भगवान की मूर्ति खरीदते वक्त मोल-भाव करना चाहिए या नहीं? प्रेमानंद महाराज ने दिया सरल उत्तर
punjabkesari.in Sunday, Sep 28, 2025 - 04:36 PM (IST)

नेशनल डेस्क : अक्सर भक्तों के मन में सवाल उठता है कि ठाकुर जी की मूर्ति (श्रीविग्रह) खरीदते समय अपनी पसंद-नापसंद देखना सही है या गलत? साथ ही, यह भी शंका रहती है कि क्या ऐसे समय मोलभाव करना उचित है? इन सवालों का उत्तर प्रेमानंद महाराज ने सरल शब्दों में दिया।
मूर्ति चयन पर क्या है नियम?
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि जब तक ठाकुर जी का श्रीविग्रह घर में विराजमान नहीं होता, तब तक चयन करना स्वाभाविक है। भक्त अपनी पसंद के अनुसार विग्रह चुन सकता है। लेकिन एक बार जब ठाकुर जी को घर में सेवा में विराजमान कर लिया जाए, तब उन्हें सर्वोच्च मानना चाहिए। किसी और की मूर्ति से तुलना करना या अपने ठाकुर में कमी ढूंढना अनुचित है।
मोलभाव नहीं, भेंट का भाव
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि धन देते समय यह भाव रखना चाहिए कि हम ठाकुर जी को भेंट अर्पित कर रहे हैं। ऐसे में मोलभाव करना उचित नहीं है। यदि विक्रेता 45,000 कहे तो हमें 40,000 कहकर सौदा नहीं करना चाहिए। अगर हमारे पास केवल 4,000 ही हों, तो साफ-साफ कहना चाहिए कि ‘मेरे पास इतने ही हैं, कृपया स्वीकार करें’। ठाकुर जी के प्रति भाव मोलभाव का नहीं, बल्कि समर्पण और न्योछावर का होना चाहिए।
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अगर विक्रेता अनुचित मूल्य मांग ले तो क्या करना चाहिए?
एक भक्त ने प्रश्न किया कि यदि कोई विक्रेता अनुचित मूल्य मांग ले तो क्या करना चाहिए? इस पर प्रेमानंद महाराज ने उत्तर दिया कि ऐसा संभव ही नहीं है। यदि किसी श्रीविग्रह का मूल्य 45,000 है तो विक्रेता 1 लाख मांगने का साहस ही नहीं करेगा, क्योंकि ठाकुर जी स्वयं उसके भीतर विराजमान होते हैं। जो भी मूल्य वह बताएगा, वह अपराध नहीं माना जाएगा। ठाकुर जी का तो कोई मोल है ही नहीं, और जिन हाथों ने उन्हें गढ़ा है उनका श्रम व भावनाएं अमूल्य हैं। इसलिए निर्माणकर्ता जितना भी न्योछावर मांगे, उसे सम्मानपूर्वक स्वीकार करना चाहिए।