जस्टिस ललित अयोध्या मामले से हुए अलग, 29 जनवरी को होगी अगली सुनवाई

punjabkesari.in Thursday, Jan 10, 2019 - 01:44 PM (IST)

नई दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना हक विवाद मामले की सुनवाई करने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सदस्य रहे जस्टिस यूयू ललित ने इस केस से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक नई पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तारीख तय की। अदालत के बैठते ही मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि जस्टिस ललित उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पैरवी करने के लिए 1994 में अदालत में पेश हुए थे। हालांकि धवन ने कहा कि वह जस्टिस ललित के मामले की सुनवाई से अलग होने की मांग नहीं कर रहे हैं, लेकिन न्यायाधीश ने स्वयं को मामले की सुनवाई से अलग करने का फैसला किया। सीजेआई गोगोई , जस्टिस ललित, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस एन वी रमना और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की सदस्यता वाली पीठ ने धवन के तर्कों पर विचार किया।
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कोर्ट की कार्रवाई पर एक नजर

  • धवन ने इस ओर भी पीठ का ध्यान खींचा कि पहले तय किया गया था कि इस मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ करेगी लेकिन बाद में चीफ जस्टिस ने इसे पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का फैसला किया।
  • धवन ने कहा कि पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ गठित करने के लिए एक न्यायिक आदेश की आवश्यकता है।
  • चीफ जस्टिस ने न्यायालय के उन नियमों का हवाला दिया जिनमें कहा गया है कि हर पीठ में दो न्यायाधीश होने चाहिएं और पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ गठित करने में कुछ भी गलत नहीं है।
  • सीजेआई ने कहा कि मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों और इससे संबंधित विशाल रिकॉर्डों के मद्देनजर यह पांच न्यायाधीशों की पीठ गठित करने के लिए उचित मामला है।
  • पीठ ने अपने आदेश में कहा कि शीर्ष अदालत पंजीयन सीलबंद कमरे में 50 सीलबंद पेटियों में रखे रिकॉर्डों की जांच करेगा।
  • उसने कहा कि मामले संबंधी रिकॉर्डों का आकार बहुत विशाल है और कुछ दस्तावेज संस्कृत, अरबी, उर्दू, हिंदी, फारसी और गुरमुखी में हैं जिनका अनुवाद किया जाना आवश्यक है।
  • पीठ ने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय पंजीयन आधिकारिक अनुवादकों की मदद ले सकता है।

PunjabKesariइससे पहले, 27 सितंबर, 2018 को तीन सदस्यीय पीठ ने 1994 के एक फैसले में की गई टिप्पणी पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास नये सिरे से विचार के लिए भेजने से 2:1 के बहुमत से इनकार कर दिया था। इस फैसले में टिप्पणी की गई थी कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। जब 4 जनवरी को मामले को सुनवाई के लिए पेश किया गया था, उस समय इस बात का कोई संकेत नहीं दिया गया था कि इस मामले को एक संविधान पीठ को भेजा जाएगा। उस समय शीर्ष अदालत ने केवल यह कहा था कि ‘‘एक उपयुक्त पीठ’’ मामले संबंधी आगे के आदेश 10 जनवरी को देगी। उल्लेखनीय है कि इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के वर्ष 2010 के आदेश के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर हुई हैं। हाईकोर्ट ने इस विवाद में दायर चार दीवानी वाद पर अपने फैसले में 2.77 एकड़ भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बंटवारा करने का आदेश दिया था।

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Seema Sharma

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