8000 साल पुराना ‘सिंदूर’ अब बना आतंक का काल, जुड़ा है राजस्थान से खास रिश्ता
punjabkesari.in Friday, May 09, 2025 - 04:29 PM (IST)

नेशनल डेस्क। 'सिंदूर' जो सदियों से सुहागन महिलाओं का प्रतीक रहा है अब 'ऑपरेशन सिंदूर' के रूप में आतंकियों के विनाश का पर्याय बन गया है लेकिन इस एक चुटकी सिंदूर का हमारा इतिहास बहुत पुराना है खासकर हनुमानगढ़ जिले का। माना जाता है कि सिंदूर का उपयोग सिंधु घाटी सभ्यता जिसे हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है में भी किया जाता था। इन प्राचीन सभ्यताओं से जुड़ी खुदाई स्थलों पर मिली प्राचीन मूर्तियों पर सिंदूर की मौजूदगी इस बात का प्रमाण है।
जर्नल नेचर में प्रकाशित एक शोध के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता लगभग आठ हजार साल पुरानी है। इस सभ्यता के उत्खनन से पता चलता है कि उस समय भी महिलाएं सजने-संवरने के लिए कंगन, चूड़ी, अंगूठी, बिंदी जैसी वस्तुओं का इस्तेमाल करती थीं और सिंदूर भी लगाती थीं। सिंधु घाटी सभ्यता का पूर्व हड़प्पा काल लगभग 3300 से 2500 ईसा पूर्व माना जाता है और भारत का इतिहास इसी सभ्यता से शुरू होता है।
कालीबंगा और राखीगढ़ी में मिले शृंगार के खजाने
हनुमानगढ़ जिले में स्थित कालीबंगा साइट की खुदाई के दौरान पुरातत्वविदों को कॉपर का शीशा, सुरमादानी, काजल रखने और लगाने की वस्तुएं, मिट्टी और पत्थर की मालाएं आदि मिली हैं। ये वस्तुएं उस समय की महिलाओं के सौंदर्य प्रेम और शृंगार की आदतों को दर्शाती हैं।
वहीं हरियाणा के राखीगढ़ी में हुई खुदाई में भी मिट्टी, तांबा और फियांस से बनीं चूड़ियां, कंगन, मिट्टी की माथे की बिंदी, सिंदूर दानी, अंगूठी, कानों की बालियां जैसी कई शृंगार वस्तुएं प्राप्त हुई हैं। इन खोजों से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की महिलाएं भी आधुनिक महिलाओं की तरह ही सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग करती थीं जिसमें सिंदूर भी शामिल था।
कैसे बनता था 8000 साल पहले का 'सिंदूर'?
प्राचीन सभ्यता स्थलों की खुदाई में सिंदूर दानी और सिंदूर लगाने का प्रमाण देने वाली मूर्तियां मिलने के बाद पुरातत्वविदों ने यह जानने का प्रयास किया कि उस युग में सिंदूर कैसे बनाया जाता था। शोध से पता चला है कि पुराने समय में सिंदूर मुख्य रूप से हल्दी, फिटकिरी या चूने जैसी प्राकृतिक चीजों से तैयार किया जाता था। यह जानकारी न केवल प्राचीन सौंदर्य प्रथाओं पर प्रकाश डालती है बल्कि 'सिंदूर' के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को भी रेखांकित करती है जो सुहाग के प्रतीक से कहीं आगे हमारी प्राचीन सभ्यता की जड़ों से जुड़ा हुआ है।