ब्रिटेन छोडेगा यूरोपीय संघ !

punjabkesari.in Thursday, Jun 16, 2016 - 12:42 PM (IST)

ब्रिटेन यूरोपीय संघ (ईयू) में बना रहेगा या नहीं इस पर देश में 26 जून को जनमत संग्रह करवाया जाना है। देखा गया है कि धीरे-धीरे इसकी तस्वीर साफ होती जा रही है। देश में पहले ही इसके समर्थन और विरोध में आवाज उठनी शुरू हो गई थी। सबके पास अपने-अपने तर्क हैं कि ब्रिटेन को ईयू में रहना चाहिए या नहीं। लेकिन अधिकांश लोग नहीं चाहते कि ब्रिटेन संघ में बना रहे। हाल में किए गए कुछ सर्वेक्षणों में यह बात खुलकर सामने आई है।

जनमत संगह से पूर्व किए जा रहे ये सर्वेक्षण बताते हैं कि ईयू से बाहर आने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। जबकि देश के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन चाहते हैं कि ब्रिटेन संघ में बना रहे। इसके लिए वह बकायदा अभियान भी चला रहे हैं। वे स्वयं संकट  में फंस गए हैं। उनकी अपनी पार्टी के कई सांसद इसके विरोध में हैं। देश में ईयू के विरोधियों की संख्या में इजाफा हो रहा है तो यह कैमरन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाएगा।

हाल में द टाइम के लिए किए गए सर्वे के अनुसार 46 फीसदी लोग नहीं चाहते कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ में बना रहे,जबकि 39 फीसदी लोगों का मानना है कि 28 देशों वाले इस संघ का ब्रिटेन अहम सदस्य है इसलिए उसे इसमें बने रहना ही चाहिए। 11 फीसदी लोग असमंजस की स्थिति में हैं। वे कुछ बता नहीं पा रहे हैं,लेकिन 4 फीसदी का कहना है कि वे इस संग्रह से दूरी बनाकर रखेंगे।

गार्जियन के लिए किए गए सर्वे में कुछ अलग तस्वीर सामने आई है। इसके मुताबिक 53 फीसदी लोगों को मानना है कि ब्रिटेन को ईयू से अलग हो जाना चाहिए, लेकिन 47 फीसदी इसमें बने रहने का समर्थन करते हैं। एक सर्वे द टेलिग्राफ की ओर से भी किया गया, जिसमें 49 फीसदी संघ को छोड़ने के पक्ष में हैं और 1 फीसदी इसका विरोध् करते हैं। इस संबंध में एक जानकारी और मिली है कि ब्रिटेन में रहने वाले 51 फीसदी भारतवंशी चाहते हैं कि उनका देश ईयू को नहीं छोड़े। जबकि 28 फीसदी लोग इसका विरोध कर रहे हें। स्वयं रोजगार मंत्री प्रीति पटेल, जोकि भारतवंशी हैं चाहती हैं कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर आ जाए।

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने के तीन मुख्य कारण माने जा सकते हैं। पहला, ब्रिटेन नहीं चाहता कि नीतियों के निर्धारण में उसके हाथ बंधे रहे। वह इसमें आजादी चाहता है। दूसरा, संघ के लिए चलाई गई साझा मुद्रा यूरो संकटग्रस्त है और तीसरा, तेजी से यूरोप में बढ़ती जा रही शरणार्थियों की संख्या से हालात पेचीदा होते जा रहे हैं। हालांकि संघ ने ब्रिटेन को बने रहने के लिए कुछ छूट भी दी है जैसे यूरोजोन के साझा मुद्रा वाले नियमों से उसे राहत दे दी गई है। उसकी अपनी मुद्रा पॉउंड चलेगी। लेकिन अंतिम फैसला जनता के हाथ में है।

ब्रिटिशवासियों को लगता है कि उनके देश ने दुनिया के कई देशों पर राज किया है, लेकिन ईयू में उसकी प्रतिष्ठा में कम हो रही हे। इसलिए कई लोग इससे बाहर आने की आवाज बुलंद कर रहे हैं। उनके देश को ग्रेट ब्रिटेन के नाम से जाना जाता रहा है इसलिए उसकी महानता बनी रहे, जरूरी है कि वह अपना अस्तित्व संघ से अलग बनाकर रखे। तभी उसकी खास पहचान कायम रहेगी।

गौरतलब है कि ब्रिटेन 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के कार्यकाल में ब्रिटेन यूरोपीय संघ में शामिल हुआ था। उसने संघ की साझा मुद्रा यूरो को नहीं अपनाया था। ब्रिटेन ने अपना मुक्त बाजार का रवैया जारी रखा और नीदरलैंड्स, स्वीडन जैसे कुछ अन्य देशों ने भी ऐसा किया। आशंका जताई जा रही है कि ब्रिटेन के ईयू से बाहर आने के साथ ही कुछ अन्य देश भी इसी राह पर न चलने लगे।


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