जानिए, US-Iran तनाव का भारत पर क्या होगा असर?

punjabkesari.in Friday, Jan 03, 2020 - 07:08 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): ईरान की कुर्दिस फ़ोर्स के जनरल कासिम सुलेमानी को अमरीका द्वारा मार गिराने के बाद मिडल-ईस्ट में कोहराम है। इस कोहराम का असर दुनिया भर में महसूस होना भी शुरू हो गया है। अंतराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में अभी से चार से आठ फीसदी का उछाल आ गया है। जिस तरह ईरान ने इस हमले के बदले की बात की है उससे जाहिर है अभी और बबाल मचेगा। ईरान दुनिया का प्रमुख तेल निर्यातक देश है। ऐसे में उसका बदला लेने का तरीका भी इसी व्यापार से सम्बंधित होगा यह कहने की जरूरत नहीं है। तेल का उत्पादन अगर ईरान ने महज कुछ दिन भी रोक दिया तो दुनिया भर में इसका असर पड़ेगा। ऐसे में भारत जैसे देश में तो स्थितियां त्राहिमाम वाली हो जाएंगी। भारत का कुल कच्चे तेल का 84 फीसद आयात ईरान से होता है। सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अगर इसमें कुछ दिनों की भी कटौती हुई तो हालात क्या होंगे। यही नहीं ऊपर से भारत अमरीका रिश्तों पर अगर ईरान ने आंख टेढ़ी कर ली तो सियासी तौर पर भी भारत को दूरगामी अनचाहे परिणाम भुगतने होंगे। क्या हो सकते हैं अमरीका -ईरान विवाद के भारत पर असर इनको रेखांकित कर रही है पंजाब केसरी की यह पड़ताल जो बताती है की दोनों देशों के झगडे में भारत का क्या-क्या दांव पर है।

विकास को लग सकती है ब्रेक
इसका सबसे बड़ा परिणाम यह होगा कि देश की आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी हो सकती है और अर्थव्यवस्था पर इसका खासा असर देखने को मिल सकता है। भारत ने पिछले वित्त वर्ष में अपनी जरूरत के लिए 84 प्रतिशत कच्चा तेल ईरान से आयात किया था। यानी भारत के कुल आयात तेल के हर तीन में से दो बैरल तेल ईरान से आयात होता है। अगर अमेरिका और ईरान के बीच तनाव इसी तरह बरकरार रहता है तो इसका सीधा असर तेल के दामों पर पड़ेगा। भारत को तेल के लिए ज्यादा रकम चुकानी होगी, जिससे सरकार के वित्तीय घाटा और भी बढ़ सकता है। नवंबर के अंत तक भारत का राजकोषीय घाटा 114.8 फीसदी के स्तर तक पहुंच चुका है। यह मौजूदा वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पार कर चुका है। 30 नवंबर तक सरकार की कुल आय और खर्च का अंतर  8.07 लाख करोड़ रुपये तक के स्तर तक पहुंच चुका है। 

PunjabKesari

देश में बढ़ सकती है महंगाई
अगर देश में तेल की कमी होती है तो देश के हर नागरिक पर इसका सीधा असर होगा। तेल की कमी होने से देश में उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें भी तेजी से बढ़ेंगी, जिसके चलते देश में महंगाई बढ़ जाएगी। देश पहले ही प्याज जैसी दैनिक उपभोग की वस्तु की बढ़ी कीमतों से सकते में है। देश की महंगाई दर पहले से उछली हुई है। तेल की कमी हुई या कीमतें बढ़ीं तो महंगाई आसमान छू लेगी। अमेरिका और ईरान का तनाव अगर युद्ध का रूप धारण कर लेता है तो तेल के दामों में अप्रत्याशित बढ़त होने की आशंका है।  इससे उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत बढ़ने और देश के बाहरी घाटे के बढ़ने की भी संभावना है।

PunjabKesari

एविशन सेक्टर पर दोहरी मार 
ताज़ा विवाद का पहला असर हवाई सेक्टर पर पड़ेगा। यहां दोहरा असर पड़ेगा। भारतीय विमान कंपनियां अब ईरानी हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल से बचने के लिए अपनी उड़ानों का रास्ता बदल सकती हैं। इसके पहले भी जून 2019 में भारत के डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीएस) ने ईरान के ऊपर से उड़ान न भरने का फरमान जारी किया था।ऐसे में ऐसा करना पड़ा तो रास्ता लम्बा होने से इसका सीधा असर हवाई किराए पर पड़ेगा और हवाई सफर महंगा हो सकता है। इसका विपरीत असर एविएशन कंपनियों की खुद की माली हालत पर भी पद सकता है। यदि महंगे किरायों के चलते मुसाफिरों की तादाद प्रभावित हुई तो विमानन कंपनियों की सेहत भी बिगड़नी तय है। 

