा से जुड़ा एक सैटेलाइट अचानक नियंत्रण से बाहर हो गया। इसकी प्रोपल्शन टैंक से गैस लीक हुई, सैटेलाइट की ऊंचाई घटने लगी और वह अंतरिक्ष में अनियंत्रित घूमने लगा।
स्पेसएक्स ने पुष्टि की है कि सैटेलाइट पूरी तरह टूटकर बिखरा नहीं है, लेकिन उससे कुछ छोटे मलबे जरूर निकले हैं। कंपनी का कहना है कि आने वाले कुछ हफ्तों में यह सैटेलाइट पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करेगा और जलकर खत्म हो जाएगा, इसलिए धरती पर कोई सीधा खतरा नहीं है।
कैसे सामने आई सैटेलाइट की हालत?
इस घटना की जांच के लिए स्पेसएक्स ने अमेरिकी कंपनी वैंटर के वर्ल्डव्यू-3 सैटेलाइट की मदद ली। 241 किलोमीटर की दूरी से ली गई हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरों में साफ दिखा कि स्टारलिंक सैटेलाइट के सोलर पैनल खुले हुए हैं, लेकिन उसका ढांचा क्षतिग्रस्त है। यह तस्वीरें बताती हैं कि अंतरिक्ष में छोटी सी तकनीकी खराबी भी कितनी बड़ी समस्या बन सकती है।
क्या हुआ था असल में?
यह सैटेलाइट (नंबर 35956) करीब 418 किलोमीटर की ऊंचाई पर काम कर रहा था। अचानक प्रोपल्शन सिस्टम में गड़बड़ी हुई, गैस बाहर निकली और सैटेलाइट की कक्षा लगभग 4 किलोमीटर नीचे आ गई। इसी दौरान छोटे-छोटे टुकड़े भी बने। स्पेसएक्स भले ही इसे नियंत्रित स्थिति बता रहा हो, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक यह घटना उस बड़े खतरे की झलक है, जो हजारों सैटेलाइट्स वाले मेगा-कॉन्स्टेलेशन से पैदा हो रहा है।
स्टारलिंक और अंतरिक्ष की भीड़
स्टारलिंक के पास इस समय 9,000 से ज्यादा सक्रिय सैटेलाइट्स हैं। यह संख्या दुनिया में मौजूद कुल सक्रिय सैटेलाइट्स का बड़ा हिस्सा है। जैसे-जैसे यह संख्या बढ़ती जा रही है, टकराव और मलबे का खतरा भी तेजी से बढ़ रहा है।
केसलर सिंड्रोम: अंतरिक्ष का ‘डोमिनो इफेक्ट’
2025 में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर An Orbital House of Cards चेतावनी देता है कि लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) अब बेहद नाजुक स्थिति में पहुंच चुका है।
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आज हर 22 सेकंड में दो सैटेलाइट्स एक किलोमीटर के भीतर से गुजरते हैं।
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स्टारलिंक के लिए यह स्थिति हर 11 मिनट में बनती है।
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अगर किसी बड़े सोलर स्टॉर्म या तकनीकी फेल्योर से कई सैटेलाइट्स एक साथ कंट्रोल खो दें, तो सिर्फ 2.8 दिनों में विनाशकारी टक्कर हो सकती है।
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2018 में यही जोखिम 121 दिनों में बनता था।
केसलर सिंड्रोम का मतलब है-एक टक्कर से पैदा हुआ मलबा दूसरी टक्करों को जन्म देता है, और यह चेन रिएक्शन पूरे ऑर्बिट को बेकार बना सकता है।
धरती पर क्या असर पड़ेगा?
अगर अंतरिक्ष में हालात बिगड़े, तो इसका असर सीधा हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ेगा:
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इंटरनेट और कम्युनिकेशन ठप हो सकता है, खासकर दूरदराज इलाकों में।
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GPS और नेविगेशन सिस्टम फेल होने से हवाई, समुद्री और सड़क यातायात खतरे में पड़ सकता है।
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बैंकिंग और शेयर बाजार को अरबों डॉलर का नुकसान हो सकता है।
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मौसम और आपदा चेतावनी देर से मिलेगी, जिससे जान-माल का नुकसान बढ़ेगा।
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रक्षा और सुरक्षा सिस्टम कमजोर हो सकते हैं।
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विज्ञान और स्पेस रिसर्च रुक सकती है।
सबसे बड़ा डर
विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर 1859 जैसे कैरिंगटन इवेंट स्तर का सोलर स्टॉर्म आज आया, तो हजारों सैटेलाइट्स एक साथ बेकार हो सकते हैं। 2024 का गैनन स्टॉर्म हल्का था, लेकिन भविष्य में बड़ा झटका विनाशकारी साबित हो सकता है।
