RBI क्यों नहीं छाप सकता अनलिमिटेड नोट? कैसे काम करता है भारत का करेंसी सिस्टम
punjabkesari.in Thursday, Dec 18, 2025 - 03:28 PM (IST)
नेशनल डेस्क: सोचिए अगर आज से RBI ने फैसला कर दिया कि वो नोटों की कोई लिमिट नहीं रखेगा और अनलिमिटेड पैसा छापना शुरू कर दे... आपकी जेब में पैसे तो बढ़ जाएंगे, लेकिन क्या सच में आपकी जिंदगी आसान होगी? या फिर ये कदम हमारी पूरी अर्थव्यवस्था को हिला कर रख देगा? आइए जानते हैं, इस एक्सट्रीम स्थिति में हमारे देश की इकोनॉमी पर क्या असर पड़ेगा।”
पैसे छापने के पीछे की सीमा
बता दें कि RBI अपने नोटों की वैल्यू के बराबर सोना और विदेशी रिजर्व रखता है। अगर नोट छापने की सीमा से अधिक नोट प्रिंट किए जाएं, तो उनके पीछे की वास्तविक वैल्यू खत्म हो जाती है। इसका परिणाम आर्थिक संकट के रूप में सामने आता है। इतिहास में कई देशों ने यह गलती की—जिम्बाब्वे और वेनेज़ुएला में अत्यधिक मुद्रा छपाई से अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई थी।
आसान उदाहरण: महंगाई का चक्र
सोचिए, आप 20 रुपये में एक पेन खरीदने गए और दुकान पर सिर्फ दो पेन बचे हैं। पांच ग्राहक उन्हें खरीदना चाहते हैं। दुकानदार कीमत बढ़ाकर 25 रुपये कर देता है। अब अगर सरकार ज्यादा नोट छापकर हर किसी को अतिरिक्त पैसा दे दे, तो ग्राहक पेन खरीद पाएंगे, लेकिन दुकानदार कीमत 50 रुपये कर देगा। यही महंगाई का चक्र है—ज्यादा पैसा = ज्यादा मांग = कीमतों में तेजी।
मुद्रा की वैल्यू और अंतरराष्ट्रीय असर
जब ज्यादा नोट प्रिंट होते हैं, तो देश की करेंसी की वैल्यू गिरती है। इसका मतलब:
-इंपोर्ट महंगा हो जाता है।
-ट्रेड डेफिसिट बढ़ता है।
-विदेशी निवेशकों का भरोसा कम होता है।
-इससे देश की आर्थिक स्थिति अस्थिर हो जाती है।
बेकाबू महंगाई और उत्पादन पर असर
अत्यधिक मुद्रा छपाई से महंगाई तेजी से बढ़ती है क्योंकि ज्यादा पैसा उतनी ही वस्तुओं और सेवाओं के पीछे दौड़ता है। कई देशों में यह अनुभव हो चुका है—जिम्बाब्वे और वेनेज़ुएला की अर्थव्यवस्थाएं इसी वजह से टूट गईं। इसके अलावा, अगर लोगों को बिना मेहनत के पैसा मिलता है, तो काम करने की प्रेरणा कम हो जाती है। उत्पादन घटता है, वस्तुओं की उपलब्धता कम होती है, और सप्लाई-डिमांड असंतुलन पैदा होता है।
डिमांड और सप्लाई का नियम
भले ही उत्पादन स्थिर रहे, लेकिन ज्यादा पैसे की आपूर्ति डिमांड को बढ़ा देती है। जब डिमांड सप्लाई से ज्यादा हो जाती है, तो कीमतें बढ़ जाती हैं। उपभोक्ता चीजें खरीद सकते हैं, लेकिन पूरा मांग पूरा करना मुश्किल हो जाता है।