PunjabKesari

भारत के पास सिर्फ दस दिन का तेल  
एशिया में भारत चीन के बाद कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। आंकड़ों के मुताबिक पिछली छमाही में भारत ने प्रतिदिन लगभग 4 मिलियन बैरल तेल आयात किया। भारत अपनी जरूरत का 80 % कच्चा तेल आयात करता है। इस आयात में ईरान से आयात की हिस्सेदारी 84 फीसदी है। ऐसे में अगर यह विवाद लम्बा खिंचा तो भारत को कच्चे तेल के लाले भी पड़ सकते हैं। वर्तमान में भारत के पास आपातकाल की स्थिति में प्रयोग करने के लिए रिजर्व के तौर पर केवल 3.91 करोड़ बैरल तेल मौजूद है, जो सिर्फ 9.5 दिन ही चल सकता है। देश भर में मौजूद वाहन 12 अरब लीटर पेट्रोल खर्च रोज़ पी जाते हैं जबकि डीजल की खपत 27 अरब लीटर है। भारत के तेल रिजर्व की तुलना अन्य देशों से करें तो पता चलता है कि चीन के पास लगभग 55 करोड़ बैरल के भंडार होने का अनुमान है, जबकि अमेरिका के पास 64.5 करोड़ बैरल तेल मौजदू हैं। इस लिहाज़ से भारत के लिए स्थितियां बदतर हो सकती हैं। यह व्यापारिक, और सामरिक दृष्टि से भी बेहद संवेदनशील साबित हो सकता है। आंकड़ों के अनुसार, भारत ने मार्च में खत्म हुए वित्त वर्ष में लगभग 10 प्रतिशत तेल खाड़ी देशों से आयात किया। जून के मध्य में ब्रेंट क्रूड की कीमत काफी कम थी, लेकिन वर्तमान में इसकी कीमतों में आठ प्रतिशत तक उछाल देखने को मिला है। हालाँकि सरकार इस समस्या का समाधान करने की कोशिश कर रही है, और इसके लिए 47.6 मिलियन बैरल की संयुक्त क्षमता के साथ दो नए भंडार जोड़ने की योजना बना रही हैं। भारतीय झंडे वाले जहाजों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारतीय नौसेना ने पिछले सप्ताह ही ईरान की खाड़ी में अपने दो जहाजों को तैनात किया है। पेट्रोलियम मंत्री सऊदी अरब और ओपेक प्लस देशों के गठबंधन के लिए पहुंच गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे उचित स्तर पर कच्चे तेल की आपूर्ति होती रहे लेकिन फिर भी अगर मामला ज्यादा बढ़ा तो तमाम प्रबंध धरे धराये रह सकते हैं। जा सके कि वे उचित स्तर पर कच्चे तेल की आपूर्ति होती रहे लेकिन फिर भी अगर  मामला ज्यादा बढ़ा तो तमाम प्रबंध धरे धराये रह सकते हैं।

सुलेमानी की मौत से शेयर बाजार भी सहमा 
सुलेमानी की मौत का असर वैश्विक बाजार में भी देखने को मिला जिनका रुख नरम रहा। दुनिया भर के बाजारों को इस घटनाक्रम के बाद तेल उत्पादक मुल्कों के बीच मतभेद का डर सता रहा है जिसके चलते बाजार में अंदरखाते हड़कंप जैसी स्थिति है। भारतीय शेयर बाजार की ही बात करें तो कुछ ही घंटों के भीतर शुक्रवार को बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी में आधा फीसदी की गिरावट दर्ज़ की गयी। निवेशकों ने सोने और चांदी से सुरक्षित एसेट्स का रुख किया जिससे अन्य कंपनियों के शेयर प्रभावित हुए। सुबह 10 बजे, 10 ग्राम सोने के भाव 1.12 फीसदी बढ़कर 39,715 रुपये तक पहुंच गए जबकि 1 किलो चांदी भी 0.87 फीसदी की तेजी के साथ 47,429 रुपये की हो गई। बीएसई सेंसेक्स 162 अंक या 0.39 फीसदी की गिरावट के साथ 41,465 के स्तर पर बंद हुआ. वहीं, निफ्टी 50 इंडेक्स 56 अंक या 0.45 फीसदी की कमजोरी के साथ 12,227 पर आ गया। मिडकैप इंडेक्स आधा फीसदी तक टूटा। निफ्टी 50 इंडेक्स पर जी एंटरटेनमेंट के शेयरों ने 5.5 फीसदी का गोता लगाया. इसके बाद भारती इंफ्राटेल, एशियन पेंट्स, एक्सिस बैंक, आयशर मोटर्स, एनटीपीसी, बजाज ऑटो, हिंडाल्को, बजाज फिनसर्व और भारतीय स्टेट बैंक के शेयरों ने बड़ी गिरावट दर्ज की। अंदेशा है कि जोखिम कम करने के लिए विदेशी निवेशकों की निकासी से बिकवाली का दबाव बढ़ सकता है, जिससे बॉन्ड यील्ड में तेजी आएगी।

PunjabKesari

मध्य-पूर्व एशिया में छिड़ सकता है गृह युद्ध
ईरान ने कहा है कि सुलेमानी के हत्यारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इससे मध्य-पूर्व एशिया में गृह युद्ध छिड़ने की भी आशंका है। अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान अमरीका पर सीधा हमला न करके तेल उत्पादन बंद करने पर ध्यान देगा। ऐसे में ईरान तेल उत्पादक क्षेत्र में इराक, सीरिया, यमन, लेबनन जैसे अपने सहयोगियों के जरिए अमेरिका और उसके खाड़ी देशों के साथियों सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकता है। ऐसी कोशिशों के प्रतिकार में अगर बात बढ़ी तो नौबत गृह युद्ध जैसी भी हो सकती है जो और भी बुरी खबर होगी।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Author

Sanjeev Sharma

Recommended News

Related News