भोपाल में गंभीर वायु प्रदूषण: AQI 336 के पार, आरोप- प्रशासनिक क्षेत्रों में पानी छिड़ककर आंकड़े छुपाने की कोशिश
punjabkesari.in Friday, Dec 12, 2025 - 04:35 PM (IST)
नेशनल डेस्क। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में इस सीज़न में वायु गुणवत्ता (Air Quality) अपने 'गंभीर' (Severe) स्तर पर पहुंच गई है। शहर में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) लगातार 300 से 336 के बीच दर्ज हो रहा है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक माना जाता है। इस गंभीर स्थिति के बीच यह आरोप सामने आए हैं कि प्रशासनिक अधिकारी प्रदूषण के वास्तविक आंकड़ों को कृत्रिम रूप से कम दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रदूषण के आंकड़ों से छेड़छाड़ का आरोप
एक दायर की गई याचिका (Petiition) में यह गंभीर दावा किया गया है कि प्रशासनिक भवनों के आसपास जानबूझकर बार-बार पानी का छिड़काव किया जा रहा है ताकि उन क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर कम दिखे। कलेक्टर कार्यालय, टीटी नगर और एनवायरमेंट कॉम्प्लेक्स जैसे प्रशासनिक क्षेत्रों के पास रोज़ 10-15 बार पानी का छिड़काव किया जाता है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पानी छिड़कने से केवल उन क्षेत्रों का AQI अस्थायी रूप से कम दिखता है जबकि शहर की वास्तविक हवा उसी गंभीर स्तर पर प्रदूषित बनी रहती है।
प्रदूषण बढ़ने के मुख्य कारण
भोपाल में प्रदूषण बढ़ने के कारण स्पष्ट हैं जिन पर प्रशासन की ढिलाई सवालों के घेरे में है:
कृषि और धूल: खेतों में पराली जलाना (Stubble Burning)।
निर्माण कार्य: सड़कों और मेट्रो प्रोजेक्ट की धूल, तथा अन्य निर्माण गतिविधियों से उड़ता कणीय पदार्थ (Particulate Matter)।
वाहन और जीवाश्म ईंधन: वाहनों से निकलता बढ़ता धुआँ और होटलों-रेस्तराँ में तंदूरों में कोयले का लगातार उपयोग।
अन्य कारक: बिना PUC (Pollution Under Control) वाले 35-40% वाहनों की बड़ी संख्या, अनियंत्रित मेट्रो डस्ट और बैंड-बाजा पटाखों का अनियंत्रित उपयोग।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इस स्तर का प्रदूषण हार्ट अटैक, स्ट्रोक और सांस संबंधी बीमारियों (Respiratory Diseases) में तेज़ी से बढ़ोतरी कर रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारी प्रदूषण वाले इलाकों से 336 परिवार अपना घर छोड़कर जा चुके हैं।
संविधान और कानून का उल्लंघन
पिटीशन में आरोप लगाया गया है कि AQI डेटा के साथ छेड़छाड़ करना लोगों के "स्वच्छ हवा के अधिकार" (जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत 'जीने के अधिकार' में शामिल है) का सीधा उल्लंघन है। साथ ही यह 'एयर एक्ट 1981' और 'एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986' जैसे महत्वपूर्ण पर्यावरण कानूनों की भी अनदेखी है।
भोपाल इस वक्त राज्य की दूसरी सबसे प्रदूषित सिटी बताई जा रही है। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि:
AQI डेटा मैनिपुलेशन तुरंत रोका जाए।
प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक सख्त मैकेनिज्म बनाया जाए।
गैर-कानूनी पटाखों और धुएँ के स्रोतों पर तुरंत कार्रवाई हो।
सरकार का रैंकिंग पर रुख
इस बीच संसद में केंद्र सरकार ने साफ किया है कि वैश्विक एयर-क्वालिटी रैंकिंग को "कोई आधिकारिक मानक" नहीं माना जा सकता और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक केवल सलाहात्मक (Advisory) हैं। सरकार का तर्क है कि हर देश को अपनी भौगोलिक और आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर खुद के प्रदूषण मानक तय करने चाहिए।
हालांकि जब नागरिक हर सांस के साथ संघर्ष कर रहे हों तो सवाल रैंकिंग से ज़्यादा ज़मीनी हकीकत और असली हवा की गुणवत्ता का है जिसकी सीधी जिम्मेदारी अंततः सरकार और नगर प्रशासन पर ही आती है।
